देश-दुनिया में झारखंड के लाह की चमक बिखेरने वाले संस्थान के पूरे हो रहे 100 साल, शताब्दी समारोह में राष्ट्रपति करेंगी शिरकत

Update: 2024-09-18 12:00 GMT
रांची: झारखंड के लाह की चमक देश-दुनिया तक पहुंचाने वाला रांची का नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सेकेंडरी एग्रीकल्चर (एनआईएसए) 20 सितंबर को अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूरे कर रहा है। संस्थान की उपलब्धियों और गौरव की शताब्दी यात्रा के मौके पर आयोजित हो रहे कार्यक्रम में देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू बतौर मुख्य अतिथि शिरकत करेंगी।
झारखंड देश का सबसे बड़ा लाह उत्पादक राज्य है। यहां हर साल लगभग 16 से 18 हजार टन लाह का उत्पादन होता है। यह पूरे देश में कुल लाह उत्पादन का लगभग 60 फीसदी हिस्सा है। झारखंड की इस उपलब्धि के पीछे रांची के नामकुम स्थित राष्ट्रीय माध्यमिक कृषि संस्थान और उसके वैज्ञानिकों की भूमिका सबसे बड़ी मानी जाती है। पहले इस संस्थान को भारतीय लाह अनुसंधान केंद्र और भारतीय प्राकृतिक राल एवं गोंद संस्थान के नाम से जाना जाता था।
20 सितंबर 1924 में ब्रिटिश भारत में स्थापित हुआ यह संस्थान देश में अपनी तरह का इकलौता है। सितंबर 2022 में भारत सरकार ने इसका नाम नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सेकेंडरी एग्रीकल्चर कर दिया। इस संस्थान ने अपने 100 वर्षों की यात्रा में लाह और गोंद के रिसर्च के क्षेत्र में उपलब्धियों के अनेक कीर्तिमान कायम किए हैं। इसने राज्य और राज्य के बाहर के लाखों किसानों को लाह की खेती का ना सिर्फ प्रशिक्षण दिया है, बल्कि यहां के वैज्ञानिकों ने लगातार रिसर्च से इसकी गुणवत्ता को विकसित किया है।
इस संस्थान की स्थापना की कहानी रोचक है। वर्ष 1900 से पहले छोटानागपुर और आसपास के इलाकों (मौजूदा झारखंड) के ग्रामीण लाह जमा करते थे, लेकिन इसका उपयोग अवैज्ञानिक तरीके से होता था। लाह की उपयोगिता समझने के लिए भारत की तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने एक कमेटी बनाई, जिसमें एचएएफ लिंडसे और सीएम हार्ले शामिल थे। इस कमेटी ने 1921 में रिपोर्ट दी, जिसमें लाह के उपयोग के लिए अनुसंधान संस्थान स्थापित करने की अनुशंसा की गई।
इसके बाद रांची के नामकुम में 20 सितंबर 1924 को करीब 110 एकड़ क्षेत्र में इसकी स्थापना की गई। संस्थान का नाम रखा गया बायोकेमिकल एंड एन्टोमोलॉजी लेबोरेट्री। इसी परिसर में 1930 में प्रायोगिक तौर पर लाह की पहली फैक्ट्री शुरू हुई। उद्देश्य था लाह की वैज्ञानिक तरीके से खेती कराना, इससे उत्पाद तैयार कर उसकी मार्केटिंग करना। 1931 में इंडियन लाह सेस कमेटी बनाई गई, जिसकी अनुशंसा पर इसे भारतीय लाह अनुसंधान संस्थान में बदल दिया गया।
1938 में बिजली से चलने वाला लैब विकसित किया गया। 1966 में यह संस्थान भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर), नई दिल्ली के अधीन आ गया। उसके बाद से संस्थान आज भी इसी इंस्टीट्यूट की देखरेख में चल रहा है। 2007 में इस संस्थान का नाम इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ नेचुरल रिजिंस एवं गम्स (आईआईएनआरजी) कर दिया गया था। इसके पंद्रह साल बाद इसका नामकरण 27 सितंबर 2022 में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सेकेंडरी एग्रीकल्चर कर दिया गया।
इसके साथ ही अनुसंधान का दायरा भी बढ़ गया। अब यह संस्थान लाह एवं गोंद के साथ-साथ सेकेंडरी एग्रीकल्चर के तहत आने वाले तमाम उत्पादों के लिए रिसर्च करता है। निदेशक डॉ. अभिजीत कर ने कहा कि संस्थान की 100 वर्षों की यात्रा निश्चित रूप से गौरवशाली रही है। यह गर्व का विषय है कि 100वीं वर्षगांठ पर आयोजित होने वाले समारोह में देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू स्वयं उपस्थित रहेंगी। इस मौके पर राज्यपाल संतोष कुमार गंगवार, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित कई हस्तियां खास तौर पर मौजूद रहेंगी।
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