आखिर क्यों जैन धर्म में सूर्यास्त के बाद भोजन करना है निषेध?
जैन धर्म के अपने रीति-रिवाज हैं. जैन समाज के लोगों को कई नियमों का पालन करना होता है.
जैन धर्म के अपने रीति-रिवाज हैं. जैन समाज के लोगों को कई नियमों का पालन करना होता है. इनमें से एक है सूर्यास्त के बाद भोजन ना करना यानी रात्रि में भोजन करने से बचना चाहिए. जैन धर्म में नियम हैं कि सूर्यास्त से पहले भोजन किया जाता है. इसके पीछे भी कई कारण हैं. आइये जानते हैं पंडित इंद्रमणि धनस्याल से जैन धर्म से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें.
भोजन न करने के पीछे हैं दो कारण
जैन धर्म में रात्रि में भोजन करना सख्त मना है. जैन धर्म किसी भी रूप में अहिंसा पर जोर देता है. रात में भोजन न करने के दो कारण होते हैं. पहला अहिंसा और दूसरा बेहतर स्वास्थ्य. वहीं, वैज्ञानिक शोध ने इसे स्पष्ट कर दिया है.
उनके अनुसार जिन कीटाणुओं को हम सीधे नहीं देख सकते, वे रात में तेजी से फैलते हैं. ऐसे में सूर्यास्त के बाद उचित और स्वच्छ भोजन पेट में प्रवेश नहीं करता है. इसे जैन धर्म में हिंसा माना गया है. यही वजह है कि रात के समय भोजन को जैन धर्म में वर्जित बताया गया है.
पाचन तंत्र रहता है स्वस्थ
वहीं, सूर्यास्त से पहले भोजन करने से पाचन तंत्र स्वस्थ रहता है. रात में पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है. जल्दी भोजन करने से सोने से पहले भोजन को पचाने के लिए पर्याप्त समय मिल सकता है
अहिंसा का करते हैं पालन
चतुर्मास के चार महीने वर्षा ऋतु में होते हैं. इस अवधि में एक ही स्थान पर तपस्या, साधना और पूजा की जाती है. जैन धर्म के अनुसार इस मौसम में कई प्रकार के कीट और रोगाणु उत्पन्न होते हैं, अधिक चलने से इन जीवों को नुकसान हो सकता है, इसलिए जैन साधु एक ही स्थान पर बैठते हैं. वे तपस्या और प्रवचन करते हैं और अहिंसा का भी पूरी तरह से पालन करते हैं.गा.