आज मोहिनी एकादशी पर सुनें ​यह व्रत कथा...आपको होगा विशेष लाभ

मोहिनी एकादशी व्रत आज रविवार 23 मई को है। इस दिन व्रत रखते हुए भगवान विष्णु की विधिपूर्वक पूजा की जाती है।

Update: 2021-05-23 01:56 GMT

मोहिनी एकादशी व्रत आज रविवार 23 मई को है। इस दिन व्रत रखते हुए भगवान विष्णु की विधिपूर्वक पूजा की जाती है। पूजा के दौरान मोहिनी एकादशी व्रत की कथा का श्रवण किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि व्रत की कथा का श्रवण करने से व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है। आइए जानते हैं मोहिनी एकादशी व्रत की कथा के बारे में।

मोहिनी एकादशी व्रत कथा
एक बार भगवान श्रीराम ने अपने गुरुदेव से कहा कि आप कोई ऐसा व्रत बताएं, जिससे सभी पाप और दुखों का नाश हो जाए। मैंने सीताजी के वियोग में बहुत दुख भोगे हैं। इस पर महर्षि वशिष्ठ जी श्रीराम से बोले, हे राम! आपने बहुत सुंदर प्रश्न किया है। लोकहित में ये प्रश्न बहुत कल्याणकारी है। वैशाख मास में जो एकादशी आती है, उसका नाम मोहिनी एकादशी है। इस एकादशी का व्रत करने से मनुष्य सब पापों और दुखों से छुटकारा पा जाता है। मैं इसकी कथा कहता हूं। ध्यान से सुनो।
सरस्वती नदी के तट पर भद्रावती नगर था। वहां द्युतिमान नामक चंद्रवंशी राजा का राज था। इस नगर में हर तरह से संपन्न विष्णु भक्त धनपाल नामक वैश्य भी रहता था। वैश्य ने नगर में कई भोजनालय, प्याऊ, कुए, तालाब और धर्मशाला बनवाए थे। साथ ही नगर की सड़कों पर आम, जामुन, नीम के अनेक छायादार पेड़ भी लगवाए थे। वैश्य के 5 पुत्र थे, जिनका नाम सुमना, सद्बुद्धि, मेधावी, सुकृति और धृष्टबुद्धि था।
उसका पांचवा पुत्र खराब आदतों वाला था। वो माता-पिता और भाइयों किसी की भी बातें नहीं मानता था। वह बुरी संगति में रहकर जुआ खेलता और पराई स्त्री के साथ भोग-विलास करता और मांस-मदिरा का भी सेवन करता था। इसी प्रकार अनेक बुरे कामों से वो पिता के धन को नष्ट करता था।
पुत्र के कुकर्मों से परेशान होकर धनपाल ने धृष्टबुद्धि को घर से निकाल दिया। अब वह अपने गहने-कपड़े बेचकर जीवन यापन करने लगा। जब उसके पा कुछ भी नहीं रहा, तो बुरे कामों में साथ देने वाले दोस्तों ने भी उसे छोड़ दिया। भूख-प्यास से परेशान धनपाल के पुत्र ने चोरी का रास्ता अपनाया, लेकिन वो चोरी करते हुए पकड़ा गया। उसे राजा के सामने हाजिर किया गया, लेकिन वैश्य का पुत्र जानकर राजा ने उसे चेतावनी देकर जाने दिया।
धृष्टबुद्धि के सामने चोरी के अलावा और कोई रास्ता नहीं था, तो उसने फिर चोरी की और इस बार भी वो पकड़ा गया। दूसरी बार फिर पकड़े जाने पर राजा ने उसे कारागार में डाल दिया, जहां उसे बहुत दुख दिए गए और बाद में उसे नगर से निकाल दिया गया।
नगर से निकाले जाने पर धृष्टबुद्धि वन में चला गया। वहां वो पशु-पक्षियों का शिकार करके उन्हें खाने लगा और कुछ समय के बाद वो बहेलिया बन गया। एक दिन वो भूख और प्यास से व्याकुल खाने की तलाश में कौडिन्य ऋषि के आश्रम पहुंच गया। उस समय वैशाख मास था और महर्षि गंगा स्नान कर वापस आ रहे थे। महर्षि के भींगे वस्त्रों के छींटे उस पर पड़ने से उसे कुछ ज्ञान की प्राप्ति हुई।


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