मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए इन मंत्रों का करें जाप

सनातन धर्म में अमावस्या और पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व है। इस वर्ष मार्गशीर्ष पूर्णिमा 18 दिसंबर को है। इस दिन पूजा, जप, तप और दान का विधान है। धार्मिक मान्यता है

Update: 2021-12-16 05:02 GMT

सनातन धर्म में अमावस्या और पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व है। इस वर्ष मार्गशीर्ष पूर्णिमा 18 दिसंबर को है। इस दिन पूजा, जप, तप और दान का विधान है। धार्मिक मान्यता है कि पूर्णिमा के दिन पूजा, जप, तप और दान से घर में सुख-समृद्धि का आगमन होता है। साथ ही पितरों को मोक्ष मिलता है। इसके लिए पूर्णिमा के दिन पवित्र नदियों और सरोवरों में लोग आस्था की डुबकी लगाते हैं। तत्पश्चात, सूर्य देव को अर्घ्य देकर नदी में काले तिल प्रवाहित करते हैं। इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा उपासना की जाती है। धार्मिक ग्रंथों में लिखा है कि पूर्णिमा के दिन व्रत करने से व्रती के जीवन से दुख-शोक का नाश होता है, जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का आगमन होता है, पुत्र की प्राप्ति होती है और सर्वत्र विजय हासिल करने का वरदान मिलता है। इस व्रत को किसी विशेष तिथि की जरूरत नहीं पड़ती है। वहीं, मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन इन मंत्रों का जाप जरूर करें-

1.
सुख-समृद्धि हेतु लक्ष्मी का मंत्र:
या रक्ताम्बुजवासिनी विलासिनी चण्डांशु तेजस्विनी।
या रक्ता रुधिराम्बरा हरिसखी या श्री मनोल्हादिनी॥
या रत्नाकरमन्थनात्प्रगटिता विष्णोस्वया गेहिनी।
सा मां पातु मनोरमा भगवती लक्ष्मीश्च पद्मावती॥
2.
लक्ष्मी स्त्रोत
श्रियमुनिन्द्रपद्माक्षीं विष्णुवक्षःस्थलस्थिताम्॥
वन्दे पद्ममुखीं देवीं पद्मनाभप्रियाम्यहम्॥
सन्धया रात्रिः प्रभा भूतिर्मेधा श्रद्धा सरस्वती॥
3.
लक्ष्मी मां का बीज मंत्र
ॐ श्री ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद
श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्मयै नमः।।
4.
सौभाग्य प्राप्ति का मंत्र
ऊँ श्रीं ल्कीं महालक्ष्मी महालक्ष्मी
एह्येहि सर्व सौभाग्यं देहि मे स्वाहा।।
5.
धन प्राप्ति मंत्र
ऊँ ह्रीं श्री क्रीं क्लीं श्री लक्ष्मी मम गृहे धन पूरये,
धन पूरये, चिंताएं दूरये-दूरये स्वाहा:। ।
6.
सुख प्राप्ति का मंत्र
श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं कमलवासिन्यै स्वाहा
7.
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम् ।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥
8.
आदि लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु परब्रह्म स्वरूपिणि।
यशो देहि धनं देहि सर्व कामांश्च देहि मे।
सन्तान लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु पुत्र-पौत्र प्रदायिनि।
पुत्रां देहि धनं देहि सर्व कामांश्च देहि मे।

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