माता लक्ष्मी के भक्त हैं, तो जरूर जानें आठ स्वरूपों की महिमा

शास्त्रों में शुक्रवार का दिन माता लक्ष्मी को समर्पित किया गया है. मां लक्ष्मी को धन-संपदा की देवी कहा जाता है

Update: 2021-03-12 02:35 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेसक | शास्त्रों में शुक्रवार का दिन माता लक्ष्मी को समर्पित किया गया है. मां लक्ष्मी को धन-संपदा की देवी कहा जाता है. इस दिन मां लक्ष्मी के भक्त उनकी पूजा-अर्चना और व्रत करते हैं और उनसे मनोकामना पूर्ति की प्रार्थना करते हैं. अगर आप भी मां लक्ष्मी के उपासक हैं आज यहां जानिए मातारानी के आठ स्वरूपों के बारे में.

आदि लक्ष्मी : जिन लक्ष्मी को भगवान विष्णु की पत्नी कहा जाता है, वो हैं आदि लक्ष्मी माता. इन्हें लक्ष्मी का मूल स्वरूप माना जाता है औश्र महालक्ष्मी के नाम से भी जाना जाता है. श्रीमद्देवीभागवत पुराण के अनुसार महालक्ष्मी ने ही त्रिदेवों को प्रकट किया है और इनसे ही महाकाली और महासरस्वती की उत्पत्ति हुई. इन्होंने स्वयं जगत के पालनहार भगवान विष्णु के साथ रहने का निश्चय किया. ये जीव जंतुओं को प्राण प्रदान करती हैं और अपने उपासकों के लिए मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करती हैं.
धन लक्ष्मी : ये मां लक्ष्मी का दूसरा स्वरूप हैं और इन्हें धन की देवी कहा जाता है. इनके एक हाथ में धन से भरा कलश और दूसरे हाथ में कमल का फूल होता है. इनकी पूजा करने से आर्थिक समस्याओं से मुक्ति मिलती है. माना जाता है कि एक बार भगवान विष्णु के अवतार वेंकटेश ने देवी पद्मावती से विवाह के लिए कुबेर से कर्ज लिया, तो वे उसे चुका नहीं पाए. तब भगवान वेंकटेश की मदद के लिए लक्ष्मी मां धन की देवी के रूप में प्रकट हुईं और उन्हें कर्ज से मुक्त कराया.
धान्य लक्ष्मी : माता का तीसरा स्वरूप धान्य लक्ष्मी अन्नपूर्णा का अवतार माना जाता है. जिस घर में इनकी पूजा होती है वहां धान्य यानी अन्न का भंडार बना रहता है. इनकी पूजा का सबसे अच्छा तरीका है कि कभी भी अन्न का निरादर न करें.
गज लक्ष्मी : कमल पुष्प के ऊपर हाथी पर विराजमान रूपरूप मां लक्ष्मी का गज लक्ष्मी स्वरूप कहलाता है. इनकी तस्वीर में दोनों ओर हाथी सूंड में जल लेकर इनका जलाभिषेक कर रहे होते हैं. इन्हें कृषि और उर्वरता की देवी माना जाता है. जो लोग कृषि क्षेत्र से जुड़े हैं, उन्हें माता के इस स्वरूप की पूजा करनी चाहिए.
संतान लक्ष्मी : माता का संतान लक्ष्मी स्वरूप स्कंदमाता से मिलता-जुलता है, इसलिए इन्हें समान ही माना जाता है. संतान लक्ष्मी की चार भुजाएं हैं, दो भुजाओं में कलश और बाकी की दो में तलवार और ढाल धारण किए हुए हैं. इनकी गोद में बालक स्कंद बैठा है. जिस घर में इनकी पूजा होती है, उस परिवार के लोगों की ये संतान की तरह रक्षा करती हैं. जिन्हें संतान की कामना है, उन लोगों को संतान लक्ष्मी का पूजन करना चाहिए.
वीरा लक्ष्मी : इनके नाम से ही स्पष्ट है कि ये स्वरूप वीरता का प्रतीक है. वीरा लक्ष्मी अपनी आठ भुजाओं में तरह-तरह के अस्त्र-शस्त्र धारण करती हैं. ये वीरों और साहसी लोगों की आराध्य हैं. इनकी पूजा करने से भक्तों की अकाल मृत्यु से रक्षा होती है. इन्हें कात्यायनी माता का रूवरूप माना जाता है.
विजया लक्ष्मी : माता लक्ष्मी का सातवां स्वरूप विजया या जया लक्ष्मी के नाम से जाना जाता है. विजया लक्ष्मी लाल साड़ी पहनकर कमल पर विराजमान होती हैं. इनकी पूजा करने से भक्त को हर क्षेत्र में विजय की प्राप्ति होती है. कोर्ट कचहरी का मसला हो या धन संपत्ति से जुड़ा मामला, विजया लक्ष्मी अपने भक्तों को हर संकट से उबार देती हैं.
विद्या लक्ष्मी : माता का आठवां स्वरूप है विद्या लक्ष्मी. विद्या लक्ष्मी सफेद साड़ी पहनती हैं. इनका स्वरूप देवी ब्रह्मचारिणी से मिलता-जुलता है. इनकी पूजा से ज्ञान की प्राप्ति होती है और शिक्षा के क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है.


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