शनि देव कैसे बने असुरों के प्रतिनिधि?
शनि देव अपनी मां छाया के लिए महादेव से जीवनदान लेने के बाद सभी मोह बंधन से मुक्त होकर अखंड प्रतिज्ञा ले चुके थे
Mahima Shanidev Ki : शनि देव (Shani Dev) अपनी मां छाया के लिए महादेव से जीवनदान लेने के बाद सभी मोह बंधन से मुक्त होकर अखंड प्रतिज्ञा ले चुके थे. यह न्यायधिकारी बनने का उनका पहला कदम था. इसके बाद त्रिदेवों ने सृष्टि में जीवन के एक नए अध्याय का प्रारंभ किया.
Mahima Shani Dev Ki : पौराणिक कथाओं के अनुसार त्रिदेवों ने तय किया था कि देवों के लिए स्वर्ग, असुरों के लिए पाताल के अलावा धरती का निर्माण होना है. इस पर देवों का अधिकार होगा या दानवों का, इसका फैसला लेने के लिए दोनों पक्षों को एक सभा बुलानी चाहिए. महादेव के आदेश पर खुद इंद्र पाताल जाकर शुक्राचार्य को इसके लिए कैलास लाते हैं. साथ ही तय होता है कि सभा सूर्यलोक में बुलाई जाएगी. मान्यता है कि इस सभा के लिए एक कठिन शर्त भी जोड़ी गई थी, जिसके मुताबिक दोनों पक्षों को अपना-अपना प्रतिनिधि चुनना था, जिनके तर्क-वितर्क के आधार पर तय होता कि वास्तव में धरती पर किसका अधिकार होगा. इसमें हारने वाले को सदा के लिए पृथ्वी पर भटकना था.
शुक्राचार्य ने शनिदेव को चुना प्रतिनिधि
दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने शनि देव के न्याय के निर्णय को देखते हुए उन्हें अपना प्रतिनिधि चुना. किवदंती है कि कैलास का मार्ग बताने में मदद करने के लिए शनि ने उन्हें कभी भी मदद मांगने पर पक्ष में उपस्थित रहने का आश्वासन दिया था, जिसके चलते शनि को असुरों का प्रतिनिधि बनना पड़ा.
वहीं देवराज इंद्र ने सूर्यदेव को अपना प्रतिनिधि चुना. सभा के निर्णायक के तौर पर देवर्षि नारद चुने गए. मगर तर्क वितर्कों के बीच दोनों पक्षों में संघर्ष होने लगा, जिसके कारण खुद महादेव को आकर संघर्ष रुकवाना पड़ा और तर्क-वितर्क से पूरी होने वाली प्रक्रिया का अंत हो गया.