7 अक्टूबर से घर विराजेंगी देवी दुर्गा, जानिए 9 स्वरूपों की पूजा से कैसा मिलता है फल

शारदीय नवरात्रि इस बार 7 अक्टूबर, गुरुवार से प्रारंभ होकर 14 अक्टूबर तक रहेंगे।

Update: 2021-10-05 03:39 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। शारदीय नवरात्रि इस बार 7 अक्टूबर, गुरुवार से प्रारंभ होकर 14 अक्टूबर तक रहेंगे। हर दिन मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। देवी भागवत के अनुसार मां भगवती ही ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश के रूप में सृष्टि का सृजन, पालन और संहार करती हैं। भगवान शंकर के कहने पर रक्तबीज, शुंभ-निशुंभ, मधु-कैटभ आदि दानवों का संहार करने के लिए माँ पार्वती ने असंख्य रूप धारण किए किंतु नवरात्रि के नौ दिनों में देवी दुर्गा के मुख्य नौ रूपों की पूजा-अर्चना की जाती है।

प्रथम शैलपुत्री

नवरात्र पूजन के प्रथम दिन कलश पूजा के साथ ही माँ दुर्गा के पहले स्वरुप 'शैलपुत्री जी' का पूजन किया जाता है। नवदुर्गाओं में प्रथम शैलपुत्री दुर्गा का महत्व और शक्तियाँ अनंत हैं। माँ शैलपुत्री देवी पार्वती का ही स्वरुप हैं जो सहज भाव से पूजन करने से शीघ्र प्रसन्न हो जाती हैं और भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करती हैं।

द्वितीय ब्रह्मचारिणी

माँ दुर्गा की नवशक्तियों का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है। भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए इन्होंने हजारों वर्षों तक घोर तपस्या की थी। इनकी पूजा से अनंत फल की प्राप्ति एवं तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम जैसे गुणों की वृद्धि होती है। इनकी उपासना से साधक को सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है।

तृतीय चंद्रघंटा

बाघ पर सवार मां दुर्गाजी की तीसरी शक्ति देवी चंद्रघंटा है। इनके मस्तक में घंटे के आकार का अर्धचंद्र विराजमान है, इसलिए इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है। इनकी आराधना से साधकों को चिरायु, आरोग्य, सुखी और संपन्न होने का वरदान प्राप्त होता है तथा स्वर में दिव्य, अलौकिक माधुर्य का समावेश हो जाता है। प्रेत-बाधादि से ये अपने भक्तों की रक्षा करती है।

चतुर्थ कूष्माण्डा 

नवरात्र के चौथे दिन शेर पर सवार माँ के कूष्माण्डा स्वरुप की पूजा की जाती हैं। इन्हीं के तेज और प्रकाश से दसों दिशाएं प्रकाशित हो रही हैं। देवी कूष्मांडा अपने भक्तों को रोग, शोक और विनाश से मुक्त करके आयु, यश, बल और बुद्धि प्रदान करती हैं।

पंचम स्कंदमाता

भगवान स्कंद(कार्तिकेय) की माता होने के कारण देवी के इस पांचवें स्वरुप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है। यह कमल के आसान पर विराजमान हैं इसलिए इन्हें पद्मासन देवी भी कहा जाता है। स्कंदमाता की साधना से साधकों को आरोग्य, बुद्धिमता तथा ज्ञान की प्राप्ति होती है।

षष्टम कात्यायनी

मां कात्यायनी देवताओं और ऋषियों के कार्य को सिद्ध करने के लिए महर्षि कात्यान के आश्रम में प्रकट हुईं इसलिए इनका नाम कात्यायनी पड़ा। यह देवी दानवों और शत्रुओं का नाश करती है। देवी भागवत पुराण के अनुसार देवी के इस स्वरुप की पूजा करने से शरीर कांतिमान हो जाता है। इनकी आराधना से गृहस्थ जीवन सुखमय रहता है।

सप्तम कालरात्रि

सातवां स्वरुप है माँ कालरात्रि का। इन्हें तमाम आसुरिक शक्तियों का विनाश करने वाली देवी बताया गया है। ये देवी अपने उपासकों को अकाल मृत्यु से भी बचाती हैं। इनके नाम के उच्चारण मात्र से ही भूत, प्रेत, राक्षस और सभी नकारात्मक शक्तियां दूर भागती हैं। माँ कालरात्रि की पूजा से ग्रह-बाधा भी दूर होती हैं। 

अष्टम महागौरी

दुर्गाजी की आठवीं शक्ति देवी महागौरी भक्तों के लिए देवी अन्नपूर्णा स्वरुप हैं इसलिए अष्टमी के दिन कन्याओं के पूजन का विधान है। इनकी पूजा से धन, वैभव और सुख-शांति की प्राप्ति होती हैं। उपासक सभी प्रकार से पवित्र और अक्षय पुण्यों का अधिकारी हो जाता है।

नवम सिद्धिदात्री

माँ सिद्धिदात्री भक्तों और साधकों को सभी प्रकार की सिद्धियां प्रदान करने में समर्थ हैं। मान्यता है कि सभी देवी-देवताओं को भी माँ सिद्धिदात्री से ही सिद्धियों की प्राप्ति हुई है। इनकी उपासना से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।भक्त इनकी पूजा से यश,बल और धन की प्राप्ति करते हैं ।

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