मुहर्रम क्या है, जानें इतिहास और महत्व

इस्लामिक कैलेंडर के पहले महीने का नाम मुहर्रम है। मुसलमानों के लिए ये सबसे पवित्र महीना होता है। इस महीने से इस्लाम का नया साल शुरू हो जाता है। मोहर्रम माह के 10वें दिन यानी 10 तारीख को रोज-ए-आशुरा कहा जाता है।

Update: 2022-08-06 04:33 GMT

इस्लामिक कैलेंडर के पहले महीने का नाम मुहर्रम है। मुसलमानों के लिए ये सबसे पवित्र महीना होता है। इस महीने से इस्लाम का नया साल शुरू हो जाता है। मोहर्रम माह के 10वें दिन यानी 10 तारीख को रोज-ए-आशुरा कहा जाता है। इन दिन को इस्लामिक कैलेंडर में बेहद अहम माना गया है क्योंकि इसी दिन हजरत इमाम हुसैन की शहादत हुई थी। इस्लाम धर्म के संस्थापक हजरत मुहम्मद साहब के छोटे नवासे हजरत इमाम हुसैन ने कर्बला में अपने 72 साथियों के साथ शहादत दी थी। इसलिए इस माह को गम के महीने के तौर पर मनाया जाता है। इमाम हुसैन की शहादत की याद में ही ताजिया और जुलूस निकाले जाते हैं। ताजिया निकालने की परंपरा सिर्फ शिया मुस्लिमों में ही देखी जाती है जबकि सुन्नी समुदाय के लोग तजियादारी नहीं करते हैं।

जानें ताजिया का इतिहास

मोहर्रम माह के 10वें दिन तजियादारी की जाती है। बताया कि इराक में इमाम हुसैन का रोजा-ए-मुबारक ( दरगाह ) है, जिसकी हुबहू कॉपी (शक्ल) बनाई जाती है, जिसे ताजिया कहा जाता है। ताजियादारी की शुरुआत भारत से हुई है। तत्कालीन बादशाह तैमूर लंग ने मुहर्रम के महीने में इमाम हुसैन के रोजे (दरगाह) की तरह से बनवाया और उसे ताजिया का नाम दिया गया दस मोहर्रम को इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों की शाहदत की याद में ताजियेदारी की जाती है। शिया उलेमा के मुताबिक, मोहर्रम का चांद निकलने की पहली तारीख को ही ताजिया रखने का सिलसिला शुरू हो जाता है और फिर उन्हें दस मोहर्रम को कर्बला में दफन कर दिया जाता है। लेकिन इस बार कोरोना का साया है। ताजियों का जुलूस नहीं निकलेगा।


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