Chaitra Navratri 2022: जानें क्यों बोए जाते हैं चैत्र नवरात्रि में जौ ?

2 अप्रैल 2022 से चैत्र नवरात्रों (Navratri) की शुरुआत हो रही है. जिसमें भक्त पूरी श्रद्धा के साथ मां भगवती की पूजा (Puja) अर्चना करते हैं.

Update: 2022-03-31 10:34 GMT

2 अप्रैल 2022 से चैत्र नवरात्रों (Navratri) की शुरुआत हो रही है. जिसमें भक्त पूरी श्रद्धा के साथ मां भगवती की पूजा (Puja) अर्चना करते हैं. चाहे शारदीय नवरात्र हो, चैत्र नवरात्र हो या फिर गुप्त नवरात्र हो. हिंदू धर्म (Hinduism) में नवरात्र पर ज्वारे या जौ का बहुत अधिक महत्व होता है. नवरात्र के पहले दिन ही घट स्थापना के साथ ही जौ बोए जाते हैं. ऐसा माना जाता है कि जौ के बिना मां दुर्गा की पूजा अधूरी होती है. कलश स्थापना (Kalash Sthapna) के साथ मिट्टी के बर्तन में जौ बो दिए जाते हैं. यह परंपरा हिंदू धर्म में बहुत समय से चली आ रही है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि घट स्थापना से पहले जौ बोने का क्या महत्व है. चलिए आपको बताते हैं.

पौराणिक कथाओं के अनुसार जब भगवान ब्रह्मा ने इस सृष्टि की स्थापना की तब वनस्पतियों में जो पहली फसल विकसित हुई थी वह 'जौ' थी. इसी कारण से नवरात्रि के पहले दिन घट स्थापना के साथ पूरे विधि-विधान से जौ बोई जाती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जौ को भगवान ब्रह्मा का प्रतीक माना जाता है. इसीलिए घट स्थापना के समय नवरात्रों में जौ की सबसे पहले पूजा की जाती है और उसे कलश में भी स्थापित किया जाता है.
कई लोग जौ को ज्वारे भी कहते हैं. नवरात्रि के समय मंदिर, घर और पूजा पंडालों में मिट्टी के बर्तनों में ज्वारे बोए जाते हैं, और प्रतिदिन मां दुर्गा की पूजा आराधना से पहले इनमें नियमित रूप से जल अर्पित किया जाता है. धीरे-धीरे यह अंकुरित होकर बढ़ने लगते हैं और कुछ दिनों में हरी-भरी फसल की तरह दिखाई देने लगते हैं. नवरात्रि के समापन पर इनको किसी नदी या तालाब में प्रवाहित कर दिया जाता है.
मान्यता के अनुसार मां दुर्गा की पूजा स्थल पर ज्वारे इसलिए बोए जाते हैं क्योंकि धार्मिक ग्रंथों में इस सृष्टि की पहली फसल के रूप में जौ को ही बताया गया है. एक अन्य मान्यता के अनुसार जौ ही भगवान ब्रह्मा हैं. इसलिए हमेशा अन्न का सम्मान करना चाहिए, इन्हीं सब कारणों से जौ का इस्तेमाल पूजा में किया जाता है.


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