आज भी है दोस्ती का मिसाल माना जाता है इन पौराणिक किरदारों को
पौराणिक किरदारों
भारतीय समाज में सदियों से पौराणिक कथाओं ( Indian Mythology) का प्रभाव रहा है. रामायण और महाभारत के हजारों किस्सों को कभी ना कभी किसी ना किसी बहाने से याद किया जाता है. कई किस्से शिक्षाप्रद उपदेश लिए होते हैं तो कई रिश्तों की मिसाल. इसमें मित्रता (Friendship) की मिसालें भी हमारी पौराणिक कथाओं में मिला करती हैं. अंतरराष्ट्रीय मित्रता दिवस (International Friendship Day) के मौके पर आइए जानते हैं कि पौराणिक कथाओं में वे कौन से किरदार हैं जिनहें याद किया जाता है.
कृष्ण सुदामा की बपचन से मित्रता
हिंदू पौराणिक कथाओं में जब भी मित्रता की बात होती है तो सबसे पहले कृष्ण सुदामा का जिक्र आता है. सुदामा कृष्ण के बचपन के दोस्त थे. इनकी दोस्ती सामाजिक और आर्थिक भेदभाव से परे थी. कृष्ण और सुदामा आचार्य संदीपन के आश्रम में साथ-साथ पढ़ते थे. दोनों बहुत अच्छे दोस्त बन गए. बाद में कृष्ण द्वारिकाधीश बने तो सुदामा की आर्थिक स्थिति खराब होती चली गई. पत्नी और बच्चों का पेट पालने मुश्किल होता गया. तंग आकर वे कृष्ण से मिलने गए.
कृष्ण ने रखी सखा की मित्रता की लाज
बहुत मुश्किल से वे कृष्ण से मिले लेकिन दोनों मित्रों की लंबे समय की मुलाकात में कृष्ण से अपनी आर्थिक स्थिति को बयां नही कर सके और लौट समय इसी चिंता में घुलते रहे कि घर में पत्नी से क्या कहेंगे कि उन्होंने सहायता क्यों नहीं मांगी. लेकिन कृष्ण की मदद तो उनके घर पहुंचने से पहले ही पहुंच चुकी थी. सुदामा जब घर पहुंचे तो उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा. उनका घर एक सम्पन्न महल में बदल गया था. पत्नी ने कृष्ण कृपा का बखान किया तो सुदामा अपने मित्र की कृपा से गदगद हो गए थे.
राम और सुग्रीव
रामायण में राम और सुग्रीव की मित्रता भी एक बहुत बड़ी मिसाल मानी जाती है. सीता हरण के बाद जब राम अपने भाई लक्ष्मण के साथ ऋषिमुख पहाडियों में अपनी पत्नी की तलाश में भटक रहे थे. वहीं पर राम और सुग्रीव की मुलाकात हुई. इसके बाद दोनों मित्रता के ऐसे बंधन में बंधे कि निस्वार्थभाव से जीवनभर एक-दूसरे का साथ निभाते रहे. सुग्रीव मित्र होने के बाद भी राम को ईश्वरतुल्य सम्मान देते रहे तो वहीं राम ने भी हमेशा ही सुग्रीव को भक्त के साथ-साथ मित्र का भी दर्जा दिया.
कृष्ण ने हमेशा ही अर्जुन का साथ एक मित्र (Friend) के रूप में दिया. (फाइल फोटो)
अर्जुन के सखा रूप में ईश्वर रहे कृष्ण
कृष्ण और अर्जुन के बीच ईश्वर और भक्त से भी ज्यादा रिश्ता मित्रता का था, अर्जुन कृष्ण को तो ईश्वर के रूप में ही आदर देते थे, लेकिन कृष्ण ने उन्हें हमेशा सखा रूप में अर्जुन से स्नेह भाव बनाए रखा. कृष्ण ने हमेशा ही अर्जुन और पांडवों का साथ दिया. वे अर्जुन से विशेष प्रेम रखते थे. उन्होंने अर्जुन को गीता का ज्ञान तो दिया ही पूरे युद्ध में उनके सारथि बन कर उनका मार्गनिर्देशन करते रहे.
कर्ण-दुर्योधन
महाभारत ऐसा ग्रंथ है जिसमें कोई भी दुर्योधन जैसे बुरे चरित्र के साथ भी एक अच्छाई जुड़ी है वह कर्ण के साथ मित्रता. जिस तरह दुर्योधन ने कर्ण को समाज में वह सम्मान दिलाया जिसके लिए कर्ण तरसते रहे, उसी तरह कर्ण ने भी हर परिस्थिति में दुर्योधन का साथ भले ही वे कई बार उससे वैचारिक रूप से सहमत नहीं भी रहते थे. दोनों क मित्रता एक बड़ी मिसाल के तौर पर आज भी याद की जाती है.
राम और विभीषण
राम और विभीषण की मित्रता भी पौराणिक कथाओं में एक बड़ी मिसाल मानी जाती है. जब विभीषण को उनके भाई रावण ने त्याग दिया था और विभीषण एक भक्त के रूप में राम से मिलने पहुंचे तो राम ने उन्होंने मित्र का दर्जा दिया और उनसे हमेशा ही सखा के तौर पर ही व्यवहार किया. इसके बाद विभीषण हमेशा राम के साथ बने रहे. इसके अलावा कृष्ण द्रौपदी, राम निषादराज, गांधारी कुंती, और सीता त्रिजटा की जोड़ियां भी मित्रता की मिसाल के तौर पर जानी जाती हैं. इन पौराणिक चरित्रों की कहानियों में ऐसी ढेरों घटनाओं का जिक्र है जब उन्होंने विपरीत परिस्थितियों में अपनी मित्रता का उदाहरण पेश किया है.\