विवाह के लिए वर-कन्या की जन्म-कुंडली का मिलान है महत्वपूर्ण, इन प्रमुख बातों पर होता है विचार

अष्टकूट मिलान में वर कन्या के जन्म नक्षत्र का प्रयोग किया जाता है

Update: 2021-03-02 12:42 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। अष्टकूट मिलान में वर कन्या के जन्म नक्षत्र का प्रयोग किया जाता है. जन्म नक्षत्र न होने पर नामाक्षर के आधार पर नक्षत्र देख गुण मिलान किया जाता है.

-वर्ण- मानसिक अभिरुचियों से संबंधित होता है. इसमें चार वर्ण होते हैं. इसे अंग्रेजी में एटीट्यूड कहते हैं.
-वश्य- यह भावनात्मक संबंध को दर्शाता है.
-तारा- भाग्योदय का द्योतक है. इसका संबंध वर कन्या की सफलता से होता है.
-योनि- यह प्रणय संबंध को दर्शाता है. इसमें प्रत्येक नक्षत्र को अश्व, श्वान, गज आदि जीवों से जोड़ा गया है.
-ग्रहमैत्री- इसके आधार पर आपसी विश्वास और सहयोग की स्थिति का आंकलन किया जाता है.
-गण- इससे कुटुम्ब के साथ संबंध और सामंजस्य का आंकलन होता है.
-भकूट- दाम्पत्य जीवन में मधुरता और प्रेम का आंकलन में सहायक होता है.
-नाड़ी- दाम्पत्य जीवन में स्थिरता का द्योतक है. नाड़ी मात्र तीन होती हैं. मध्य, आदि और अंत्य नाड़ी. नाड़़ी अलग होने पर ही नाड़ी मिलान माना जाता है.
उक्त आठ पैमानों के आधार पर गुण मिलान किया जाता है. इन सभी का कुल योग अंक 36 होता है. इनमें 18 या इससे अधिक गुण मिलने पर मिलान शुभ माना जाता है. साथ ही नाड़ी और भकूट पर विशेष विचार किया जाता है. नाड़ी और भकूट के अंक क्रमशः 8 और 7 होते हैं. इन दोनों के मिल जाने पर कुंडली मिलान की संभावना अत्यंत प्रबल हो जाती है. इन दोनों के सकारात्मक होने पर कुल 15 अंक का योग गुण मिलान में बन जाता है.
गुण मिलान के अलावा मांगलिक दोष पर भी विचार किया जाना आवश्यक है. जन्मनक्ष़त्र के पता न होने पर ही विवाहादि में नामाक्षर नक्षत्र पर विचार होता है.




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