जानिए इस विशेष अदालत के बारे में जहाँ देवी-देवताओं को मिलती है, सजा
दंड देने का प्रावधान पौराणिक काल से चला आ रहा है.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | दंड देने का प्रावधान पौराणिक काल से चला आ रहा है. उस दौरान बिना अदालत सजा देना का काम भगवान और महर्षि द्वारा किया जाता था. पापियों की सजा उनके कर्मो के अनुरूप मिला करती थी. क्यूंकि अब हम एक आधुनिक युग में हैं इसलिए इंसानी सजा दंड देने के लिए अदालतों का गठन किया गया है और सजा उसी इंसान को मिलती है जो कानून के विरुद्ध जाकर कुछ गलत काम करता है. लेकिन आप ये जानकर हैरान रह जाएंगे कि भारत में एक ऐसी अदालत लगती है जहां सजा इंसानों को नहीं बल्कि देवी-देवताओ को दी जाती है.
स्वयं इंसान भगवानों को सजा दिलवाने के लिए फरियाद करते हैं. आज हम भारत की एक ऐसी अजीबो गरीब जगह के बारे में आपको बताने जा रहे हैं, जहां लगती है देवी देवताओं को सजा देने वाली अदालत.
इस खास आयोजन में सभी गांव वाले इकठ्ठा होते हैं. जिस जगह की बात आज हम करने जा रहे हैं वो है छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में. यहां के केश काल नगर में स्थित भंगाराम देवी के मंदिर में प्रति वर्ष यात्रा का आयोजन किया जाता है.
देवी भंगाराम यहां के पचपन गांव में मौजूद सैकड़ों देवी-देवताओं की आराध्य हैं. इस खास आयोजन में सभी गांव वाले इकट्ठा होते हैं और अपने संग भगवान की मूर्तियों को लेकर आते हैं. इस यात्रा के दौरान देवी-देवताओं की पेशी होती है. गांव वाले अपनी शिकायत भंगाराम देवी से करते हैं. जिसके बाद शुरू होता है भगवान को सजा सुनाने का सिलसिला. सुबह से लेकर शाम तक चलने वाले इस बड़े आयोजन के बाद देवी अपना फैसला सुनाती हैं.
मान्यता के अनुसार, मंदिर के पंडित के अंदर भंगाराम देवी प्रवेश करती हैं, जिसके बाद ही देवी अपनी सजा सुनाती हैं. अपराध के मुताबिक सजा छ: महीने के मंदिर निष्कासन से लेकर मृत्यु दंड तक दिया जाता है. मृत्युं दंड में मूर्तियां खंडित कर दी जाती हैं और निष्कासन में मूर्तियों को मंदिर से बाहर निकलकर बनी खुली जेल में रख दिया जाता है. इस दौरान मूर्ति के जेवरों को मंदिर में ही रख दिया जाता है. देवता वाले अपने संग जो भी वस्तु लाते हैं, उन्हें यहीं छोड़कर जाना पड़ता है.
किस तरह होती है मंदिर में वापसी?
सजा की अवधि पूरी होने के बाद मूर्ति को वापस मंदिर में स्थापित किया जाता है. अनिश्चितकालीन सजा के लिए देवी-देवताओं को अपनी गलती सुधारने का मौका दिया जाता है. वो तभी मंदिर में प्रवेश करते हैं, जब वो लोक कल्याण का वचन देते हैं. देवी-देवता ये वचन मंदिर के पुजारी को स्वप्न में आकर देते हैं. मंदिर में वापसी से पहले सम्बंधित भगवान की पूजा की जाती है और पूरे सम्मान के साथ मूर्ति को मंदिर में स्थापित भी किया जाता है. इस दौरान देवी का मंदिर हजारों लोगों से भरा रहता है.
क्या है शिकायतों के कारण?
ये सवाल किसी के भी मस्तिष्क में आ सकता है कि आखिर भगवान की शिकायत देवी से क्यों की जाती है?
आपको ये भी बता दें कि लोग अधिकतर शिकायतें मन्नत न पूरी होने के कारण करते हैं. इसके अलावा शारीरिक रोग, खराब फसल या किसी अन्य परेशानी का दोषी भी भगवान को ही बनाया जाता है और सबसे बड़ी बात तो ये है कि इस यात्रा में महिलाओं के आने पर प्रतिबंध हैं. यहां तक कि वो इस दौरान यात्रा का प्रसाद भी ग्रहण नहीं कर सकतीं. लोगों का मानना है कि महिलाओं की उपस्थिति माहौल को बिगाड़ सकती है. देवी भंगाराम से एक पुराणी किवदंति जुड़ी है.
कहा जाता है कि देवी ने बस्तर के राजा को दर्शन दिए थे. देवी ने उन्हें कहा कि वो राज्य में प्रवेश करना चाहती हैं, जिसके बाद देवी के स्वागत में राजा अपनी प्रजा के साथ पहुंचे लेकिन इसी दौरान तेज तूफान आ गया. देवी घोड़े पर सवार पहले पुरुष के रूप में आई जिसके बाद में वो स्त्री के रूप में परिवर्तित हुईं. केशकाल की घाटी में बना देवी का मंदिर देवी के प्रकट होने का स्थान है.