जानिए सावन शिवरात्रि और सावन सोमवार के दिन कैसे करें शिवजी की षोडशोपचार पूजा
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। सावन माह भगवान शिव को समर्पित है। इस पूरे माह में भगवान शिव की विधिवत पूजा करने का विधान है। वहीं सावन माह के सोमवार के साथ सावन शिवरात्रि के दिन भोलेनाथ की विधिवत पूजा करने से वह जल्द प्रसन्न हो जाते हैं। भगवान शिव की पूजा को लेकर शास्त्रों में कुछ नियम बताए गए हैं, जिनका पालन करना जरूरी माना जाता है।भगवान शिव की पूजा करने के विभिन्न तरीके से है। लेकिन भोलेनाथ को हर एक चीज मंत्रों के साथ अर्पित करने से फल कई गुना अधिक मिलता है। मंत्रों सहित पूजन को षोडशोपचार कहते हैं। जानिए सावन शिवरात्रि और सावन सोमवार के दिन कैसे करें शिवजी की षोडशोपचार पूजा।
क्या है षोडशोपचार?
शास्त्रों के अनुसार, षोडशोपचार पूजन में देवी-देवता को सोलह वस्तुए अर्पित की जाती है। लेकिन हर एक चीज अर्पित करते समय पवित्र मंत्रों को बोला जाता है। इस तरह से पूजा करना फलदायी माना जाता है। इस सोलह चीजों की शुरुआत ध्यान के साथ होती है और अंत देवी-देवता के विश्राम के साथ होती है।
भगवान शिव का षोडशोपचार पूजन
सावन माह के दौरान सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान आदि कर लें। इसके बाद साफ वस्त्र धारण करके शिवजी का मनन करते रहें। इसके बाद पूजा प्रारंभ करें।
शिव जी का करें ध्यान
षोडशोपचार में सबसे पहले ध्यान करें। इसमें शिवजी क ध्यान करते हुए उनका आह्वान करें। भगवान शिव का ध्यान करते हुए निम्नलिखित मंत्र का जाप करना चाहिए-
ध्यायेन्नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारु चन्द्र अवतंस
रत्नाकल्पोज्जावाग्ड़ परशिमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम्।।
पद्मासिनं समन्तात् स्तुतममरणैर्व्याघ्र कृतिं वसान्ं।
विश्ववाघं विश्वबीज निखिल-भयहरं पञ्चवक्तं त्रिनेत्रम्।।
वन्धूक सन्निभं दवें त्रिनेत्र चंद्र शेखरम्।
त्रिशूल धारिणं देवं चारूहासं सुनिर्मलम्।।
कपाल घारिणं देवं वरदाभय-हस्तकम्।
उमया सहितं शम्भूं ध्यायेत् सोमेश्वरं सदा।।
शिवजी का करें आवाहन
भगवान शिव के ध्यान के बाद तस्वीर के सामने बैठकर दोनों हाथों को जोड़कर इस मंत्र का जाप करते हुए आवाहन करें।
आगच्छ भगवन्देव स्थाने स्थिर भल।
यावत् पूजां करिष्यामि तावत्वं सन्निधौ भव।
पाद्यम्
भगवान शिव का आह्वान करने के बाद इस मंत्र को बोलते हुए शिवजी को पैर धोने के लिए जल अर्पित करें।
महादेव महेशन महादेव परात्परः।
पद्य गृहण मच्छतम पार्वती साहित्येश्वरः
अर्घ्यम्
इस मंत्र के साथ भगवान शिवजी के सिर में जल अर्पित करें-
त्र्यंबकेश सदाचार जगदादि-विधायकः।
अर्घ्यं गृहण देवेश साम्ब सर्वार्थदाकाः।।
आचमनीयम्
शिवजी को अर्घ्य देने के बाद इस मंत्र के साथ जलाभिषेक करें
त्रिपुरान्तक दिनार्ति नशा श्री कंठ शाश्वत।
गृहणचमनीयं चा पवित्र्रोदक-कल्पितम्
गोदुग्धस्नानम्
मधुर गोपायः पुण्यम् पटपुतम पुरुस्कृतम्।
स्नानार्थम देव देवेश गृहाण परमेश्वरः!।।
दधिस्नानम्
दूध के बाद दही से स्नान कराएं और इस मंत्र को बोले
दुर्लभम दिवि सुस्वादु दधी सर्व प्रियं परम।
