इंसान की सारी मेहनत बेकार कर देते है ये एक अवगुण

आचार्य चाणक्य की नीतियां विश्व प्रसिद्ध हैं क्योंकि उन्होंने अपने समय में जीवन के करीब-करीब हर पहलु को बारीकी से परखा था.

Update: 2021-05-16 08:52 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। आचार्य चाणक्य की नीतियां विश्व प्रसिद्ध हैं क्योंकि उन्होंने अपने समय में जीवन के करीब-करीब हर पहलु को बारीकी से परखा था. आचार्य चाणक्य किसी भी परिस्थिति को दूर से ही भांप लेते थे. उनकी योजनाएं इतनी मजबूत होती थीं कि किसी को भनक भी नहीं हो पाती थी और दुश्मन मात खा जाता था. आचार्य की तीक्ष्ण बुद्धि, अनुभव और नीतियों ने ही चंद्रगुप्त मौर्य को सम्राट बना दिया था. आज भी आचार्य के विचारों से बहुत कुछ सीखने को मिलता है. अपने ग्रंथ चाणक्य नीति के 13वें अध्याय के 15वें श्लोक में उन्होंने एक ऐसे अवगुण का जिक्र किया है जो व्यक्ति की सारी मेहनत पर पानी फेर सकता है. जानिए इसके बारे में.

अनवस्थितकायस्य न जने न वने सुखम्,
जनो दहति संसर्गाद् वनं संगविवर्जनात…

इस श्लोक के माध्यम से आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जिसका मन स्थिर नहीं होता, उस व्यक्ति को न तो लोगों के बीच में सुख मिलता है और न ही वन में. ऐसे व्यक्ति को लोगों के बीच ईर्ष्या जलाती है और वन में अकेलापन.

इसका अर्थ है कि यदि वास्तव में सफल होना है तो चंचल मन को काबू करना जरूरी है. जिसका मन वश में होता है, वो कुछ भी हासिल कर सकता है. लेकिन जिसका मन चंचल है, वो व्यक्ति चाहे कितनी ही मेहनत कर लें, उसकी मेहनत पर पानी फिर जाता है क्योंकि उसका चित्त बार-बार भटकता है. चंचल मन दूसरों को तरक्की करते हुए देखकर जलता है और कुंठित रहता है. उसे न तो सबसे बीच खुशी मिलती है और न ही अकेलेपन में.

इसलिए अगर सफलता प्राप्त करनी है तो अपने मन को स्थिर करना जरूरी है क्योंकि स्थिर मन के साथ ही किसी कार्य को पूरी लगन से किया जा सकता है. तभी उस कार्य के परिणाम मिल पाते हैं. गीता में भी भगवान श्रीकृष्ण ने मन को वश में रखने का महत्व समझाते हुए कहा है, मन के जीते जीत है, मन के हारे हार. इसलिए यदि जीवन में आगे बढ़ने का स्वप्न देखते हैं तो पहले मन को वश में करना सीखिए.


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