भाजपा के करोल बाग उम्मीदवार दुष्यंत गौतम का राजनीतिक सफर, क्या उनकी लीडरशिप बदलेगी समीकरण
नई दिल्ली: दिल्ली विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने करोल बाग निर्वाचन क्षेत्र से पार्टी के वरिष्ठ नेता और राष्ट्रीय महासचिव दुष्यंत कुमार गौतम को अपना उम्मीदवार बनाया है। भाजपा में विभिन्न पदों पर काम करते हुए दुष्यंत कुमार गौतम ने संगठनात्मक राजनीति में अपनी पहचान बनाई है।
दुष्यंत कुमार गौतम के राजनीतिक जीवन की शुरुआत छात्र राजनीति से हुआ था। शुरुआती दिनों में वह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से जुड़े थे। आपातकाल के दौरान उन्होंने राजनीति में कदम रखा और दलित समुदाय से जुड़े मुद्दों को प्रभावी तरीके से उठाया। इसके बाद उन्हें भाजपा के अनुसूचित मोर्चा का उपाध्यक्ष बनाया गया, तीन बार वह इस मोर्चे के अध्यक्ष भी रहे। दुष्यंत कुमार गौतम हरियाणा से राज्यसभा सांसद भी रह चुके हैं।
संगठनात्मक राजनीति के बाद गौतम की चुनावी यात्रा साल 1997 में जिला पार्षद के चुनाव से शुरू हुई। हालांकि, इस चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद उन्होंने संगठन में काम करने को प्राथमिकता दी। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को अपना आदर्श मानते हुए, दुष्यंत गौतम संगठनात्मक राजनीति में रहे और फिर वह उत्तराखंड के प्रभारी बनाए गए।
भाजपा में रहते हुए उन्होंने कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभाई हैं और राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी के लिए काम किया। वह भाजपा के अनुसूचित मोर्चे के अध्यक्ष के तौर पर तीन बार कार्यरत रहे और पार्टी की नीति व योजनाओं को जन-जन तक पहुंचाने के लिए लगातार प्रयासरत रहे। इन सब के अलावा, दुष्यंत कुमार गौतम का विवादों से गहरा रिश्ता रहा है। 2022 में उन्होंने कांग्रेस पार्टी पर तीखा हमला बोलते हुए पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को 'निकम्मा' तक करार दिया था।
उन्होंने कहा था कि प्रधानमंत्री बनने के लिए नेहरू ने देश के दो टुकड़े कर दिए थे, जबकि भारतीय जनता पार्टी के श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कश्मीर को लेकर अपने प्राणों की आहुति दे दी। इसके अलावा, उन्होंने इंडिया गठबंधन की तुलना 'स्ट्रीट डॉग' से की थी, जिसके बाद विपक्षी दलों ने उनका विरोध किया था। कांग्रेस नेताओं पर एक और विवादित बयान देते हुए उन्होंने कहा था कि कांग्रेसी मंदिरों में लड़कियां छेड़ने जाते हैं।
दुष्यंत गौतम के करोल बाग से चुनाव लड़ने के फैसले ने इस क्षेत्र में भाजपा के प्रचार-प्रसार को और मजबूती दी है। वे भाजपा की विचारधारा को जन-जन तक पहुंचाने के लिए कटिबद्ध हैं और इस चुनावी दौरे में अपने काम को आगे बढ़ाने के लिए पूरी तरह तैयार हैं।
यह देखना दिलचस्प होगा कि राजनीति में उनका अनुभव और विवादों की तीव्रता इस बार उन्हें करोल बाग की जनता से कितना समर्थन प्राप्त करती है।