गोंड महला ५ ॥ नामु निरंजनु नीरि नराइण ॥ रसना सिमरत पाप बिलाइण ॥१॥ रहाउ॥ नाराइण सभ माहि निवास ॥ नाराइण घटि घटि परगास ॥ नाराइण कहते नरकि न जाहि ॥ नाराइण सेवि सगल फल पाहि ॥१॥ नाराइण मन माहि अधार ॥ नाराइण बोहिथ संसार ॥ नाराइण कहत जमु भागि पलाइण ॥ नाराइण दंत भाने डाइण ॥२॥ नाराइण सद सद बखसिंद ॥ नाराइण कीने सूख अनंद ॥ नाराइण प्रगट कीनो परताप ॥ नाराइण संत को माई बाप ॥३॥ नाराइण साधसंगि नराइण ॥ बारं बार नराइण गाइण ॥ बसतु अगोचर गुर मिलि लही ॥ नाराइण ओट नानक दास गही ॥४॥१७॥१९॥
अर्थ: हे भाई! नारायण का नाम माया की कालिख से बचाने वाला (है, इसको अपने हृदय में) सींच। (ये नाम) जीभ से जपते हुए (सारे) पाप दूर हो जाते हैं।1। रहाउ। हे भाई! सब जीवों में नारायण का निवास है, हरेक शरीर में नारायण (की ज्योति) का ही प्रकाश है। नारायण (का नाम) जपने वाले जीव नर्क में नहीं पड़ते। नारायण की भक्ति करके सारे फल प्राप्त कर लेते हैं।1। हे भाई! नारायण (के नाम) को (अपने) मन में आसरा बना ले, नारायण (का नाम) संसार-समुंदर में पार लंघाने के लिए जहाज है। नारायण का नाम जपने से जम भाग के परे चला जाता है। नारायण (का नाम माया रूपी) डायन के दाँत तोड़ देता है।2। हे भाई! नारायण सदा ही बख्शनहार है। नारायण (अपने सेवकों के दिल में) सुख-आनंद पैदा करता है, (उनके अंदर अपना) तेज-प्रताप प्रकट करता है। हे भाई! नारायण अपने सेवकों-संतों का माता-पिता (जैसे रखवाला) है।3। हे भाई! जो मनुष्य साधु-संगत में टिक के सदा नारायण का नाम जपते हैं, बार-बार उसकी महिमा के गीत गाते हैं, वे मनुष्य गुरु को मिल के (वह मिलाप-रूपी कीमती) वस्तु पा लेते हैं जो इन इन्द्रियों की पहुँच से परे है। हे नानक! नारायण के दास सदा नारायण का आसरा लिए रखते हैं।