विहिप ने आंध्र प्रदेश सरकार से तिरुपति बालाजी सहित सभी मंदिरों को हिंदू समाज को सौंपने की मांग की

Update: 2024-10-20 03:27 GMT
विजयवाड़ा/नई दिल्ली: विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने शनिवार को आंध्र प्रदेश सरकार से तिरुपति बालाजी सहित राज्य के सभी मंदिरों को हिंदू समाज को सौंपने की मांग की है। मंदिरों को सरकारी कब्जे से मुक्ति नहीं मिलने पर विहिप ने 5 जनवरी 2025 को प्रचंड प्रदर्शन करने की भी चेतावनी दी।
विहिप के राष्ट्रीय संयुक्त महामंत्री डॉ. सुरेंद्र जैन ने आंध्र प्रदेश सरकार से कहा है कि वह तिरुपति बालाजी सहित राज्य के सभी मंदिरों को हिंदू समाज को सौंप दे। मंदिरों के प्रबंधन में सरकारों, राजनीतिक व्यक्तियों तथा गैर-हिंदुओं का कोई काम नहीं है।
विजयवाड़ा में मीडिया को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि हिंदुओं के महान तीर्थ तिरुपति बालाजी मंदिर से मिलने वाले महाप्रसाद की पवित्रता के संबंध में जिस प्रकार के समाचार आए उससे संपूर्ण विश्व का हिंदू समाज आक्रोशित है। आस्थाओं की सुरक्षा तो दूर, मंदिरों की सुरक्षा भी खतरे में पड़ गई है। आंध्र प्रदेश में कई मंदिरों और हिंदू कार्यक्रमों पर जिहादियों द्वारा आक्रमण किए गए, परंतु दुर्भाग्य से अपराधियों पर अब तक कोई सख्त कार्रवाई नहीं की गई है। हिंदू आस्थाओं के साथ खिलवाड़ करने के ऐसे दुर्भाग्यपूर्ण समाचार कई स्थानों से मिले हैं। इनमें से अधिकांश मंदिरों का संचालन सरकारों द्वारा ही किया जाता है। हमारी आस्थाओं का तभी सम्मान हो सकता है जब इनका संचालन स्वयं हिंदू समाज द्वारा किया जाए।
डॉ. जैन ने कहा कि सरकार द्वारा नियंत्रित तिरुपति बालाजी सहित अनेक अन्य मंदिरों में हिंदुओं द्वारा अत्यंत श्रद्धा भाव से अर्पित की गई देव राशि के सरकारी अधिकारियों और राजनेताओं द्वारा दुरुपयोग के कई समाचार मिले हैं। हिंदुओं का धर्मांतरण करने या हिंदू समाज को नष्ट करने का प्रयास कर रही संस्थाओं को इस पवित्र राशि से अनुदान देने के समाचार भी मिलते रहे हैं। हिंदू समाज के पैसे का उपयोग हिंदू धर्म को नष्ट करने वालों के पोषण के लिए किए जाने से हिंदू समाज बहुत व्यथित है। तिरुपति बालाजी सहित सरकार द्वारा नियंत्रित मंदिरों के प्रबंधन में कई गैर-हिंदुओं की नियुक्ति करके हिंदू आस्थाओं के साथ खिलवाड़ भी किया गया है। सरकारों द्वारा मंदिरों का नियंत्रण न केवल असंवैधानिक है, अपितु हिंदू आस्थाओं के साथ खिलवाड़ भी है।
विहिप नेता ने आगे कहा कि न्यायपालिका ने कई मामलों में स्पष्ट किया है कि सरकारों को मंदिरों के संचालन और उनकी संपत्तियों की व्यवस्था से अलग रहना चाहिए। सरकारों द्वारा मंदिरों पर नियंत्रण संविधान की धारा 12, 25 और 26 का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन है। उन्होंने आरोप लगाया कि मंदिरों पर कब्जा करने वाली सरकारें औपनिवेशिक मानसिकता से ग्रस्त हैं। मुस्लिम आक्रमणकारियों ने मंदिरों को लूटा, अपमानित किया और नष्ट किया। अंग्रेजों ने चतुराई पूर्वक उन पर नियंत्रण स्थापित किया और उन्हें निरंतर लूटने की प्रक्रिया स्थापित कर दी। सनातन को समाप्त करने का संकल्प लेने वाली सेक्युलर राजनीतिक पार्टियां सनातनियों के मंदिरों की आय और संपत्ति को लूटकर अपने घर भी भरती हैं और सनातन विरोधी एजेंडा को पूरा करने का प्रयास भी करती हैं। हिंदू संपत्ति का हिंदू कार्यों के लिए ही उपयोग होना चाहिए। अल्पसंख्यकों को अपने धार्मिक संस्थान चलाने की अनुमति है, फिर हिंदू समाज को यह संविधान सम्मत अधिकार क्यों नहीं दिया जा रहा है? हिंदू समाज अपने लाखों मंदिरों का कुशलतापूर्वक संचालन कर रहा है, इसलिए हिंदू समाज की सशक्त आवाज है कि मंदिरों का 'सरकारीकरण नहीं समाजीकरण' होना चाहिए।
विहिप नेता ने आंध्र प्रदेश सरकार के सामने अपनी मांगों की सूची रखते हुए कहा, "तिरुपति बालाजी सहित समस्त हिंदू मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करके हिंदू संतों और भक्तों को एक निश्चित व्यवस्था के अंतर्गत सौंप दें। यह व्यवस्था बनने तक, हिंदू मंदिरों के प्रबंधन और संचालन में नियुक्त अनास्थावान और गैर-हिंदुओं को अविलंब हटाया जाए और यह आदेश दिया जाए कि किसी भी गैर-हिंदू और राजनेताओं को मंदिर के संचालन में कभी नियुक्त नहीं किया जाएगा। हिंदू मंदिरों के पास भोजन, प्रसाद या पूजा सामग्री की कोई दुकान गैर-हिंदू की न हो, यह सुनिश्चित करना चाहिए। इसके साथ ही हिंदू मंदिरों और कार्यक्रमों पर हमला करने वाले जिहादियों और अन्य अपराधियों पर कठोरतम कार्रवाई होनी चाहिए जिससे भविष्य में कोई हिंदुओं पर हमला करने की सोच भी न सके।"
उन्होंने विरोध-प्रदर्शन की चेतावनी देते हुए यह भी कहा कि यदि ये मांगें नहीं मानी गईं तो अपना संकल्प व्यक्त करने के लिए आंध्र प्रदेश का हिंदू समाज आगामी 5 जनवरी 2025 को विजयवाड़ा में विशाल प्रदर्शन करेगा। इसके बाद भी अगर हिंदू मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त नहीं किया गया और हिंदू समाज की मांगें स्वीकार नहीं की गईं तो एक व्यापक जन आंदोलन प्रारंभ किया जाएगा।
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