श्राद्ध के दौरान पृथ्वी लोक पर आते हैं पितर, जानें पंचबलि कर्म से जुड़ी जानकारी

लोक पर आते हैं पितर, जानें पंचबलि कर्म से जुड़ी जानकारी

Update: 2023-10-01 06:17 GMT
सोलह दिनों का पितृ पक्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से शुरू होता हैं जो आश्विन कृष्ण अमावस्या तक जारी रहता हैं। श्राद्ध जारी हैं और हर दिन सभी अपने पूर्वजों का श्राद्ध कर रहे हैं। इस दौरान पितरों का श्राद्ध उस तिथि पर किया जाता हैं जब उनकी मृत्यु हुई हो। जिसकी मृत्यु तिथि का ज्ञान न हो उसका श्राद्ध अमावस्या को करना चाहिए। पितृ-पक्ष के सोलह दिनों में श्रद्धा-भक्ति पूर्वक तर्पण करना चाहिए जिसके द्वारा पितृ ऋण से निवृत्ति प्राप्त होती है। हम आपको यहां श्राद्ध से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी देने जा रहे हैं और इस दौरान किए जाने वाले पंचबलि कर्म के बारे में भी बता रहे हैं। तो आइये जानते हैं इसके बारे में
पृथ्वी लोक पर आते हैं पितर
आश्विन मास का कृष्ण पक्ष पितरों के लिए पर्व का समय है। इसमें पितरों को आशा लगी रहती है कि हमारे पुत्र-पौत्रादि हमें पिंडदान तथा तिलांजलि प्रदान कर संतुष्ट करेंगे। यही आशा लेकर व पितृलोक से पृथ्वी लोक पर आते हैं। यदि यहां उन्हें पिंडदान, फल, फूल या तिलांजलि आदि नहीं मिलती है, तो वे शाप देकर चले जाते हैं। इसलिए प्रत्येक हिंदू सद्गृहस्थ का धर्म है कि एकदम श्राद्ध का परित्याग न करें, पितरों को संतुष्ट अवश्य करें।
कैसे करते हैं श्राद्ध कर्म
पितरों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने का अनुष्ठान है-श्राद्ध। आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में उनकी मृत्यु तिथि को जल, तिल, चावल, जौ और कुश पिंड बनाकर या केवल सांकल्पिक विधि से उनका श्राद्ध करना, गौ ग्रास निकालना तथा उनके निमित्त ब्राह्मणों को भोजन करा देने से पितृ प्रसन्न होते हैं और उनकी प्रसन्नता ही पितृ ऋण से मुक्त करा देती है। जहां तक श्राद्ध के प्रतीकों का सवाल है, इनमें कुश, तिल, यव गाय-कौवा और कुत्ता श्राद्ध के तत्व के प्रतीक के रूप में माना जाता है। श्राद्ध में पंचबलि कर्म किया जाता है। अर्थात पांच जीवों को भोजन दिया जाता है। बलि का अर्थ बलि देने नहीं बल्कि भोजन कराना भी होता है। श्राद्ध में गोबलि, श्वानबलि, काकबलि, देवादिबलि और पिपलिकादि कर्म किया जाता है। हमारे पितर किसी भी योनि में हो सकते हैं, इसलिए पंचबलि कर्म किया जाता है। आइये जानते हैं पंचबलि कर्म के निमित कौन आते हैं
गौबलि
गौबलि अर्थात गाय को पत्ते पर भोजन परोसा जाता है। घर से पश्चिम दिशा में गाय को महुआ या पलाश के पत्तों पर गाय को भोजन कराया जाता है तथा गाय को 'गौभ्यो नम:' कहकर प्रणाम किया जाता है। पुराणों के अनुसार गाय में सभी देवताओं का वास माना गया है। अथर्ववेद के अनुसार- 'धेनु सदानाम रईनाम' अर्थात गाय समृद्धि का मूल स्रोत है। गाय में सकारात्मक ऊर्जा का भंडार होता है, जो भाग्य को जागृत करने की क्षमता रखती है। गाय को अन्न और जल देने से सभी तरह के संकट दूर होकर घर में सुख, शांति और समृद्धि के द्वारा खुल जाते हैं। प्रतिदिन गाय को रोटी खिलाने गुरु और शुक्र बलवान होता और धन-समृद्धि बढ़ती है।
श्वानबलि
श्वानबलि अर्थात कुत्ते को पत्ते पर भोजन परोसा जाता है। कुत्ते को भोजन देने से भैरव महाराज प्रसन्न होते हैं और हर तरह के आकस्मिक संकटों से वे भक्त की रक्षा करते हैं। कुत्ता आपकी राहु, केतु के बुरे प्रभाव और यमदूत, भूत प्रेत आदि से रक्षा करता है। कुत्ते को प्रतिदिन भोजन देने से जहां दुश्मनों का भय मिट जाता है वहीं व्यक्ति निडर हो जाता है। ज्योतिषी के अनुसार केतु का प्रतीक है कुत्ता। कुत्ता पालने या कुत्ते की सेवा करने से केतु का अशुभ प्रभाव समाप्त हो जाता है। पितृ पक्ष में कुत्तों को मीठी रोटी खिलानी चाहिए।
काकबलि
काकबलि अर्थात कौए के लिए छत या भूमि पर भोजन परोसा जाता है। कहते हैं कि कौआ यमराज का प्रतीक माना जाता है। यमलोक में ही हमारे पितर रहते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कौओं को देवपुत्र भी माना गया है। कौए को भविष्य में घटने वाली घटनाओं का पहले से ही आभास हो जाता है। पुराणों की एक कथा के अनुसार इस पक्षी ने अमृत का स्वाद चख लिया था इसलिए मान्यता के अनुसार इस पक्षी की कभी स्वाभाविक मृत्यु नहीं होती। कोई बीमारी एवं वृद्धावस्था से भी इसकी मौत नहीं होती है। इसकी मृत्यु आकस्मिक रूप से ही होती है। जिस दिन किसी कौए की मृत्यु हो जाती है उस दिन उसका कोई साथी भोजन नहीं करता है। कहते हैं कि यदि कौआ आपके श्राद्ध का भोजन ग्रहण कर ले तो समझो आपके पितर आपसे प्रसन्न और तृप्त हैं और यदि नहीं करें तो समझो कि आपके पितर आपसे नाराज और अतृप्त हैं।
पिपलिकादि
पिपलिकादि बलि अर्थात चींटी-कीड़े-मकौड़ों इत्यादि के लिए पत्ते पर भोजन परोसा जाता। उनके बिल हों, वहां चूरा कर भोजन डाला जाता है। इससे सभी तरह के संकट मिट जाते हैं और घर परिवार में सुख एवं समृद्धि आती है।
देवबलि
देवबलि अर्थात पत्ते पर देवी देवतों और पितरों को भोजन परोसा जाता है। बाद में इसे उठाकर घर से बाहर उचित स्थान रख दिया जाता है।
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