भारत में पहली बार बाइलेटरल ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया से पीड़ित महिला का सफल इलाज

Update: 2024-06-27 11:33 GMT
मुंबई: मुंबई के डॉक्टरों की एक टीम ने बाइलेटरल ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया से पीड़ित 56 वर्षीय एक महिला का एडवांस न्यूरोसर्जरी के जरिए सफल इलाज किया। भारत में इस तरह का यह पहला मामला है।
जसलोक हॉस्पिटल एवं रिसर्च सेंटर ने गुरुवार को एक बयान में कहा, ''प्राइमरी बाइलेटरल ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया अत्यंत दुर्लभ बीमारी है। इसके 0.6 से 5.9 प्रतिशत मामले ही सामने आते हैं। आज तक इंग्लिश मेडिकल लिटरेचर में केवल 24 मामले ही रिपोर्ट किए गए हैं, इनमें से कोई भी भारत से नहीं है। भारत में यह पहला मामला सामने आया है। इसमें बाइलेटरल माइक्रोवैस्कुलर डीकंप्रेसन (एमवीडी) किया गया। इसके परिणामस्वरूप मरीज को दर्द से पूरी तरह राहत मिली।''
महाराष्ट्र की निवासी किरण अवस्थी को चेहरे के दोनों तरफ पांच साल से हो रहे तीव्र झटके जैसे दर्द के बाद जसलोक हॉस्पिटल एवं रिसर्च सेंटर के डॉक्टरों के पास लाया गया। महिला का यह दर्द कई मिनट तक चलता था। इससे उन्‍हें बात करने, खाने, दांत साफ करने और यहां तक ​​कि ठंडी हवा के संपर्क में आने से परेशानी होती थी।
बिमारी का निदान न होने के चलते कई तरह के उपचार के बावजूद महिला को कोई राहत नहीं मिली। असहनीय दर्द के चलते उसके लिए रोजमर्रा के घरेलू कामों को करना मुश्किल हो गया। वह खुदकुशी करने पर विचार करने लगी।
पिछले साल अक्टूबर में एमआरआई स्कैन से पता चला कि उसकी ट्राइजेमिनल नसों पर वैस्कुलर लूप दबाव डाल रहे थे। उसमें बाइलेटरल प्राइमरी ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया का पता लगाया गया। जसलोक अस्पताल के न्यूरोसर्जन राघवेन्द्र रामदासी ने कहा, ''बाइलेटरल ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया को सबसे दर्दनाक स्थितियों में से एक के रूप में जाना जाता है। इस दुर्लभ मामले का निदान कर भारत में पहली बार बाइलेटरल माइक्रोवैस्कुलर डीकंप्रेशन के साथ इसका सफल इलाज किया गया। पांच साल बाद फिर से मरीज को सामान्य जीवन जीते हुए देखना हमारे लिए सबसे बड़ा इनाम है।''
इसमें कार्बामाजेपाइन, गेबापेनटिन, लेमोट्रीजीन और टोपिरामेट जैसी दवाएं राहत प्रदान कर सकती हैं। माइक्रोवैस्कुलर डिकम्प्रेशन इसका अब भी सर्वोत्तम उपचार है। मरीज का पहले बायीं ओर का ऑपरेशन किया गया, उसके एक सप्ताह बाद दाहिनी ओर का ऑपरेशन किया गया।
डॉक्टर ने कहा, "सर्जरी के बाद मरीज को दर्द से पूरी तरह राहत मिली। इससे उसका जीवन सामान्य हो सका। छह महीने बाद अब वह दर्द रहित जीवन जी रही है।" नया जीवन देने के लिए डॉक्टर को धन्यवाद देते हुए किरण ने कहा कि वह मृत्यु के द्वार से वापस आई थी। असहनीय दर्द होने के चलते वह आत्महत्या करने वाली थी।
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