सूर्योदय के समय करते हैं शनिदेव की पूजा तो हो जाएं सावधान

Update: 2024-05-19 11:29 GMT
ज्योतिष न्यूज़ : शनिदेव को न्याय का देवता माना जाता है. वे कर्मों के आधार पर फल देते हैं. शनि की दशा अक्सर कठिन होती है, लेकिन शनिदेव की पूजा करके उनकी कृपा प्राप्त कर इन कठिनताओं को कम किया जा सकता है. लेकिन यह तभी मुमकिन हो पाएगा जब आप शनिदेव की पूजा सही समय और सावधानी से करेंगे. ऐसे में इस लेख के जरिए आज हम आपको बताते हैं कि शनिदेव की पूजा कितने बजे करनी चाहिए. इसके साथ ही आपको बताएंगे कि शनिदेव की पूजा में कौन सी गलतियां करने से बचना चाहिए.
शनिदेव की पूजा कितने बजे करें?
शास्त्रों के अनुसार, शनिदेव की पूजा सूर्योदय के पहले और सूर्यास्त के बाद करना ही उचित समय माना गया है. इस समय पूजा करने से शनिदेव प्रसन्न रहते हैं और उनकी पूजा का फल भी अधिक प्राप्त होता है. शनि प्रदोष काल, जो कि सूर्यास्त के समय होता है, शनिदेव की पूजा के लिए अति उत्तम माना जाता है.
सूर्योदय के समय क्यों नहीं करनी चाहिए शनिदेव की पूजा?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शनि और उनके पिता सूर्यदेव के बीच शत्रुता है. सूर्योदय के समय सूर्य की किरणें शनि की पीठ पर पड़ती हैं, जिसके कारण शनिदेव पूजा स्वीकार नहीं करते हैं. शनि ग्रह को न्याय का देवता माना जाता है.सूर्योदय के समय सूर्य का प्रभाव अधिक होता है, जिसके कारण शनि का प्रभाव कम हो जाता है.
शनिदेव की पूजा में बिल्कुल न करें ये गलतियां
सूर्योदय के समय शनिदेव की पूजा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि यह समय सूर्यदेव का होता है. शनिदेव की पूजा करते समय कभी भी उनकी आंखों में न देखें. ऐसा करने से शनिदेव नाराज हो सकते हैं. उनकी पूजा में लाल रंग का प्रयोग नहीं करना चाहिए. लाल रंग राहु का प्रतीक है, जो शनि का शत्रु माना जाता है. शनिदेव की पूजा में तांबे के बर्तनों का प्रयोग नहीं करना चाहिए. पीतल या कांसे के बर्तनों का प्रयोग करें. शनिदेव को दान में काले वस्त्र नहीं देना चाहिए. नीले रंग के वस्त्र दान करें. इसके साथ ही शनिदेव की पूजा पूरी विधि-विधान से करें. पूजा बीच में न छोड़ें.
शनिदेव के दिन इन मंत्रों का जरूर करें जाप
1. ॐ शं शनिश्चराय नम:
2. ऊँ शन्नो देवीरभिष्टडआपो भवन्तुपीतये।
3. ऊँ शं शनैश्चाराय नमः।
4. ओम भगभवाय विद्महैं मृत्युरुपाय धीमहि तन्नो शनिः प्रचोद्यात्
5. नीलाम्बरः शूलधरः किरीटी गृध्रस्थित स्त्रस्करो धनुष्टमान् |
चतुर्भुजः सूर्य सुतः प्रशान्तः सदास्तु मह्यां वरदोल्पगामी ||
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