चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन करें ये उपाय, धन की होगी प्राप्ति

Update: 2024-04-11 10:26 GMT
ज्योतिष न्यूज़  : आज यानी 11 अप्रैल दिन गुरुवार को चैत्र नवरात्रि का तीसरा दिन है जो मां दुर्गा के तीसरे स्वरूप मां चंद्रघंटा को समर्पित किया गया है इस दिन भक्त माता के इस रूप की विधिवत पूजा करते हैं और व्रत आदि भी रखते हैं।
 मान्यता है कि आज के दिन मां चंद्रघंटा की उपासना और आराधना करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है और सारे कष्ट दूर हो जाते हैं लेकिन इसी के साथ ही अगर नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा के दौरान उनके चमत्कारी स्तोत्र का पाठ किया जाए तो अथाह धन लाभ मिलता है और परेशानियां दूर हो जाती हैं तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं ये चमत्कारी स्तोत्र।
 मंत्र
1. ओम देवी चन्द्रघण्टायै नमः॥
2. आह्लादकरिनी चन्द्रभूषणा हस्ते पद्मधारिणी।
घण्टा शूल हलानी देवी दुष्ट भाव विनाशिनी।।
स्तुति मंत्र
या देवी सर्वभू‍तेषु मां चन्द्रघण्टा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
मां चन्द्रघण्टा बीज मंत्र
ऐं श्रीं शक्तयै नम:।
प्रार्थना मंत्र
पिण्डज प्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यम् चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥
 देवी स्तोत्र
वन्दे वाच्छित लाभाय चन्द्रर्घकृत शेखराम्।
सिंहारूढा दशभुजां चन्द्रघण्टा यशंस्वनीम्॥
कंचनाभां मणिपुर स्थितां तृतीयं दुर्गा त्रिनेत्राम्।
खड्ग, गदा, त्रिशूल, चापशंर पद्म कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्यां नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर हार, केयूर, किंकिणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलां तुग कुचाम्।
कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटिं नितम्बनीम्॥
स्तोत्र
आपद्धद्धयी त्वंहि आधा शक्ति: शुभा पराम्।
अणिमादि सिद्धिदात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यीहम्॥
चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्ट मंत्र स्वरूपणीम्।
धनदात्री आनंददात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्॥
नानारूपधारिणी इच्छामयी ऐश्वर्यदायनीम्।
सौभाग्यारोग्य दायिनी चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्॥
देवी कवच
रहस्यं श्रणु वक्ष्यामि शैवेशी कमलानने।
श्री चन्द्रघण्टास्य कवचं सर्वसिद्धि दायकम्॥
बिना न्यासं बिना विनियोगं बिना शापोद्धारं बिना होमं।
स्नान शौचादिकं नास्ति श्रद्धामात्रेण सिद्धिकम॥
कुशिष्याम कुटिलाय वंचकाय निन्दकाय च।
न दातव्यं न दातव्यं न दातव्यं कदाचितम्॥
दुर्गा कवचम्
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कवचं सर्वसिद्धिदम् ।
पठित्वा पाठयित्वा च नरो मुच्येत सङ्कटात् ॥
उमा देवी शिरः पातु ललाटं शूलधारिणी ।
चक्षुषी खेचरी पातु वदनं सर्वधारिणी ॥
जिह्वां च चण्डिका देवी ग्रीवां सौभद्रिका तथा ।
अशोकवासिनी चेतो द्वौ बाहू वज्रधारिणी ॥
हृदयं ललिता देवी उदरं सिंहवाहिनी ।
कटिं भगवती देवी द्वावूरू विन्ध्यवासिनी ॥
महाबाला च जङ्घे द्वे पादौ भूतलवासिनी
एवं स्थिताऽसि देवि त्वं त्रैलोक्यरक्षणात्मिके ।
रक्ष मां सर्वगात्रेषु दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते ॥
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