अखंड सौभाग्य के लिए सुहागिन महिलाएं रखें वट पूर्णिमा व्रत

हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को वट पूर्णिमा का व्रत होता है। इस दिन भी सुहागिन महिलाएं ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को पड़ने वाले वट सावित्री व्रत तरह की व्रत रखकर वट वृक्ष की पूजा करती है।

Update: 2022-06-14 04:40 GMT

सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए व्रत रखती हैं। इस व्रत को महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारतीय राज्यों में अधिक मनाया जाता है। इस जगहों की सुहागिन महिलाएं उत्तर भारतीय की तुलना में 15 दिन के बाद वट सावित्री का व्रत रखती हैं। जानिए वट पूर्णिमा व्रत का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि।

वट सावित्री पूर्णिमा तारीख, शुभ मुहूर्त

ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा तिथि प्रारंभ - 13 जून को रात 9 बजकर 02 मिनट से शुरू

ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा तिथि समाप्त - 14 जून को 05 बजकर 21 मिनट तक

पूजा का शुभ मुहूर्त : 14 जून को सुबह 11 बजकर 54 मिनट से दोपहर 12 बजकर 49 मिनट तक

वट पूर्णिमा पर बन रहा खास योग

वट पूर्णिमा के दिन काफी खास योग बना रहा है। 13 जून दोपहर 1 बजकर 42 मिनट से लेकर 14 जून को सुबह 9 बजकर 40 मिनट तक साध्य योग रहेगा। इसके साथ ही शुभ योग 14 जून सुबह 9 बजकर 40 मिनट से शुरू होकर 15 जून सुबह 5 बजकर 28 मिनट तक रहेगा।

ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि करके सुहागिन महिलाएं साफ वस्त्र पहनकर सोलह श्रृंगार कर लें।

बरगद के पेड़ के नीचे जाकर गाय के गोबर से सावित्री और माता पार्वती की मूर्ति बना लें। अगर गोबर नहीं हैं तो सुपारी का इस्तेमाल कर सकती हैं।

सावित्री और मां पार्वती का प्रतीक बनाने के लिए दो सुपारी में कलावा लपेटकर बना लें।

अब चावल, हल्दी और पानी से मिक्स पेस्ट बना लें और इसे हथेलियों में लगाकर सात बार बरगद में छापा लगा दें।

अब वट वृक्ष में जल अर्पित करें।

फूल, माला, सिंदूर, अक्षत, मिठाई, खरबूज, आम, पंखा सहित अन्य फल अर्पित करें।

फिर 14 आटा की पूड़ियों लें और हर एक पूड़ी में 2 भिगोए हुए चने और आटा-गुड़ के बने गुलगुले रख दें और इसे बरगद की जड़ में रख दें।

फिर जल अर्पित कर दें।

घी का दीपक और धूप जला दें।

अब सफेद सूत का धागा या कलावा लेकर वृक्ष के चारों ओर परिक्रमा करते हुए बांध दें।

5 से 7 या फिर अपनी श्रद्धा के अनुसार परिक्रमा कर लें। इसके बाद बचा हुआ धागा वहीं पर छोड़ दें।

इसके बाद हाथों में भिगोए हुए चना लेकर व्रत की कथा सुन लें। फिर इन चने को अर्पित कर दें।

फिर सुहागिन महिलाएं माता पार्वती और सावित्री के को चढ़ाए गए सिंदूर को तीन बार लेकर अपनी मांग में लगा लें।

अंत में भूल चूक के लिए माफी मांग लें।

इसके बाद महिलाएं अपना व्रत खोल सकती हैं।

व्रत खोलने के लिए बरगद के वृक्ष की एक कोपल और 7 चना लेकर पानी के साथ निगल लें।


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