अगर मां दुर्गा की पूजा में वास्तु के नियमों का भी पालन किया जाए, तो मिलता हैं विशेष फल
नवरात्रि हिंदू धर्म का प्रमुख त्योहार है. वर्ष में दो नवरात्रि आती है. पहली चैत्र माह में तो दूसरी शारदीय नवरात्रि आती है. शारदीय नवरात्रि 17 अक्टूबर से शुरू हो गए हैं
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| नवरात्रि हिंदू धर्म का प्रमुख त्योहार है. वर्ष में दो नवरात्रि आती है. पहली चैत्र माह में तो दूसरी शारदीय नवरात्रि आती है. शारदीय नवरात्रि 17 अक्टूबर से शुरू हो गए हैं. भक्त इन नौ दिनों में माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा बड़े ही चाव और भक्ति भाव से करते हैं.
नवरात्रि के नौ दिनों में कई नियमों का पालन करना होता है, वहीं इस दौरान कई कामों को करने की मनाही भी होती है. इस दौरान अगर मां की पूजा में वास्तु के नियमों का भी पालन किया जाए तो पूजा का विशेष फल मिलता है.
माता का दरबार साफ़-सुथरी जगह पर स्थापति करना चाहिए. किसी भी प्रकार की गंदगी नकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाती है.
माता की स्थापना चंदन की चौकी या पट करना बहुत शुभ माना जाता है. वास्तुशास्त्र में चंदन को अत्यंत शुभ और सकारात्मक ऊर्जा का केंद्र माना गया है.
पूजन कक्ष की दीवारें हल्के पीले, गुलाबी,हरे, बैंगनी रंग की होनी चाहिए. माना जाता है कि ये रंग सकारात्मक ऊर्जा के स्तर को बढ़ाते है. इसके साथ पूजन कक्ष में काले,नीले और भूरे रंगों के प्रयोग से बचना चाहिए.
माता की प्रतिमा या कलश की स्थापना ईशान कोण में की जानी चाहिए. वास्तु शास्त्र में ईशान कोण को देवताओं का स्थल बताया गया है.
अखंड ज्योति को पूजन स्थल के आग्नेय कोण में रखा जाना चाहिए, क्योंकि आग्नेय कोण अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करता है. इस कोण में अखंड ज्योति रखने से घर के अंदर सुख-समृद्धि आती है.
पूजा के समय आराधक का मुंह पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रहना चाहिए. पूर्व दिशा के स्वामी सूर्य माने जाते हैं. मान्यता है कि पूर्व दिशा की ओर मुख कर पूजा करने से साधक का यश चारों और फैल जाता है.
नवरात्रि की पूजा में प्रयोग में लाए जाने वाले रोली या कुमकुम से पूजन स्थल के दरवाजे के दोनों ओर स्वस्तिक बनाया जाना बेहद शुभ माना गया है.