Chanakya Niti : इन परिस्थितियों में आपके सगे संबन्धी भी बन जाते हैं दुश्मन
आचार्य चाणक्य ने चाणक्य नीति में रिश्ते, समाज, पैसा, दोस्ती, शिक्षा आदि उन तमाम विषयों पर बात की है, जो व्यक्ति के जीवन से जुड़े हुए हैं. आचार्य ने कुछ ऐसी विशेष स्थितियों का भी वर्णन किया है, जिसमें आपके सगे संबन्धी भी आपके दुश्मन बन जाते हैं.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क।
चाणक्य नीति में आचार्य चाणक्य ने एक श्लोक के जरिए कुछ विशेष परिस्थितियों में आपके अपनों जैसे मां, बेटा, पत्नी, पिता आदि को भी आपका दुश्मन बताया है. अपने श्लोक में आचार्य कहते हैं कि 'ऋणकर्ता पिता शत्रुर्माता च व्यभिचारिणी, भार्या रूपवती शत्रु: पुत्र: शत्रुरपण्डित:' नीचे विस्तार से जानिए इस श्लोक का अर्थ.
इस श्लोक के जरिए सबसे पहले आचार्य पिता का जिक्र करते हुए कहते हैं कि जो पिता कर्ज लेकर कभी चुकाता नहीं और अपने पुत्र पर उसका बोझ जबरन डाल देता है, ऐसे पुत्र का जीवन हमेशा कष्टमय रहता है. ऐसा पिता उस पुत्र के लिए किसी दुश्मन से कम नहीं होता.
कहा जाता है कि मां कभी अपनी संतानों में भेद नहीं करती. लेकिन जो माता अपने बच्चों में भेदभाव करती है, वो भी अपनी संतान के लिए दुश्मन की तरह है. इसके अलावा जो माता अपने पति के अलावा किसी अन्य से संबन्ध रखती है, वो भी अपने पुत्र के लिए दुश्मन की तरह होती है. उस पर यकीन करना मूर्खता है.
अगर आपकी पत्नी अत्यंत खूबसूरत है और पति उसके सामने कुछ भी नहीं, तो ऐसी स्थिति में पत्नी की खूबसूरती कई बार समस्या बन जाती है. ऐसा पति उसकी रक्षा कर पाने में असमर्थ होता है. इस तरह वो सुंदर पत्नी भी उसके लिए शत्रु के समान हो जाती है.
जो संतान मूर्ख हो, मंदबुद्धि हो, उसका कभी विकास नहीं हो पाता. ऐसी संतान माता पिता के लिए बोझ होती है, जिसे वे जबरन जीवनभर ढोते हैं. ऐसी संतान उनके जीवन के लिए अभिशाप होती है. वो उनके लिए किसी दुश्मन से कम नहीं.