जानिए सावन सोमवार व्रत कथा

इन दिनों सावन का महीना चल रह है। हिंदू सनातन धर्म में सावन मास के सोमवार व्रत का खास महात्म्य है

Update: 2022-07-25 11:03 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क।    इन दिनों सावन का महीना चल रह है। हिंदू सनातन धर्म में सावन मास के सोमवार व्रत का खास महात्म्य है। दरअसल सावन का महीना भोलेशंकर के प्रिय है और सोमवार को तो उनका दिन ही माना जाता है। ऐसे में सावन के सोमवार का महत्व और भी बढ़ जाता है। मान्यता है कि सावन के सोमवार को व्रत रखने और सच्चे मन में भोले भंडारी की पूजा अर्चना करने से भक्तों की मन मांगी मुराद पुरी होती है।

सावन के सोमवार का व्रत कुंवारी कन्याएं अच्छे वर की मनोकामना के लिए करती हैं तो सुहागिन महिलाएं ये व्रत अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए करती हैं। इस दिन भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती का पूजन किया जाता है। मान्यता है कि पूरे विधि-विधान से व्रत व पूजन करने से जातकों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
इसके साथ ही मान्यता है कि सावन के सोमवार का व्रत करते समय व्रत कथा जरूरी पढ़नी चाहिए। सावन सोमवार व्रत कथा पढ़ने से भोलेनाथ जातक की सभी मनोकामनाएं शीघ्र पूर्ण कर देते हैं।
सावन सोमवार व्रत कथा (Sawan Somvar Vrat Katha)
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार किसी नगर में एक साहूकार रहता था। वह भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था। नगरवासी उसका बड़ा सम्मान करते थे। उसका जीवन बहुत सुखी संपन्न था। लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी। इस वजह से वह हमेशा दुखी रहता था। पुत्र प्राप्ति के लिए साहूकार हर सोमवार को भगवान शिव की पूजा अर्चना किया करता था। उसकी भक्ति देखकर एक दिन मां पार्वती प्रसन्न हो गईं और भगवान शिव से उस साहूकार की मनोकामना पूर्ण करने का आग्रह किया। पार्वती जी की इच्छा सुनकर भगवान शिव ने कहा कि 'हे पार्वती, इस संसार में हर प्राणी को उसके कर्मों का फल मिलता है और जिसके भाग्य में जो हो उसे भोगना ही पड़ता है।' लेकिन पार्वती जी ने साहूकार की भक्ति का मान रखने के लिए उसकी मनोकामना पूर्ण करने की इच्छा जताई।
माता पार्वती के आग्रह पर शिवजी ने साहूकार को पुत्र-प्राप्ति का वरदान तो दिया लेकिन साथ ही यह भी कहा कि उसके बालक की आयु केवल बारह वर्ष होगी। माता पार्वती और भगवान शिव की बातचीत को साहूकार सुन रहा था। उसे ना तो इस बात की खुशी थी और ना ही दुख। वह पहले की भांति शिवजी की पूजा करता रहा। कुछ समय बाद साहूकार की पत्नी गर्भवती हुई और उसने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया। साहूकार को भोलेनाथ की कहीं गई हुई बातें याद थी, इसलिए पुत्र होने के बाद भी वह बहुत दुखी रहता था।
यह बात उसने अपनी पत्नी को नहीं बताई थी। जब साहूकार का बेटा 11 वर्ष का हो गया, तो साहूकार की पत्नी ने अपने बेटे का बाल विवाह करने को कहीं। यह सुनकर साहूकार ने कहा, कि अभी उसे पढ़ने के लिए काशी भेजेंगे। इसके बाद ही उसकी शादी होगी। उसने अपने पुत्र को मामा के साथ काशी भेज दिया। साहूकार ने अपने पुत्र से कहा, कि काशी जाते समय रास्ते में जिस स्थान पर रुकना वहां यज्ञ और ब्राह्मणों को भोजन करा कर ही आगे बढ़ना।
