संतान सुख के लिए कादशी के दिन सुनें ये व्रत कथा

पूरे साल में 24 एकादशी के व्रत होते हैं, सभी व्रत भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय होते हैं

Update: 2021-01-22 03:27 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्कपूरे साल में 24 एकादशी के व्रत होते हैं, सभी व्रत भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय होते हैं. हर व्रत का अलग महत्व होता है. इन्हीं में से एक है पुत्रदा एकादशी जो साल में दो बार आती है. एक बार पौष माह में और दूसरी बार श्रावण माह में. पौष के महीने में पड़ने वाली पुत्रदा एकादशी 24 जनवरी को है. इसे पौष पुत्रदा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है.

मान्यता है कि जो भी भक्त एकादशी के दिन व्रत रखता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. नारायण के साथ माता लक्ष्मी की भी उस पर और उसके परिवार पर कृपा बनी रहती है. इस वजह से परिवार में धन धान्य और संपन्नता बनी रहती है. माना जाता है कि जिन लोगों की गोद सूनी है, वे अगर पुत्रदा एकादशी का व्रत रखें तो उन्हें संतान की प्राप्ति होती है. जो लोग व्रत रखने में सक्षम नहीं हैं, वे इस दिन भगवान की पूजा के दौरान पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा तो जरूर पढ़ें या सुनें. कहा जाता है कि इस कथा के श्रवण मात्र से भी मनोरथ सिद्ध होते हैं.
भगवान कृष्ण ने अर्जुन को सुनाई थी कथा
भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में अर्जुन ने प्रणाम कर श्रद्धापूर्वक प्रार्थना की कि हे मधुसूदन आप पौष माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी के महात्म्य को बताने की कृपा करें. अर्जुन की प्रार्थना सुनकर भक्तवत्सल भगवान श्रीकृष्ण बोले कि हे पार्थ इस एकादशी का नाम पुत्रदा एकादशी है. इस एकादशी के दिन भी नारायण भगवान की पूजा की जाती है. इस चर और अचर संसार में पुत्रदा एकादशी के व्रत के समान दूसरा कोई व्रत नहीं है. इसके पुण्य से मनुष्य तपस्वी, विद्वान और लक्ष्मीवान होता है. मैं इसकी कथा सुनाता हूं, जिसे तुम ध्यान पूर्वक सुनो.
ये है कथा
भद्रवती राज्य में सुकेतुमान नाम का राजा था. राजा की पत्नी का नाम शैव्या था. दोनों की कोई संतान नहीं थी. इस वजह से राजा और रानी के जीवन में उदासी थी. राजा के मन में इस बात की बड़ी चिंता थी कि उनकी मृत्यु के बाद उन्हें और पूर्वजों को कौन पिंडदान देगा. एक दिन सुकेतुमान सब कुछ त्याग कर जंगल में चला गया और वहां एक तालाब के किनारे बैठ कर मृत्यु के बारे में सोचने लगा. वहां पर ऋषि मुनियों के आश्रम बने हुए थे. राजा आश्रम में गया तो वहां ऋषि मुनियों ने उदासी की वजह पूछी.
इस पर राजा ने कोई संतान न होने का दुख व्यक्त किया. राजा की बात सुनकर ऋषि मुनि ने राजा को पुत्रदा एकादशी पर व्रत रखने के लिए कहा. ऋषि मुनि की बात को मानकर राजा ने विधि विधान से पुत्रदा एकादशी का व्रत रखा और द्वादशी को पारण किया. इसके कुछ समय पश्चात ही रानी ने गर्भ धारण किया और नौ माह बाद राजा रानी को पुत्र की प्राप्ति हुई. इसके बाद श्रीकृष्ण भगवान ने कहा कि पुत्र के न होने से बड़ा दुख है, कुपुत्र का होना. ऐसे में जो लोग इस कथा को पढ़ते या सुनते हैं, उन्हें शूरवीर, यशस्वी और सुयोग्य पुत्र की प्राप्ति होती है.


Tags:    

Similar News

-->