पुष्टिदम पार्वतीनाथ! सन्नय प्रतिग्रह्यतम:
घृत बम्
शिवजी को घी से स्नान कराते समय इस मंत्र को बोलना चाहिए।
घृतं गव्यं शुचि स्निगधं सुसेव्यं पुष्टिमिच्छताम्।
गृहाण गिरिजानाथ स्नानाय चंद्रशेखर:।।
मधु स्नानम्
शिवजी को शहद से स्नान कराते वक्त इस मंत्र को बोले
मधुरं मृदुमोहनं स्वरभड्ग विनाशम्।
महादेवेदमुकसृष्ढं तब स्नानाय शड्कर:।।
ग्लास बाम्
चीनी चढ़ाते समय इस मंत्र को बोले
तपशांतिकारी शीतलाधुरस्वदा संयुक्ता।
स्नानार्थम देव देवेश! शरकारेयं प्रदियते।।
शुद्धोदक स्नानम्
शुद्ध जल से स्नान के लिए ये मंत्र बोले
गंगा गोदावरी रेवा पयोष्णी यमुना तथा।
सरस्वत्यादि तीर्थानि स्नानार्थ प्रतिगृह्ताम्।।
वस्त्र
शिवजी को वस्त्र धारण कराने के लिए मंत्र- सर्वभूषाधिके सौम्ये लोक लज्जा निवरणे।
मयोपपादिते देवेश्वर! गृह्यताम वाससि शुभ॥
गंधम्
गन्ध लगाने के लिए मंत्र- श्रीखंड चंदनं दिव्यं गंधाध्यां सुमनोहरम।
विलेपनं सुर श्रेष्ठः चन्दनं प्रतिगृह्यतम॥
अक्षतं
अक्षत लगाने के लिए- अक्षतश्च सुराश्रेष्ठः शुभ्रा धूतश्च निर्मला:।
माय निवेदिता भक्तया गृहाण परमेश्वर:।।
पुष्पाणी
शिवजी को फूल चढ़ाने के लिए इस मंत्र को बोलना चाहिए।
माल्यादिनी सुगंधिनी मालत्यादिनी वै प्रभु।
मयनीतानी पुष्पाणी गृहण परमेश्वर:
बिलाव पत्राणी
बेल पत्र चढ़ाने के लिए बोले ये मंत्र
बिल्वपत्रम सुवर्णें त्रिशूलाकार मेव च।
मायार्पिताम महादेव! बिल्वपत्रम गृहणमे।।
नावेद्यं
शिवजी को नैवेघं चढ़ाने के लिए इस मंत्र को बोलना चाहिए
शर्कराघृत संयुक्त मधुरम् स्वादुचोत्तम्।
उपहार समायुक्तं नैवेघं प्रतिगाम्।।
धूपम्
भगवान शिव को अगरबत्ती या धूप-बत्ती का भोग लगाते समय इस मंत्र को बोलना चाहिए
वनस्पति रसोद्भूत गन्धध्यो गन्ध उत्तमः।
अघ्रेयः सर्वदेवनं धूपोयं प्रति गृह्यतम॥
दीपां
भगवान शिव को शुद्ध घी का दीपक जलाएं और इस मंत्र को बोले
अजयम च वर्ति संयुक्तम् वहनिना योजितम् माया।
दीपम गृहण देवेश! त्रैलोक्यतिमिरपाह॥
अद्भुतनीयं
धूप-दीप अर्पित करने के बाद भगवान शिव को इस मंत्र से अचमन अर्पित करें।
एलोशिरा लवंगदि करपुरा परिवासितम्।
प्रशनार्थम कृत तोयम गृहण गिरिजापतिः!
दक्षिणी
अपनी मनमुताबिक भगवान शिव को दक्षिणा अर्पित करें।
हिरण्यगर्भ गर्भस्थं हेमाबिजं विभवसो।
अनंत पुण्य फलदामता शांतिम प्रयाच्छा मे॥
आरती
पूजा थाली में जले हुए कपूर के साथ भगवान शिव को इस मंत्र को बोलते हुए आरती कर लें।
कदली गर्भ संभूतम करपुरम चा प्रदीप्तिम्।
अरार्तिक्यमं कुर्वे पश्य मे वरदो भव
प्रदक्षिणाम्
आरती के बाद भगवान शिव की आधी परिक्रमा करें और इस मंत्र को बोले
यानी कनि चा पापनी जनमंतर कृतिनी वाई।
तानी सरवानी नश्यंतु प्रदक्षिणंम पदे
मन्त्र पुष्पांजलि
इस मंत्र का जाप करते हुए भगवान शिव को मंत्र और पुष्प अर्पित करें।
नाना सुगंधपुष्पश्च यथा कलोद्भैरपि।
पुष्पांजलि मायादत्तम गृहण महेश्वरः
क्षमाप्रार्थना
ठीतक ढंग से पूजा करने के भगवान शिव से भूलचूक के लिए क्षमा मांगें। इसके साथ इस मंत्र को बोले।
आवाहनं ना जन्मी ना जन्मी तवरचनम।
पूजाम चैव न जन्मी क्षमस्व महेश्वरः
अन्यथा शरणं नस्ति त्वमेव शरणं मम।
तस्मतकरुणयभवन राक्षसः