Chinnamasta Devi Temple : नवरात्री में ही खुलते हैं इस मंद‍िर के कपाट, जानें क्‍या है राज

हमारे देश में देवी मां के कई ऐसे मंद‍िर हैं.

Update: 2021-10-10 14:46 GMT

हमारे देश में देवी मां के कई ऐसे मंद‍िर हैं ज‍िनके रहस्‍यों से आज तक पर्दा नहीं उठ सका है। फ‍िर चाहे वह देवी मंद‍िर में स्‍थापित‍ मूर्तियों के आपसी वार्तालाप हो या फ‍िर व‍िशे‍ष तिथि पर खुलने वाले मंद‍िरों की। पुरातत्‍वव‍िज्ञानी भी कहीं न कहीं इनके आगे नतमस्‍तक हो गए। ऐसे ही एक मंद‍िर का ज‍िक्र हम यहां कर रहे हैं। जो क‍ि कानपुर में स्‍थापित है। यह मंद‍िर केवल नवरात्र में ही खुलता है वह भी केवल तीन द‍िन। आइए मंद‍िर के बारे में व‍िस्‍तार से जानते हैं…

कानपुर में यहां स्‍थाप‍ित है यह मंद‍िर
हम ज‍िस मंद‍िर के बारे में बता रहे हैं वह कानपुर के शिवाला में स्‍थाप‍ित है। मंद‍िर का नाम छिन्‍नमस्तिका मंद‍िर है। यह केवल वासंत‍िक यानी क‍ि चैत्र और शारदीय नवरात्र में ही खुलता है। उसमें भी चैत्र हो या शारदीय केवल सप्तमी, अष्टमी और नवमी के द‍िन ही मंद‍िर के पट खोले जाते हैं। बाकी वर्षभर मंद‍िर के कपाट बंद ही रहते हैं।
मां छ‍िन्‍नमस्तिका का ऐसा है स्‍वरूप
मंदिर के गर्भग्रह में मां की सिर वाली प्रतिमा की पूजा की जाती है। मां की यह मूर्ति एक हाथ में खड्ग और दूसरे हाथ में मस्तक धारण किए हुए हैं। कटे हुए स्कंध से रक्त की जो धाराएं निकलती हैं। उनमें से एक को मां स्वयं पीती हैं और अन्य दो धाराओं से अपनी दो सहेलियों जया और विजया की भूख को तृप्त करती हैं। माता का यह स्‍वरूप इडा, पिंगला और सुषुम्ना इन तीन नाड़ि‍यों का संधान कर योग मार्ग में सिद्धि को प्रशस्त करता है। विद्यात्रयी में यह दूसरी विद्या गिनी जाती हैं। मान्‍यता यह भी है क‍ि यह कल‍ियुग की देवी हैं। यही वजह है मां छिन्‍नमस्तिका की पूजा कल‍ियुग की देवी के रूप में भी की जाती है।

ऐसी है मंद‍िर की अनोखी परंपरा
पुरातन काल से चली आ रही मंद‍िर की परंपरा के अनुसार यहां चैत्र नवरात्रि की सप्तमी तिथि की सुबह बकरे की बलि दी जाती है और बकरे के कटे हुए स‍िर के ऊपर कपूर रखकर मां की आरती की जाती है। इसके बाद अष्टमी और नवमी तिथि को मां छ‍िन्‍नमस्तिका की विधि-विधान से पूजा-अर्चना करके मंद‍िर के कपाट बंद कर द‍िए जाते हैं। इसके बाद यह अगले नवरात्र में ही खुलते हैं।
साधक की भावना अनुसार देती हैं फल

देवी छिन्‍नमस्तिका के स्‍वरूप में गले में हड्डियों की माला और कंधों पर यज्ञोपवीत है। इसल‍िए मां की पूजा करते समय भाव को प्रमुख माना गया है। मान्‍यता है जो साधक माता की ज‍िस भावना से पूजा करता है। उसे वैसा ही फल भी म‍िलता है। यही वजह है क‍ि शांत भाव से उपासना करने पर यह अपने शांत स्वरूप को प्रकट करती हैं। उग्र रूप में उपासना करने पर यह उग्र रूप में दर्शन देती हैं जिससे साधक के उच्चाटन होने का भय रहता है। विद्वानजनों के अनुसार माता के इस स्‍वरूप की उपासना हमेशा ज्‍योत‍िष के जानकारों से व‍िध‍ि-व‍िधान पूछकर ही की जानी चाह‍िए।
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