जानिए राहु और केतु की पौराणिक कथा
समुद्र मंथन के समय बहुत सी दिव्य वस्तुओं निकलीं जिनमें से अमृत भी था. पौराणिक कथा के अनुसार अमृत की चाहत में एक असुर स्वरभानु वेश बदल कर देवताओं की पंक्ति में बैठ गया. अमृत वितरण का कार्य विष्णु जी कर रहे थे और उन्होंने इसकी शुरुआत देवताओं की तरफ से की. उन्होंने जान लिया कि देवताओं में एक असुर भी आकर बैठ गया है, लेकिन तब तक वह अमृत ग्रहण कर चुका था. विष्णु जी ने अपने सुदर्शन चक्र से स्वर भानु राक्षस का सिर काट दिया. कटा हुआ सिर असुरों की पंक्ति की तरफ गिरा जिसका नाम राहू पड़ा और देवताओं की पंक्ति में धड़ गिर पड़ा जिसका नाम केतु पड़ा. यहां पर राहु और केतु में अंतर को समझना आवश्यक है, राहू असुरों की पंक्ति में गिरा तो उसकी प्रवृत्ति आसुरी हो गई, वह एक पापी ग्रह है जबकि केतु के देवताओं की पंक्ति में गिरने से वह शुभ ग्रह हो गया, यह ग्रह वैराग्य या संन्यास देने वाला है.
नाना और दादी के दुलारे हैं तो केतु भी खुश
केतु का संबंध नाना और दादी से होता है जिस तरह राहु का संबंध दादा और नानी से होता है. जो लोग अपने नाना और दादी के दुलारे होते हैं, केतु स्वाभाविक रूप से प्रसन्न रहते हैं. केतु के शुभ फल पाने के लिए लोग लहसुनिया रत्न को धारण करते हैं. जो लोग लहसुनिया रत्न धारण करने के बाद पूरा फल पाना चाहते हैं उन्हें अपने नाना और दादी का आशीर्वाद लेना चाहिए.
उनके संपर्क में रहना चाहिए, यदि वह आपके घर में ही रहते हैं तो रोज उनके चरण स्पर्श कर आशीर्वाद प्राप्त करें और यदि वह घर पर नहीं हैं तो समय-समय पर उनसे मिलने जाना चाहिए. यदि वह किसी दूसरे शहर में रहते हैं तो उनके मोबाइल फोन पर वीडियो कॉल कर उनके दर्शन प्राप्त करें या कभी यूं ही नॉर्मल कॉल करें. यदि इनमें से कोई या दोनों किसी रोग से ग्रस्त हैं तो जब कभी उनके पास जाएं, दवा का पर्चा लेकर उनकी दवा अपने पैसे से लेकर आएं
नाना और दादी नहीं हैं तो करें यह उपाय
जिन लोगों के नाना और दादी नहीं हैं उन्हें किसी संन्यासी या अलमस्त फकीर से संपर्क रखना चाहिए. संन्यासी केवल गेरुआ वस्त्र धारण करने वाला नहीं बल्कि जो धार्मिक और आध्यात्मिक प्रवृत्ति के हैं, उनका आशीर्वाद या सत्संग लाभ देगा. ऐसे संन्यासी के संपर्क में रहें जो सभी प्रकार के भौतिक सुखों को छोड़ कर पर्वतों की कंदराओं या जंगलों में चले गए हैं. केतु हमेशा स्प्रिचुअलिटी देता है. लहसुनिया हमेशा केतु के कोप को कम करती है किंतु केतु की तासीर में सुख समृद्धि देना नहीं है, जो बात उसके अंदर नहीं है, वह कहां से देगा. वह तो गूढ़ ज्ञान दे सकता है, वह तो आपके मन को माया मोह से वैराग्य की ओर ले जा सकता है. जान लीजिए, केतु या लहसुनिया कभी भी मेटलिस्टिक गेन नहीं कराएंगे.
ग्रहों के शुभ फल पाने या उनके कोप से बचने के लिए लोग विभिन्न प्रकार के रत्न धारण करते हैं और अपेक्षा करते हैं कि ज्योतिषाचार्य महोदय ने जिस उद्देश्य से रत्न पहनने का सुझाव दिया है, वह पूरा हो और उसका शुभ फल प्राप्त हो फिर भी कई बार ऐसा होता है कि उसका अपेक्षित फल नहीं मिल पाता. इसका मुख्य कारण है कि ग्रह से संबंधित रिश्ते की उपेक्षा.
कई बार देखा जाता है कि रत्न धारण करने वाले जाने या अनजाने में संबंधित रिश्ते की उपेक्षा करते हैं या उनके प्रति उतना सम्मान नहीं प्रदर्शित करते हैं जो करना चाहिए तो रत्न कभी भी पूरा फल नहीं देंगे जिसके लिए उन्हें धारण किया गया है. केतु का सकारात्मक यानी पॉजिटिव फल पाने के लिए लहसुनिया रत्न को धारण किया जाता है. जब तक केतु से संबंधित रिश्ते को सम्मान नहीं देंगे उसका पूर्ण शुभ और अधिक से अधिक फल नहीं प्राप्त हो सकता है.