माँ संतोषी का व्रत करने से होती है पुत्र की प्राप्ति, जानें ये व्रत कथा
शुक्रवार के दिन माता संतोषी की पूजा करने का विधान है. इस दिन माता संतोषी की विधिवत पूजा की जाती है.
जनता से रिश्ता वेबडेसक | शुक्रवार के दिन माता संतोषी की पूजा करने का विधान है. इस दिन माता संतोषी की विधिवत पूजा की जाती है. हिंदू धर्म में काफी तादाद में महिलाएं माता संतोषी का व्रत भी करती हैं, जिससे उन्हें मनोवांछित फल की प्राप्ति हो. लेकिन ये माना जाता है कि माता संतोषी का व्रत उनकी कथा को पढ़े बिना करना अधूरा माना जाता है. आज हम आपको उस कथा के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके लिए ये व्रत किया जाता है.
एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बुढ़िया थी, जिसका एक ही पुत्र था. बुढ़िया पुत्र के विवाह के बाद अपनी बहू से सारे काम करवाती थी, लेकिन उसे अच्छे से खाना नहीं देती थी. ये सब कुछ उसका बेटा देखता रहता लेकिन मां से कुछ भी नहीं कह पाता था. बहू दिनभर काम में लगी रहती थी. वो उपले थापती, रोटी-रसोई करती, बर्तन साफ करती, कपड़े धोती. इन्हीं सारे कामों में उसका पूरा दिन बीत जाता था.
काफी सोच-विचारकर एक दिन बुढ़िया के बेटे ने उससे कहा कि मां, मां परदेस जा रहा हूं. मां को बेटे की बात बहुत पसंद आई. उसने अपने बेटे को जाने की आज्ञा दे दी. इसके बाद वो अपनी पत्नी के पास जाकर बोला- मैं परदेस जा रहा हूं. अपनी कुछ निशानी दे दो. बहू बोली-मेरे पास तो निशानी देने योग्य कुछ भी नहीं है. ये कहकर वो पति के चरणों में गिरकर रोने लगी. इससे पति के जूतों पर गोबर से सने हाथों से छाप बन गई.
बेटे के जाने के बाद सास के अत्याचार बढ़ गए. एक दिन बहू बहत दुखी होकर मंदिर चली गई. वहां उसने देखा कि बहुत सारी स्त्रियां पूजा कर रही थीं. उसने उन स्त्रियों से व्रत की जानकारी ली, तो वो बोलीं कि हम संतोषी माता का व्रत कर रही हैं. इससे सभी प्रकार के कष्टों का नाश होता है. स्त्रियों ने बताया कि शुक्रवार को नहा-धोकर एक लोटे में शुद्ध जल ले गुड़-चने का प्रसाद लेकर सच्चे मन से मां का पूजन करना चाहिए. खटाई भूलकर भी नहीं खाना और न ही किसी को देना. एक वक्त का ही भोजन करना.
व्रत विधान सुनकर अब वो हर शुक्रवार को संयम से व्रत करने लगी. माता की कृपा से कुछ दिनों के बाद पति का पत्र आया. कुछ दिनों बाद पैसा भी आ गया. उसने प्रसन्न मन से फिर से व्रत किया और मंदिर में जाकर दूसरी स्त्रियों से बोली-संतोषी मां की कृपा से हमें पति का पत्र और रुपया आ गया है. अन्य सभी स्त्रियां भी श्रद्धा से व्रत करने लगीं. बहू ने कहा- हे मां! जब मेरा पति घर आ जाएगा तो मैं तुम्हारे व्रत का उद्यापन करूंगी.
एक रात संतोषी माता ने उसके पति को स्वप्न दिया और कहा कि तुम अपने घर क्यों नहीं जाते? तो वो कहने लगा-सेठ का सारा सामान अभी बिका नहीं. रुपया भी अभी नहीं आया है. उसने सेठ को स्वप्न की सारी बात कही और घर जाने की अनुमति मांगी. लेकिन सेठ ने इनकार कर दिया. माता की कृपा से कई व्यापारी आए और सोना-चांदी और दूसरे सामान खरीदकर ले गए. कर्जदार भी रुपया लौटा गए.
अब साहूकार ने उसे घर जाने की अनुमति दे दी. घर आकर बेटे ने सारे पैसे अपनी मां और पत्नी के दे दिए. पत्नी ने कहा कि मुझे संतोषी माता के व्रत का उद्यापन करना है. उसने सभी को न्योता दे दिया और उद्यापन की सारी तैयारी कर ली. पड़ोस की एक स्त्री उसे देखकर ईर्ष्या करने लगी थी. उसने अपने बच्चों को सिखा दिया कि तुम भोजन के समय खटाई जरूर मांगना.
उद्यापन के समय खाना खाते-खाते बच्चे खटाई मांगने लगे. तो बहू ने पैसा देकर उन्हें बहला दिया. बच्चे दुकान पर जाकर उन्हीं पैसों की इमली-खटाई खरीदकर खाने लगे. इस पर माता ने बहू पर कोप किया.राजा के दूत उसके पति को पकड़कर ले जाने लगे. तो किसी ने बताया कि उद्यापन में बच्चों ने पैसों की इमली-खटाई खाई है, तो बहू ने फिर से व्रत के उद्यापन का संकल्प लिया.
संकल्प के बाद वो मंदिर से निकली तो राह में पति आता दिखाई दिया. पति बोला- इतना धन जो कमाया है, उसका कर राजा ने मांगा था. अगले शुक्रवार को उसने फिर से विधिवत उद्यापन किया. इससे माता संतोषी प्रसन्न हुईं. नौ महीने के बाद उसे चांद से सुंदर पुत्र हुआ. जिसके बाद सास, बहू और बेटा माता की कृपा से आनंदपूर्वक रहने लगे.