Ganesh Chaturthi Upay: गणेश चतुर्थी से लेकर अनंत चौदस तक, इसे पढ़ने से होगा लाभ

अगर किसी के ऊपर कर्ज होता है तो गणेश ऋणमुक्ति स्तोत्र का पाठ करने से उससे मुक्ति मिल जाती है. सच्चे मन से की गई प्रार्थना को गणेश भगवान निश्चित ही स्वीकार करते हैं.

Update: 2021-09-11 16:21 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। Read Ganesh Strota: 10 दिवसीय गणेश महोत्सव (ganesh mahotsav) की शुरुआत हो चुकी है. भक्तों ने घरों में गणपति की स्थापना (ganpati sthapna) कर ली है. घर में बप्पा को दस दिन तक विराजमान किया जाता है. लेकिन अगर कोई डेढ़ दिन, तीन दिन और सात दिन स्थापित करना चाहे, तो वे भी अपनी श्रद्धा अनुसार बप्पा को घर में विराजमान कर सकता है. घर पर गणपति स्थापना के बाद कुछ नियमों का पालन करना जरूरी होता है.

विघ्नहर्ता गणेश (vighanharta ganesh) को प्रसन्ना करने के लिए घर में स्थापना करने के बार विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है. इसके बाद उनकी आरती की जाती है और उन्हें मोदक और लड्डू का भोग लगाया जाता है.
कहते हैं कि बप्पा अपने भक्तों के सभी कष्टों का हरन कर लेते हैं. इतना ही नहीं, उनके घर सुख-समृद्धि का वास होता है. धन की कमभी कमी नहीं होती. लेकिन अगर आप गणेश चतुर्थी से लेकर अन्नत चौदस तक गणेश स्तोत्र का पाठ करेंगे, तो लक्ष्मी जी की कृपा आप पर जिंदगी भर बनी रहेगी. धार्मिक मानय्ता है कि गणेश ऋणमुक्ति स्तोत्र का पाठ (do ganesh strotra path) करने से अगर किसी के ऊपर कर्ज होता है,तो उससे मुक्ति मिल जाती है. सच्चे मन से की गई प्रार्थना को गणेश भगवान निश्चित ही स्वीकार करते हैं और कर्ज से मुक्ति दिलाते हैं.
Ganpati Strotra (गणपति स्तोत्र)
ध्यान : ॐ सिन्दूर-वर्णं द्वि-भुजं गणेशं लम्बोदरं पद्म-दले निविष्टम्
ब्रह्मादि-देवैः परि-सेव्यमानं सिद्धैर्युतं तं प्रणामि देवम्
मूल-पाठ
सृष्ट्यादौ ब्रह्मणा सम्यक् पूजित: फल-सिद्धए,
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे.
त्रिपुरस्य वधात् पूर्वं शम्भुना सम्यगर्चित:,
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे.
हिरण्य-कश्यप्वादीनां वधार्थे विष्णुनार्चित:,
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे.
महिषस्य वधे देव्या गण-नाथ: प्रपुजित:,
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे.
तारकस्य वधात् पूर्वं कुमारेण प्रपूजित:,
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे.
भास्करेण गणेशो हि पूजितश्छवि-सिद्धए,
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे.
शशिना कान्ति-वृद्धयर्थं पूजितो गण-नायक:,
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे.
पालनाय च तपसां विश्वामित्रेण पूजित:,
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे.
इदं त्वृण-हर-स्तोत्रं तीव्र-दारिद्र्य-नाशनं,
एक-वारं पठेन्नित्यं वर्षमेकं सामहित:,
दारिद्रयं दारुणं त्यक्त्वा कुबेर-समतां व्रजेत्


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