क्या आप जानते है संतो का संग करना बड़े यज्ञो के समान है

Update: 2023-07-17 15:06 GMT
धर्म अध्यात्म: संत सुरेन्द्रपाल व क्षेत्रीय संचालक नरसिंग पालीवाल के कर कमलों द्वारा सांय 7 बजे नये निरंकारी भवन की भूमि पर सेवा का शुभारंभ फीता काटकर किया गया। तंवर ने बताया कि, नये संत निरंकारी सत्संग भवन की भूमि पर सेवा का शुभारंभ तथा विशाल संत समागम पहली बार आयोजित हुआ। उन्होंने बताया कि, इस नये भवन पर सेवा शुभारंभ की तैयारी व्यापक स्तर पर पिछले चार दिनों से चल रही थी। नये भवन की भूमि पर विशाल पंडाल, लंगर, प्याऊ, शौचालय, स्वागत कक्ष इत्यादि जगहों की व्यवस्था सेवादल के भाई-बहनों द्वारा की गई, जिसमें संतजनों का भरपुर सहयोग रहा। संयोजक शांतिलाल ने कहा कि, सतगुरु माता सविंदर हरदेव महाराज की असीम कृप्या से नयी भूमि सत्संग प्रांगण के रूप में प्राप्त हुई।
सत्संग कार्यक्रम में संत सुरेन्द्रपाल के स्वागत में महिला सेवादल सपना, सोनू, भावना, कविता, चंद्रकांता द्वारा स्वागत गीत जिसके दर्शन से तपते दिल में ठंडक सी पड़ जाए वो सतगुरु आज आये भजन प्रस्तुत किया गया। सत्संग कार्यक्रम में पंजाबी गीतकार विक्की दिलदार भी उपस्थित रहें जिन्होंने पंजाबी भजन रु गद-गद हो गयी दात्या दर्शन करके तेरे, तालिया बजाओ सन्तों तालिया, ढोल बाजे ढोल बाजे ढोल गुरु दर बाजे ढोल, लागे दात्या अपने नाम वाली मेहंदी, दमादम मस्त कलेंडर, सतगुरु के दरबार मे मोझा ही मोझा, अजी खुशिया दे खेड़े तेरे करके तथा अनेक भजनों की प्रस्तुतियां देते हुए पूरी साद संगत को भक्तिरस से सरोबार किया। नये निरंकारी सत्संग भवन की भूमि पर सेवा का शुभारंभ एवं सत्संग कार्यक्रम में स्थानीय संयोजक महात्मा शांतिलाल, शिक्षक सेवादल विनोद कुमार, सेवादल संचालक, रमेश खत्री, मुकेश नागौरा, लक्ष्मी खत्री, नेमीचंद जाटोल का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
सत्संग कार्यक्रम में, धोरीमन्ना, बायतु, उत्तरलाई, चैहटन, बालोतरा, शिव, सांचैर, पचपदरा, कवास, भीलों का पार, रामसर सहित बाड़मेर जिले के सैकड़ो निरंकारी श्रद्धालु उपस्थित रहे। सत्संग कार्यक्रम में कई भक्तों द्वारा विचार, कविताएँ, भजन भी प्रस्तुत किये गए। सत्संग कार्यक्रम के अंतिम समय में महात्मा सुरेन्द्रपाल कमला ने विचारों में फरमाया कि, सत्संग भूमि पाक-पवित्र, तीर्थ के समान हैं। इससे जीवन में सुख, आंनद की अनुभूति हो जाती हैं। जिनके जीवन में सतगुरु शामिल हो जाता हैं, वही गुरुभक्त, गुरुशिख कहलाता हैं। सन्तों का संग अनेकों यज्ञों के समान हैं। सन्तों की तरफ एक कदम जो बढ़ाता हैं वह जीवन में करोड़ो सुख, मिठास से भर जाता हैं तथा सुकून-आनंद की भी प्राप्ति हो जाती हैं। यही सेवा सुखों का आधार हैं।
भक्त सतगुरु का सदैव दास ही बनकर रहता हैं। संसार असत्य हैं इसमें रहते मन मेला हो जाता हैं। लेकिन भक्त गुरु से जब क्षमा मांगता हैं तब उसका कल्याण हो जाता हैं जो भक्ति-भाव से समर्पित रहते हैं। ऐसे भक्तों का नाम रोशन हो जाता हैं। सत्संग के बाद लंगर-प्रसाद का भी आयोजन किया गया। इस मौके पर सैकड़ो निरंकारी सेवादल भी उपस्थित रहे।
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