यह सुनकर मामा और भांजा काशी के लिए निकल पड़े। रास्ते में वह यज्ञ और ब्राह्मण भोजन कराते हुए आगे बढ़ते रहे। रास्ते में मामा और भांजे ने देखा, कि एक राजकुमारी का विवाह हो रहा था। राजकुमारी का विवाह जिस राजकुमार से हो रहा था वह एक आंख से काना था। राजकुमार के पिता ने अपने पुत्र के काना होने की बात को छुपाने के लिए एक चाल सोची। साहूकार के पुत्र को देखकर उसके मन में एक विचार आया। उसने सोचा क्यों न इस लड़के को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूं। विवाह के बाद इसको धन देकर विदा कर दूंगा और राजकुमारी को अपने नगर ले जाऊंगा।
लड़के को दूल्हे के वस्त्र पहनाकर राजकुमारी से विवाह कर दिया गया। लेकिन साहूकार का पुत्र ईमानदार था। उसे यह बात ठीक नहीं लगी। उसने मौका पाकर राजकुमारी की चुन्नी के पल्ले पर लिखा कि 'तुम्हारा विवाह तो मेरे साथ हुआ है लेकिन जिस राजकुमार के संग तुम्हें भेजा जाएगा वह एक आंख से काना है। मैं तो काशी पढ़ने जा रहा हूं।' जब राजकुमारी ने चुन्नी पर लिखी बातें पढ़ी तो उसने अपने माता-पिता को यह बात बताई। राजा ने अपनी पुत्री को विदा नहीं किया जिससे बारात वापस चली गई।
उधर मामा और भांजा काशी पहुंच गए। वहां जाकर उन्होंने जिस दिन लड़के की आयु 12 साल की हुई उसी दिन यज्ञ रखा गया। जब मामा अपने धर में ने यज्ञ करवा रहें थे, तभी भांजे की अचनाक तबीयत खराब हो गई। इसके बाद उसने रोना शुरू कर दिया। भगवान शिव और माता पार्वती उस वक्त उसी रास्ते से जा रहे थे। रोने की आवाज सुनकर माता पार्वती ने भगवान शिव जी से पूछा 'हे प्रभु यह कौन रो रहा है? यह सुनकर भगवान शिव माता पार्वती से कहा कि यह वही साहूकार का बेटा है, जिसकी आयु 12 वर्ष तक की ही थी।
तब माता पार्वती ने शिवजी से व्यापारी के बेटे का जीवन दान देने को कहा। तब महादेव ने माता पार्वती से कहा इसकी आयु इतनी ही थी। भगवान शिव के इस वचन को सुनकर माता पार्वती बार-बार जीवन दान देने की आग्रह करने लगीं। तब भगवान शिव ने उसे साहूकार के बेटे को जीवनदान दे दिया। इसके बाद मामा और भांजा दोनों अपने घर को लौट आए।
रास्ते में उन्हें वहीं नगर मिला जहां साहूकार के बेटे का विवाह हुआ था। वहां जाने के बाद दोनों की खूब खातिरदारी हुई। राजकुमारी के पिता ने अपनी कन्या को साहूकार के बेटे के साथ खूब सारा धन देकर विदा कर दिया। उधर साहूकार और उसकी पत्नी यह सोचकर छत पर बैठे थे, यदि उनका पुत्र वापस नहीं आएगा, तो वह छत से कूदकर अपनी जान दे देंगे।
जब उन्हें पता चला, कि उनका पुत्र वापस उनके पास आ रहा है, तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ। बाद में उन्होंने अपने बेटे और बहू का भव्य तरीके से स्वागत और भगवान शिव को बारंबार धन्यवाद दिया। रात में भगवान शिव ने साहूकार को स्वपन्न दिए और 'कहा कि मैं तुम्हारे पूजा से बहुत प्रसन्न हूं। आज के बाद जो भी सोमवार व्रत में उसकी इस कथा को पढ़ेगा उसकी सभी मनोकामनाएं मैं अवश्य पूर्ण करूंगा।
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