अक्सर आप लोगों ने महिलाओं के माथे और मंदिरों मेंं देखा होगा कि कुमकुम और विभूति लगाई गई है। इनका इस्तेमाल एक आम बात है। मंदिरों में आने वाले दर्शनार्थियों को विभूति दी जाती है जिसे दर्शनार्थी श्रद्धा के साथ अपने गले के नीचे लगाता है और शेष को वह खा लेता है। वहीं दूसरी ओर महिलाएँ सुबह-सुबह स्नान आदि से निवृत होकर अपने मस्तिष्क पर कुमकुम का टीका लगाती हैं, जो सौभाग्य का चिह्न माना जाता है। यह एक परम्परा सी है जो शताब्दियों से भारत में चलती आ रही है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर इस परम्परा के पीछे वजह क्या है। आज अपने सुधि पाठकों को हम बताने जा रहे हैं कुमकुम और विभूति के प्रयोग का कारण—
कुछ चीजें, दूसरी चीजों के मुकाबले अधिक तेजी से ऊर्जा को समेट पाती हैं। उन्हीं में शामिल होती है विभूति और कुमकुम। हालांकि हर वस्तु तेजी से अपने में ऊर्जा समेटी है। उन सभी के पास बराबर अवसर होता है, लेकिन वे सभी समान रूप से ऊर्जा को अपने में सोख नपहीं पाती हैं।
अच्छे से सोखती हैं प्राण-ऊर्जा
कुछ ऐसे पदार्थों की पहचान की गई है, जो ऊर्जा को आसानी से समेट पाते हैं, और उसे अपने पास कायम रख पाते हैं। उनमें एक विभूति भी होती है, जो बहुत ही संवेदनशील पदार्थ है। आप आसानी से उसे ऊर्जावान बनाकर किसी को दे सकते हैं। कुमकुम भी इसी तरह है। चंदन का लेप भी कुछ हद तक ऐसा ही है, लेकिन इनमें से विभूति को सबसे ऊपर रखा जाता है। ये चीजें प्राण-ऊर्जा अच्छे से सोखती हैं।
कई मंदिरों में अब भी बहुत शक्तिशाली प्राण-ऊर्जा का कम्पन है, इसलिए इन चीजों को कुछ देर के लिए वहाँ रखा जाता है ताकि वे खुद में थोड़ी ऊर्जा समेट लें। इसका मकसद ऊर्जा को बांटना है, इसलिए वहाँ आने वाले लोगों को वह दिया जाता है। अगर आप संवेदनशील हैं, तो आप सिर्फ वहाँ मौजूद रहकर भी खुद वह ऊर्जा ग्रहण कर सकते हैं। अगर आप उतने संवेदनशील नहीं हैं, तो आपको किसी चीज की जरूरत पड़ती है।
कैसे बनता है कुमकुम
कुमकुम के रंग से धोखा न खाएं। कुमकुम हल्दी और चूने के मिश्रण से बनाया जाता है। जैसा कि लिंग भैरवी का कुमकुम बनाया जाता है। दुर्भाग्यवश, कई स्थानों पर यह सिर्फ एक कैमिकल पाउडर होता है। हल्दी में बहुत जबरदस्त गुण होते हैं। संस्कृति में इसे शुभ माना जाता है, क्योंकि इसमें एक खास गुण होता है जिसे हमारी खुशहाली के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
प्लास्टिक का उपयोग न करें
हमारा जीवन कैसा होगा, यह इससे तय होता है कि हमारी ऊर्जा, शरीर और मन कैसे काम करते हैं। वह आपके आस-पास की स्थितियों पर निर्भर नहीं करता। भारतीय संस्कृति में यह तकनीक विकसित की गई कि अपनी ऊर्जा को एक खास दिशा में मोडऩे के लिए किन चीजों का इस्तेमाल किया जा सकता है। लेकिन अब अधिकांश महिलाएं कुमकुम के बदले प्लास्टिक का इस्तेमाल करने लगी हैं। आप विभूति या कुमकुम या हल्दी का इस्तेमाल कर सकती हैं या अगर आप नहीं चाहतीं, तो कुछ भी इस्तेमाल मत कीजिए। कुछ न लगाने में कोई बुराई नहीं है, मगर प्लास्टिक मत लगाइए। प्लास्टिक लगाना ऐसा ही है जैसे आपने अपनी तीसरी आंख बंद कर ली हो और उसे खोलना नहीं चाहते।
महिलाएँ कुमकुम क्यों लगाती हैं
विवाहित स्त्रियों को मांग में कुमकुम क्यों लगाना होता है उसकी क्या अहमियत है। महत्वपूर्ण चीज यह है कि वह हल्दी है। उसे लगाने से सेहत संबंधी और अन्य फायदे हैं। दूसरी चीज यह है कि उसे समाज में एक निशान के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। अगर किसी स्त्री ने कुमकुम लगाया हुआ है, तो वह विवाहित है और इसलिए उसे अप्रोच नहीं करना है। यह सिर्फ एक संकेत है ताकि आपको हर किसी को यह बात बतानी न पड़े। पश्चिमी देशों में किसी को अंगूठी पहने देखकर आप जान जाते हैं कि वह शादीशुदा है। यहां अगर किसी औरत ने बिछुए पहने हैं और सिंदूर लगाया है, तो वह शादीशुदा है। यानी अब उसकी दूसरी जिम्मेदारियां भी हैं। यह समाज में व्यवस्था लाने का एक तरीका है, किसी की सामाजिक स्थिति पता लगाने का एक तरीका है।