गोवा में है माता दुर्गा का शांतादुर्गा रूप

उत्तरी गोवा के पोंडा तालुका में स्थित मां शांतादुर्गा का मंदिर गोवा के सबसे भव्य और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है।

Update: 2021-06-29 05:58 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| उत्तरी गोवा के पोंडा तालुका में स्थित मां शांतादुर्गा का मंदिर गोवा के सबसे भव्य और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है।उत्तरी गोवा के पोंडा तालुका में स्थित मां शांतादुर्गा का मंदिर गोवा के सबसे भव्य और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है।उत्तरी गोवा के पोंडा तालुका में स्थित मां शांतादुर्गा का मंदिर गोवा के सबसे भव्य और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है।उत्तरी गोवा के पोंडा तालुका में स्थित मां शांतादुर्गा का मंदिर गोवा के सबसे भव्य और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। स्थानीय लोग शांतादुर्गा को 'शांतेरी' भी कहते हैं। इसकी एक कथा है। एक बार विष्णुजी और शिवजी के बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया, जो खत्म ही नहीं हो रहा था। चिंतित ब्रह्माजी ने माता पार्वती से युद्ध शांत कराने का अनुरोध किया। मां ने शांतादुर्गा के रूप में भगवान विष्णु को अपने दाहिने और भगवान शिव को बायें हाथ में उठा लिया। इसके बाद यह युद्ध समाप्त हो गया। इन्होंने विष्णुजी और शिवजी के बीच शांति कराई, इसीलिए इन्हें शांतेरी या शांतादुर्गा कहा जाता है।

ये सारस्वत, कर्हाडे ब्राह्मणों और भंडारी लोगों की कुल देवी हैं। मां शांतादुर्गा भगवान शिव की पत्नी और अनन्य भक्त दोनों हैं, इसलिए मंदिर में उनके साथ भगवान शंकर की भी पूजा की जाती है। मां की प्रतिमा के पास ही एक शिवलिंग भी है।
यह मंदिर पूर्वमुखी है और भारतीय तथा पुर्तगाली स्थापत्य का शानदार उदाहरण है। मंदिर के दोनों तरफ अगरशाला (अतिथिगृह) भवन है। मंदिर के सामने एक बड़ा कुंड है। मंदिर परिसर में जाने के लिए एक बड़ा प्रवेशद्वार है। मंदिर के सामने एक बड़ा दीपस्तंभ है, जिसे उत्सवों में प्रज्ज्वलित किया जाता है। तब इसकी सुंदरता देखते ही बनती है। मुख्य मंदिर के पास बायीं ओर भगवान नारायण का भी एक मंदिर है, जिसमें गणपति भगवान की भी मूर्ति है।
मां शांतादुर्गा का मंदिर सदियों पुराना है। इनकी प्रतिमा पहले केलोशी में स्थापित थी। जब वहां पुर्तगालियों के अत्याचार बढ़ने लगे, तो मां शांतादुर्गा और श्री मंगेश की पूजा करने वाले परिवार एक अमावस की रात अपने आराध्यों की मूर्तियां लेकर वहां से पलायन कर गए और कवले तथा मंगेशी गांव पहुंचे। मां शांतादुर्गा की प्रतिमा कवले में और श्री मंगेश की प्रतिमा मंगेशी में स्थापित की गई। पुर्तगाली अभिलेखों के अनुसार इन मूर्तियों के स्थानांतरण की घटना 14 जनवरी, 1566 से 29 नवंबर, 1566 के बीच हुई थी। कुछ समय बाद ही मूल मंदिरों को पुर्तगालियों ने तोड़ दिया था।
उपलब्ध जानकारियों के अनुसार, वर्तमान मंदिर का निर्माण 1713 ईस्वी से 1738 के बीच हुआ था। इसका निर्माण छत्रपति साहू जी महाराज के मंत्री नरोराम ने करवाया। मंदिर में समय-समय पर मरम्मत और नवीनीकरण का काम होता रहा। साहू जी महाराज ने 1739 में कवले गांव उपहार के रूप में मंदिर को दे दिया। मंदिर में कई उत्सव मनाए जाते हैं। यह सुबह पांच बजे से रात के 10 बजे तक खुला रहता है।
कैसे पहुंचें: मंदिर पणजी से करीब 33 किलोमीटर की दूरी पर है। नजदीकी एअरपोर्ट डाबोलिम में है, जो 45 किलोमीटर दूर है। नजदीकी रेलवे स्टेशन वास्कोडिगामा और मरगांव हैं। पणजी बस स्टैंड मंदिर से करीब 30 किलोमीटर दूर है। एअरपोर्ट, रेलवे स्टेशन व बस स्टैंड से टैक्सी या स्थानीय साधनों से आसानी से मंदिर पहुंच सकते हैं।


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