लोहड़ी मनाते समय प्रसाद में रेवड़ी और मूंगफली चढ़ाने का महत्व, जानिए कैसे
इस दिन अग्नि में तिल, गुड़, गजक, रेवड़ी और मूँगफली चढ़ाने की परम्परा है
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। कई जगहों पर लोहड़ी को तिलोड़ी कहकर भी मनाया जाता है। इस दिन अग्नि में तिल, गुड़, गजक, रेवड़ी और मूँगफली चढ़ाने की परम्परा है। शीतकाल के जाने और बसंत के आने का संकेत लोहड़ी का त्योहार को किसान नए साल के रूप में भी मनाते हैं। काफ़ी लम्बे समय से लोहड़ी मनाने की कई परम्पराएँ हैं। लोहड़ी मनाते समय प्रसाद में रेवड़ी और मूंगफली खाने-खिलाने का रिवाज है। फसल की कटाई और बुआई के रूप में इसे किसानोंका मुख्य त्योहार माना जाता है। लोहड़ी मनाने के रिवाज के तहत आग जलाकर उसमें गुड़, तिल, रेवड़ी और गज़क आदि डालकर लोग इसके आस-पास नाच-गाकर अपनी प्रसन्नता ज़ाहिर करते हैं।
रबी की फसल के आ जाने के बाद किसान इसे भोग के रूप मेंसूर्य और अग्नि देवता का आभार व्यक्त करते हैं तथा अपनी उन्नति की प्रार्थना करते हैं। लोहड़ी के अगले दिन मकर संक्रांति का पर्व पौष माह में सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने पर मनाया जाता है। मान्यतानुसार, मकर संक्रान्ति को सूर्य देव अपने छोटे पुत्र शनि से मिलने हेतु मकर राशि में विचरण करते हैं | पौष माह में अधिकतर शुक्र का अस्त हो चुका होता है जब कोई शुभ काम नहीं होता परन्तु, आमतौर पर संक्रान्ति के अवसर पर शुक्र का उदय हो जाता है और लोग शुभ काम प्रारम्भ करते हैं। दक्षिण भारत में इसी दिन वहाँ का सबसे मुख्य त्योहार पोंगल भी 14 से 17 जनवरी के मध्य मनाया जाता है। पोंगल भी फसल आने और किसानों की प्रसन्नता व्यक्त करने का त्योहार होता है | तमिल माह तई की पहली तारीख़ को इसे तमिलनाडुमें नववर्ष के रूप में मनाते हैं।
25 जनवरी 2022सनातन धर्म में मान्यता है कि अग्निदेव को प्रसन्न करना बहुत आवश्यक और अनूकूल प्रभाव देने वाला होता है। इसलिए भी मूँगफली आदि चढ़ाया जाता है, जिससे भोग अग्निदेव और देवताओं मिलता है। किसान मानते हैं कि ऐसा करने से परिवार में सुख और समृद्धि आएगी। लोहड़ी के दिन अग्नि के चारों ओर लोग घेरा बनाकर पुराने समय की दुल्ला भट्टी की कहानी सुनते हैं। कहानी है कि मुगल बादशाह जलालुद्दीन मुहम्मद के शासनकाल में दुल्ला भट्टी नामक एक व्यक्ति पंजाब में निवास करता था। कुछ अमीर लोग सामानों के स्थान पर लड़कियों को बेंच दिया करते थे। दुल्ला भट्टी ने ऐसी लड़कियों को लोहड़ी के दिन इनके चंगुल से निकालकर उनकी शादी करवाई थी। प्रत्येक वर्ष लोहड़ी के समय दुल्ला भट्टी की याद में उनकी कहानी सुनने की परम्परा है।लोहड़ी की कई कथाएँ प्रचलित हैं। जिनमें कहा जाता है कि परमशक्ति देवी सती के पिता प्रजापती दक्ष के द्वारा आयोजित महायज्ञ में बिन बुलाए वे पहुँची। वहाँ दक्ष प्रजापति ने शिवजी का अपमान किया और क्रोधित होकर माता सती ने अग्निकुंड में आत्मदाह कर लिया। इससे महादेव ने क्रोधित होकर प्रजापती दक्ष को कठोर दंड दे दिया। माता पार्वती के रूप में जन्मी माता सती से दक्ष ने उन्हें ससुराल में इस लोहड़ी के त्योहार पर उपहार भेज अपनी भूल को सुधारने का प्रयास किया था। जिस कारण नव-विवाहित कन्याओं हेतु उनके मायके से वस्त्र और उपहार भेजने की प्रथा है।
किंवदंति है कि लोहड़ी और होलिका दोनों बहनें ही थीं। लोहड़ी के अच्छी प्रवृति के कारण, होलिका तो अग्नि में जल गई लेकिन लोहड़ी बच गई। एक कथा कहती है कि मकर संक्रांति की तैयारियों के समय भगवान कृष्ण को मारने जब कंस ने लोहिता राक्षसी को भेजा, तब लोहिता का वध भगवान ने किया। मकर संक्रांति के एक दिन पूर्व घटना होने के कारण उस दिन लोहड़ी मनाने लगे।
पारंपरिकता के आधार पर लोहड़ी के फसल की बुआई और कटाई से जुड़ा त्योहार होने के कारण फसल को अग्नि देवता को समर्पित कर किसान परिक्रमा लगाकर प्रसन्नता व्यक्त करते हैं। वे मानते हैं कि इससे उनके दुःखों की समाप्ति और परिवारिक सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है।लोहड़ी में जलाई गई अग्नि में गजक और रेवड़ी को डालने की परंपरा को बहुत ही शुभ माना जाता है। इस अग्नि में मूँगफली और पॉपकॉर्न भी डाला जाता है। अपने बच्चे को बुरी नज़र से बचाने के लिए माँ उसको आग से तापती है। ऐसे समय लोकगीत के ताल पर थिरकते लोगों के कारण अत्यंत मस्ती का माहौल बन जाता है।