क्रोध न करना इंसान की पहली पहंचान, पढ़िए एक महात्मा के धैर्य की प्रेरक कहानी

एक महात्मा जंगल में कुटिया बनाकर रहते थे

Update: 2021-02-17 05:59 GMT

जनता से रिश्ता बेवङेस्क | एक महात्मा जंगल में कुटिया बनाकर रहते थे. उनके प्रेम, क्षमा, शांति और निर्मोहिता जैसे गुणों की ख्याति दूर-दूर फैली हुई थी. मनुष्य पर गुण असहिष्णुत होता है. उनकी शांति भंग करके क्रोध दिलाया जाए इसकी होड़ लगी.

दो मनुष्यों ने इसका बीड़ा लिया. वे महात्मा की कुटिया पर गए. एक ने कहा, महाराज !! जरा गांजे की चिलम तो लाइए.

महात्मा बोले, भाई मैं गांजा नहीं पीता. उसने फिर कहा, अच्छा तो तंबाकू लाओ.

महात्मा जी ने कहा, मैंने कभी तंबाकू का व्यवहार नहीं किया और न ही उसे खाया है. तब वो शख्स बोला फिर बाबा बनकर तब जंगल में क्यों बैठे हो, धूर्त कहीं का !! इतने में पूर्व योजना के अनुसार बहुत से लोग वहां जमा हो गए. उस आदमी ने सबको सुनाकर फिर कहा, पूरा ठग है ये !! चार बार तो जेल की हवा खा चुका है.

उसके दूसरे साथी ने कहा, अरे भाई !! मैं खूब जानता हूं इसे, मेरे साथ ही तो था. इसने जेल में मुझको डंडों से मारा था. ये देखो उसका निशान अभी तक पड़ा है. रात को रगंरेलियां करता है, दिन में बड़ा संत बन जाता है.

वे दोनों एक से एक बढ़कर झूठे और बेबुनियाद आरोप लगाने लगे. उनका पूरा प्रयास था कि कैसे भी महात्मा जी को क्रोध आ जाए. महात्मा जी चुप रहे. तब महात्मा ने शक्कर की पुड़िया आगे कर हंस कर कहा, भैया !! थक गए होंगे आप !! एक भक्त ने चीनी की पुड़िया दी है. इसे जरा पानी में डालकर पी लो.

वह मनुष्य महात्मा के चरणों पर पड़ गए और बोले, हमें क्षमा कीजिए महाराज !! हमने बड़ा अपराध किया है. हम लोगों के इतना कहने पर भी महाराज आपको क्रोध कैसे नहीं आया ?

महात्मा बोले, जिसके पास जो माल होता है, वो उसी को दिखाता है. ये तो ग्राहक की इच्छा है कि उसे ले या न ले. तुम्हारे पास जो माल था, तुमने मुझे वही दिखाया. इसमें तुम्हारा क्या दोष है ? परंतु मुझे तुम्हारा माल पसंद नहीं आया.

दोनों लज्जित हो गए तो महात्मा ने फिर कहा, अगर दूसरा आदमी गलती करे और हम अपने अंदर आग जला दें, ये तो उचित नहीं. मेरे गुरु जी ने मुझे सिखाया है कि क्रोध करना और अपने ही शरीर पर चाकू मारने के समान है. ईर्ष्या करना और जहर पीना बराबर है. दूसरों की दी हुई गालियों और दुष्ट व्यवहार हमारा कोई नुकसान नहीं कर सकते.

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