आज है मोक्षदा एकादशी, जानें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

हिंदी पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी मनाई जाती है। इस प्रकार 14 दिसंबर को मोक्षदा एकादशी है। इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा-आराधना की जाती है।

Update: 2021-12-16 05:15 GMT

हिंदी पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी मनाई जाती है। इस प्रकार 14 दिसंबर को मोक्षदा एकादशी है। इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा-आराधना की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि मोक्षदा एकादशी व्रत के पुण्य-प्रताप से व्रती को बुरे से बुरे पापकर्मों के पाश से मुक्ति मिल जाती है। साथ ही मरणोपरांत मोक्ष की प्राप्ति होती है। कालांतर से ऋषि मुनियों ने मोक्षदा एकादशी कर मोक्ष की प्राप्ति की है। आइए, इस व्रत की पूजा शुभ मुहूर्त, महत्व और पूजा विधि के बारे में जानते हैं-

मोक्षदा एकादशी पूजा शुभ मुहूर्त
पंचांग अनुसार, मार्गशीर्ष माह में शुक्ल पक्ष की मोक्षदा एकादशी सोमवार 13 दिसंबर को रात्रि 9 बजकर 32 मिनट पर शुरू होकर 14 दिसंबर को रात में 11 बजकर 35 मिनट पर समाप्त होगी। अतः साधक 14 दिसंबर को दिनभर भगवान श्रीहरि विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा-उपासना कर सकते हैं।
मोक्षदा एकादशी व्रत महत्व
सनातन धर्म में मोक्षदा एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अपने अनन्य और परम मिंत्र अर्जुन को कुरुक्षेत्र के मैदान में गीता ज्ञान दिया था। मोक्षदा एकादशी के दिन गीता जयंती भी मनाई जाती है। शास्त्रों में निहित है कि मोक्षदा एकादशी का व्रत करने से व्रती को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
मोक्षदा एकादशी की पूजा विधि
इस व्रत की शुरुआत दशमी तिथि से हो जाती है। इस दिन व्रती को लहसुन, प्याज और तामसी भोजन का परित्याग कर देना चाहिए। निशाकाल में भूमि पर शयन करना चाहिए। एकादशी को ब्रह्म बेला में उठकर सर्वप्रथम अपने आराध्य देव को स्मरण और प्रणाम करना चाहिए। इसके बाद नित्य कर्मों से निवृत होकर गंगाजल युक्त पानी से स्नान करना चाहिए। तत्पश्चात, आमचन कर व्रत संकल्प लें। अब भगवान भास्कर को जल का अर्घ्य दें। इसके बाद भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा, फल, फूल, दूध, दही, पंचामृत, कुमकुम, तांदुल, धूप-दीप आदि से करें। मोक्षदा एकादशी के दिन गीता पाठ जरूर करें। दिनभर उपवास रखें। व्रती चाहे तो दिन में एक फल और एक बार पानी ग्रहण कर सकते हैं। शाम में आरती-प्रार्थना के बाद फलाहार करें। अगले दिन पूजा-पाठ संपन्न कर व्रत खोलें।

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