हुक्मनामा श्री हरिमंदिर साहिब जी 23 जून 2024

Update: 2024-06-23 02:45 GMT
धर्म : बिलावलु महला ४ असटपदीआ घरु ११ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ आपै आपु खाइ हउ मेटै अनदिनु हरि रस गीत गवईआ ॥ गुरमुखि परचै कंचन काइआ निरभउ जोती जोति मिलईआ ॥१॥ मै हरि हरि नामु अधारु रमईआ ॥ खिनु पलु रहि न सकउ बिनु नावै गुरमुखि हरि हरि पाठ पड़ईआ ॥१॥ रहाउ ॥ एकु गिरहु दस दुआर है जा के अहिनिसि तसकर पंच चोर लगईआ ॥ धरमु अरथु सभु हिरि ले जावहि मनमुख अंधुले खबरि न पईआ ॥२॥कंचन कोटु बहु माणकि भरिआ जागे गिआन तति लिव लईआ ॥ तसकर हेरू आइ लुकाने गुर कै सबदि पकड़ि बंधि पईआ ॥३॥ हरि हरि नामु पोतु बोहिथा खेवटु सबदु गुरु पारि लंघईआ ॥ जमु जागाती नेड़ि न आवै ना को तसकरु चोरु लगईआ ॥४॥
हरि गुण गावै सदा दिनु राती
मै हरि जसु कहते अंतु न लहीआ ॥ गुरमुखि मनूआ इकतु घरि आवै मिलउ गुोपाल नीसानु बजईआ ॥५॥ नैनी देखि दरसु मनु त्रिपतै स्रवन बाणी गुर सबदु सुणईआ ॥ सुनि सुनि आतम देव है भीने रसि रसि राम गोपाल रवईआ ॥६॥ त्रै गुण माइआ मोहि विआपे तुरीआ गुणु है गुरमुखि लहीआ ॥ एक द्रिसटि सभ सम करि जाणै नदरी आवै सभु ब्रहमु पसरईआ ॥७॥ राम नामु है जोति सबाई गुरमुखि आपे अलखु लखईआ ॥ नानक दीन दइआल भए है भगति भाइ हरि नामि समईआ ॥८॥१॥४॥
हरि हरि नामु पोतु बोहिथा खेवटु सबदु गुरु पारि लंघईआ ॥ जमु जागाती नेड़ि न आवै ना को तसकरु चोरु लगईआ ॥४॥हरि गुण गावै सदा दिनु राती मै हरि जसु कहते अंतु न लहीआ ॥ गुरमुखि मनूआ इकतु घरि आवै मिलउ गुोपाल नीसानु बजईआ ॥५॥ नैनी देखि दरसु मनु त्रिपतै स्रवन बाणी गुर सबदु सुणईआ ॥ सुनि सुनि आतम देव है भीने रसि रसि राम गोपाल रवईआ ॥६॥ त्रै गुण माइआ मोहि विआपे तुरीआ गुणु है गुरमुखि लहीआ ॥ एक द्रिसटि सभ सम करि जाणै नदरी आवै सभु ब्रहमु पसरईआ ॥७॥ राम नामु है जोति सबाई गुरमुखि आपे अलखु लखईआ ॥ नानक दीन दइआल भए है भगति भाइ हरि नामि समईआ ॥८॥१॥४॥

हे भाई! आँखों से (हर जगह प्रभू के) दर्शन करके (मेरा) मन (और वासना से) तृप्त रहता है, (मेरे) कान गुरू की बाणी गुरू के शबद को (ही) सुनते रहते हैं। (प्रभू की सिफत सालाह) सुन-सुन के (मेरी) जिंद (नाम-रस में) भीगी रहती है, (मैं) बड़े आनंद से राम-गोपाल के गुण गाता रहता हूँ।6। हे भाई! माया के तीन गुणों के असर तले रहने वाले जीव (सदा) माया के मोह में फसे रहते हैं। गुरू के सन्मुख रहने वाला मनुष्य (वह) चौथा पद प्राप्त कर लेता है (जहाँ माया का प्रभाव नहीं पड़ सकता)।

(गुरू के सन्मुख रहने वाला मनुष्य) एक (प्यार-भरी) निगाह से सारी दुनिया को एक जैसा जानता है, उसको (यह प्रत्यक्ष) दिखाई देता है (कि) हर जगह परमात्मा ही पसरा हुआ है।7। हे भाई! गुरू के सन्मुख रहने वाला मनुष्य (ये) समझ लेता है कि अलख प्रभू स्वयं ही स्वयं (हर जगह मौजूद) है, हर जगह परमात्मा का ही नाम है, सारी दुनिया में परमात्मा की ही ज्योति है। हे नानक! दीनों पर दया करने वाले प्रभू जी जिन पर मेहरवान होते हैं, वह मनुष्य भक्ति-भावना से परमात्मा के नाम में लीन रहते हैं।8।1।

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