जगन्नाथ रथ यात्रा 2023: इस पेड़ की लकड़ी से तैयार होता है भगवान जगन्नाथ का रथ, धातु का नहीं होता प्रयोग
पुरी में आज जगन्नाथ रथ यात्रा शुरू हो गई है। भगवान जगन्नाथ नगर भ्रमण के लिए और अपने भक्तों को दर्शन देने के लिए निकल गये हैं। यह यात्रा आषाढ़ महीने के शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि को शुरू होती है ओडिशा के पुरी में होने वाली भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा देश के धार्मिक उत्सवों में से एक है, जिसमें भाग लेने के लिए दुनिया के कोने-कोने से लाखों श्रद्धालु आते हैं।
भगवान जगन्नाथ को विष्णु का 10वां अवतार माना जाता है, जो 16 कलाओं से परिपूर्ण हैं। पुराणों में जगन्नाथ धाम की काफी महिमा है, इसे धरती का बैकुंठ भी कहा गया है। यह हिन्दू धर्म के पवित्र चार धाम बद्रीनाथ, द्वारिका, रामेश्वरम और जगन्नाथ पुरी में से एक है। यहां भगवान जगन्नाथ बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजते हैं। यहां के बारे में मान्यता है कि श्रीकृष्ण, भगवान जगन्नाथ के रुप है और उन्हें जगन्नाथ (जगत के नाथ) यानी संसार का नाथ कहा जाता है।
जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और उनकी बहन सुभद्रा की पूजा की जाती है। मंदिर में भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा सबसे दाई तरफ स्थित है। बीच में उनकी बहन सुभद्रा की प्रतिमा है और दाई तरफ उनके बड़े भाई बलभद्र (बलराम) विराजते हैं।
पुरी रथयात्रा के लिए बलराम, श्रीकृष्ण और देवी सुभद्रा के लिए तीन अलग-अलग रथ निर्माण किया जाता हैं रथयात्रा में सबसे आगे बलरामजी, बहन देवी सुभद्रा का रथ और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ श्रीकृष्ण का रथ होता है। इसे उनके रंग और ऊंचाई से पहचाना जाता है। भगवान के रथ का नाम भी अलग-अलग होता है और रंग भी बलभद्र के रथ का रंग हरा-लाल और इसे तालध्वज कहते हैं भगवान जगन्नाथ के रथ को नंदीघोष और देवी सुभद्रा के रथ को दर्पदलन कहा जाता है, जो काले और लाल रंग का होता है इन रथों की उंचाई भी भगवान जगन्नाथ का 45.6 फीट ऊंचा रथ, बलरामजी का 45 फीट ऊंचा रथ और देवी सुभद्रा का 44.6 फीट ऊंचा रथ होता है। भगवान जगन्नाथ, बलभद्र, व सुभद्रा के रथ नारियल की लकड़ी से बनाए जाते है। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि ये लकड़ी हल्की होती है।
भगवान जगन्नाथ के रथ का रंग लाल और पीला होता है। इसके अलावा यह रथ बाकी रथों की तुलना में भी आकार में बड़ा होता है। उनकी यात्रा बलभद्र और सुभद्रा के रथ के पीछे होती है। इन रथों के निर्माण में किसी भी प्रकार के धातु का प्रयोग नहीं होता है रथों के लिए लकड़ी का चयन बसंत पंचमी के से शुरू होता है और निर्माण अक्षय तृतीया से होता है। माना जाता है कि जो लोग इस दौरान एक दूसरे को सहयोग देते हुए रथ खींचते हैं उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। भगवान जगन्नाथ की ये रथ यात्रा 9 दिनों तक चलती है।
मंदिर से जुड़े हैरान करने वाले रहस्य
- मंदिर के पास हवा की दिशा भी हैरान करती है। ज्यादातर समुद्री तटों पर हवा समंदर से जमीन की तरफ चलती है। लेकिन, पुरी में ऐसा बिल्कुल नहीं है यहां हवा जमीन से समंदर की तरफ चलती है और यह भी किसी रहस्य से कम नहीं है। आम दिनों में हवा समंदर से जमीन की तरफ चलती है। लेकिन, शाम के वक्त ऐसा नहीं होता है।
- जगन्नाथ मंदिर 4 लाख वर्गफुट में फैला है और इसकी ऊंचाई लगभग 214 फुट है। मंदिर की इतनी ऊंचाई के कारण ही पास खडे़ होकर भी आप गुंबद नहीं देख सकते। मंदिर के मुख्य गुंबद की छाया भी दिन के किसी भी वक्त दिखाई नहीं देती ।
- जगन्नाथ मंदिर के ऊपर कोई भी पक्षी आज तक उड़ता हुआ नहीं देखा गया है। मंदिर के शिखर के पास पक्षी या कोई भी चिड़ियां उड़ते हुए नहीं दिखते। मंदिर के उपर विमान भी नहीं उड़ते हैं।
- ऐसा दावा किया जाता है कि मंदिर का रसोईघर दुनिया का सबसे बड़ा रसोईघर है। मान्यता है कि कितने भी श्रद्धालु मंदिर आ जाए, लेकिन अन्न कभी भी खत्म नहीं होता।
- मंदिर के सिंहद्वार में प्रवेश करने के बाद मंदिर के अंदर समंदर की कोई भी आवाज सुनाई नहीं देती। इसके अलावा मंदिर के ऊपर लगा ध्वज भी हवा की उल्टी दिशा में लहराता रहता है।