कूर्म जयंती पर जरूर करें ये काम, हर चिंता और परेशानी दूर

Update: 2024-05-23 10:46 GMT
ज्योतिष न्यूज़  : हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल वैशाख माह की पूर्णिमा तिथि पर कूर्म जयंती का पर्व मनाया जाता है धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी तिथि पर भगवान विष्णु ने कूर्म का अवतार धारण किया था। ऐसे में इस दिन भगवान विष्णु के कूर्म स्वरूप की विधिवत पूजा की जाती है और उपवास आदि भी रखा जाता है मान्यता है कि ऐसा करने से जीवन के कष्ट मिट जाते हैं। पंचांग के अनुसार कूर्म जयंती का पर्व वैशाख माह की पूर्णिमा तिथि 23 मई दिन गुरुवार यानी आज मनाया जा रहा है
 पूर्णिमा तिथि का आरंभ 22 मई को शाम 5 बजकर 17 मिनट से हो चुका है और इसका समापन 23 मई को शाम 5 बजकर 52 मिनट पर हो जाएगा। ऐसे में कूर्म जयंती का पर्व आज मनाया जा रहा है इस दिन भगवान विष्णु के कूर्म अवतार की पूजा करें साथ ही कूर्म स्तोत्र का पाठ भी भक्ति भाव से करें मान्यता है कि ऐसा करने से सभी चिंताएं व परेशानियां समाप्त हो जाती हैं और कल्याण होता है।
 कुर्म स्तोत्रम्
श्रीगणेशाय नमः
॥ देवा ऊचुः ॥
नमाम ते देव पदारविंदं प्रपन्नतापोपशमातपत्रम् ॥
यन्मूलकेता यततोऽञ्जसोरु संसारदुःखबहिरुत्क्षिपंति ॥
धातर्यदस्मिन्भव ईश जीवास्तापत्रयेणोपहता न शर्म ।
आत्मँल्लभंते भगवंस्तवांघ्रिच्छायां सविद्यामत आश्रयेम ॥
मार्गंति यत्ते मुखपद्मनीडैश्छंदः सुपर्णैऋर्षयो विविक्ते ।
यस्याघमर्षोदसरिद्वरायाः पदं पदं तीर्थपदं प्रपन्ना ॥
यच्छ्रद्धया श्रुतवत्या च भक्त्या संमृज्यमाने ह्रदयेऽवधार्य ।
ज्ञानेन वैराग्यबलेन धीरा व्रजेम तत्तेऽङघ्रिसरोजपीठम् ॥
विश्वस्य जन्मस्थितिसंयमार्थे कृतावतारस्य पदांबुजं ते ।
व्रजेम सर्वे शरणं यदीश स्मृतं प्रयच्छत्यभयं स्वपुंसाम् ॥
यत्सानुबंधेऽसति देहगेहे ममाहमित्यूढदुराग्रहाणाम् ।
पुंसां सुदूरं वसतोऽपि पुर्यां भजेम तत्ते भगवत्पदाब्जम् ॥
 पानेन ते देव कथासुधायाः प्रवृद्धभक्त्या विशदाशया ये ।
वैराग्यसारं प्रतिलभ्य बोधं यथांजसान्वीयुरकुण्ठधिष्ण्यम् ॥
तथापरे चात्मसमाधियोगबलेन जित्वा प्रकृतिं बलिष्ठाम् ।
त्वामेव धीराः पुरुषं विशंति तेषां श्रमः स्यान्न तु सेवय ते ॥
तत्ते वयं लोकसिसृक्षयाऽद्य त्वयानुसष्टास्त्रिभिरात्मभिः स्म ।
सर्वे वियुक्ताः स्वविहारतंत्रं न शक्नुमस्तत्प्रतिहर्तवे ते ॥
यावद्बलिं तेऽज हराम काले यथा वयं चान्नमदाम यत्र ।
यथोभयेषां त इमे हि लोका बलिं हरन्तोऽन्नमदंत्यनहाः ॥
त्वं नः सुराणामसि सान्वयानां कूटस्थ आद्यः पुरुषः पुराणः ।
त्वं देवशक्त्यां गुणकर्मयोनौ रेतस्त्वजायां कविमादधेऽजः ॥
ततो वयं सत्प्रमुखा यदर्थे बभूविमात्मन् करवाम किं ते ।
त्वं नः स्वचक्षुः परिदेहि शक्त्या देवक्रियार्थे यदनुग्रहाणाम् ॥
इति श्रीमद्भागवतांतर्गतं कूर्मस्तोत्रं समाप्तम् ।
 
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