साल की अंतिम संकष्टी चतुर्थी को किस प्रकार करनी चाहिए पूजा, जाने
वर्ष की अंतिम संकष्टी चतुर्थी 22 दिसंबर को है। तृतीया तिथि शाम 4.53 बजे तक है। इस व्रत में चतुर्थी का चंद्रमा होना अनिवार्य है, इसलिए 22 दिसंबर को ही गणेश चतुर्थी है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। वर्ष की अंतिम संकष्टी चतुर्थी 22 दिसंबर को है। तृतीया तिथि शाम 4.53 बजे तक है। इस व्रत में चतुर्थी का चंद्रमा होना अनिवार्य है, इसलिए 22 दिसंबर को ही गणेश चतुर्थी है। जिन पर शनि की साढ़ेसाती (धनु, मकर व कुंभ राशि के जातक) और ढैया (मिथुन व तुला राशि के जातक) चल रही है, उन्हें यह व्रत रखना चाहिए। जिनको धन की कमी महसूस हो रही है, उन्हें हरे रंग के गणेश की और जिनकी सेहत खराब है, उन्हें लाल गणेशजी की पूजा करनी चाहिए। मोक्ष हेतु सफेद रंग के गणेशजी की पूजा करें।
ऐसे रखें व्रत : सुबह स्नान के बाद मम सकलाभीष्टसिद्धये चतुर्थीव्रत करिष्ये मंत्र से संकल्प करके दिन भर मौन रहें। गणेशजी को बेलपत्र, अपामार्ग, शमीपत्र, दूर्वा अर्पण करें। लड्डू के साथ फल, पंचमेवा आदि चढ़ाएं। आरती आदि करके गणेश्वर गणाध्यक्ष गौरीपुत्र गजानन। व्रतं संपूर्णता यातु त्वत्प्रसादादिभानन।। मंत्र से प्रार्थना करें। रात्रि में पुन: स्नान कर गणपति पूजन के बाद चंद्रमा का पूजन करें और अर्घ्य दें। गणेश चतुर्थी व्रत करने वाले को उदित चंद्रमा, गणेश और चतुर्थी माता को अर्घ्य अवश्य देना चाहिए। गणेशजी को अर्घ्य देने का मंत्र- गणेशाय नमस्तुभ्यं सर्वसिद्धिप्रदायक। संकष्टहर म देव गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तु ते।। कृष्णपक्षे चतुर्थ्यां तु सम्पूजित विधूदये। क्षिप्रं प्रसीद देवेश गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तु ते।।
चतुर्थी माता को इस मंत्र से अर्घ्य दें- तिथिनामुत्तमे देवि गणेशप्रियवल्लभे। सर्वसंकटनाशाय गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तु ते।। चतुर्थ्यै नम: इदमर्घ्यं समर्पयामि।
इसके बाद चंद्रमा का गंध-पुष्पादि से पूजन कर तांबे के लोटे में लाल चंदन, कुश, दूर्वा, फूल, अक्षत, शमीपत्र, दही और जल एकत्र कर, नारद पुराण के इस मंत्र का पाठ करते हुए अर्घ्य दें-गगनार्णवमाणिक्य चन्द्र दाक्षायणीपते। गृहाणार्घ्यं मया दत्तं गणेशप्रतिरूपक।।
कृष्ण पक्ष की चतुर्थी में गणेशजी व तिथि को तीन तथा चंद्रमा को सात अर्घ्य देना चाहिए। शुक्ल पक्ष चतुर्थी में गणेशजी, तिथि और चंद्रमा को केवल एक-एक बार जल देते हैं। हां, भाद्रपद शुक्ल पक्ष को मध्याह्न में तिथि के लिए तीन बार व रात में चंद्र के उदय होने पर उन्हें, गणेशजी और चतुर्थी माता को अर्घ्य देते हैं। बिना अर्घ्य के व्रत पूरा नहीं होता