जीवन सार: प्रसन्नता को अर्जित नहीं किया जा सकता, यह तो हमारी सोच का अभिन्न हिस्सा है
जीवन जीने का दृष्टिकोण, जीवन से ज्यादा महत्वपूर्ण है।
जीवन जीने का दृष्टिकोण, जीवन से ज्यादा महत्वपूर्ण है। किसी भी व्यक्ति के लिए यह बात कहीं अधिक बड़ी होनी चाहिए कि वह किस नजरिये से जिया, न कि वह कितने दिन जिंदा रहा। इसके दो दृष्टिकोण होते हैं- सकारात्मक और नकारात्मक। यह सकारात्मक रहे तो व्यक्ति के जीने का नजरिया ही बदल जाता है। ऐसा कहा जाता है कि एक व्यक्ति से सब कुछ छीना जा सकता है, पर उसके अस्तित्व की इच्छा नहीं। अगर कोई व्यक्ति आचरण में खुशी और आशावाद नहीं देखता, तो यह चिंता का विषय है, क्योंकि ऐसे व्यक्ति को बाहरी तौर पर खुश नहीं किया जा सकता। आरोपित खुशी क्षणिक होती है।
जन्म से मृत्यु के बीच का समय हमारा अस्तित्व होता है। जीवन हमें ईश्वर से मिला वरदान है। लेकिन क्या हमारा जन्म हमारी इच्छा से होता है? इसका निर्धारण तो प्रभु ही करते हैं, जो प्रकृति के नियम के अंतर्गत है। इसके अतिरिक्त हमारे जन्म का मुख्य अंग एक चेतन तत्व है, जो सभी क्रियाओं का साक्षी होता है। इसे खुश और संतुष्ट रखकर ही हम असली आनंद की अनुभूति कर सकते हैं। चेतन तत्व को हम अपनी सोच बदलकर और सत्कर्मों से खुश कर सकते हैं। जैसे कि जरूरतमंद की मदद करें, सच बोलें, किसी का दिल न दुखाएं, दूसरों के प्रति स्नेह की भावना रखें, सभी को समान समझें और विपरीत परिस्थितियों में भी सकारात्मक सोच बनाए रखें।
बहुत सारी संस्कृतियों में हमेशा खुश रहने के लिए कहा जाता है, लेकिन प्रसन्नता को अर्जित नहीं किया जा सकता। यह तो हमारी सोच का अभिन्न हिस्सा है। यह जड़ पकड़े, इसके लिए माता-पिता को अपने बच्चों में सकारात्मक दृष्टिकोण रखने की आदत डालनी चाहिए। हिंदू मान्यताओं के अनुसार धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को प्राप्त करने के लिए जिंदगी का उद्देश्य चार गुणा बढ़ जाता है। धर्म को प्राप्त करने के लिए हमें नेकी और उचित रूप से कार्य करना चाहिए। इसका मतलब हमें हमेशा सैद्धांतिक और नैतिक दृष्टि से सही काम करने चाहिए। अर्थ के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को धन और संपन्नता के लिए काम करना चाहिए। लेकिन इसमें महत्वपूर्ण यह है कि ऐसा करते समय हमें धर्म के सिद्धांतों के अनुरूप ही यह सब करना चाहिए, उसके दायरे के बाहर जाकर नहीं।
हिंदू धर्म का तीसरा उद्देश्य काम है। काम का मतलब है कि हमें जीवन से आनंद प्राप्त करते रहना होता है। चौथा और अंतिम उद्देश्य मोक्ष प्राप्त करना होता है। इसमें ज्ञानोदय प्राप्त करना सबसे मुश्किल होता है। मोक्ष प्राप्त करने के लिए कई बार व्यक्ति के लिए एक जीवन बहुत होता है, तो कई बार उसे कई जन्म लेने होते हैं। मोक्ष ही परम आनंद की स्थिति होती है। उसके बाद न जन्म होता है, न मृत्यु होती है। न किसी से जुड़ाव होता है, न अलगाव। न दर्द होता है न कष्ट। इंसान हमेशा के लिए सभी से मुक्त हो जाता है। उसकी आत्मा, परमात्मा में विलीन हो जाती है या हमेशा के लिए परमात्मा का हिस्सा बन जाती है।