कैसा होता है पारसी खानपान
अपनी सांस्कृतिक ख़ासियत के साथ-साथ ज़ायके भी अलग-
खानपान | भारत एक ऐसा देश है, जहां सबसे अधिक भाषाएं बोली जाती हैं. दुनिया के लगभग सभी प्रमुख धर्मों के अनुयायी यहां मिल-जुलकर रहते हैं. इतनी भिन्नताओं वाले भारत की हर कम्यूनिटी यानी समुदाय की अपनी सांस्कृतिक ख़ासियत के साथ-साथ ज़ायके भी अलग-अलग हैं. तो चलिए देश की अलग-अलग कम्यूनिटी की रसोई में नोश फ़रमाते हैं.
पारसी किचन में स्वागत कर रही हैं पेर्ज़ेन पटेलवर्ष 2013 में अवॉर्ड विजेता पारसी फ़ूड ब्लॉग शुरू करनेवाली पेर्ज़ेन पटेल ने पारसी व्यंजनों की आसान उपलब्धता के लिए वर्ष 2014 में बावी ब्राइड किचन नामक पारसी फ़ूड डिलिवरी कंपनी शुरू की. बावी ब्राइड किचन कई फ़ूड डिलिवरी ऐप्स की मदद से मुंबईभर में पारसी फ़ूड पहुंचाती है. खाना बनाना और खिलाना पेर्ज़ेन के डीएनए में है. वे लोगों को यह बताने के मिशन पर हैं कि पारसी खानपान में धनसाक के अलावा भी बहुत कुछ है. उन्हें किचन में नए प्रयोग करना पसंद है.पारसी खानपानपेर्ज़ेन के अनुसार पारसी खानपान पर ईरानी, गुजराती और ब्रिटिश तौर-तरीक़ों का प्रभाव है. मीट, नट्स और एग्स पारसी व्यंजनों के मुख्य घटक हैं. 500 से अधिक वर्षों से गुजरात के तटीय इलाक़ों में रहने के कारण पारसी लोग अपने पकवानों को टमाटर और विनेगर की मदद से खट्टा-मीठा बनाने लगे हैं. उनके खानपान में मछलियां भी शामिल हो गई हैं. वहीं पारसी नाश्ते और डिज़र्ट में बननेवाले चिकन पाई, पैनकेक और कस्टर्ड जैसे पकवान ब्रिटिशर्स के प्रभाव का नतीजा है. सबसे लोकप्रिय पारसी पकवान है धनसाक, जिसमें मीट के लिए पारसियों के प्यार और दालों के प्रति भारतीयों के लगाव का लाजवाब संगम दिखता है. बावजूद इसके धनसाक को कभी भी शुभ अवसरों पर नहीं बनाया जाता. दरअस्ल, जब किसी के घर में मृत्यु होती है तो चौथे दिन धनसाक बनाया जाता है. यह इस बात का संकेत होता है कि दुख से बाहर निकलकर सामान्य ज़िंदगी की ओर चलने का वक़्त हो गया है. इस अजीब से जुड़ाव के चलते धनसाक शुभ अवसरों पर वर्जित है. पारसी शादियों में पत्रा नी मच्छी और साली मार्घी जैसे व्यंजन होते ही हैं. धीरे-धीरे ही सही पारसी व्यंजन मुख्यधारा में अपनी जगह बना रहे हैं. पेर्ज़ेन कहती हैं,“धनसाक हर पारसी घर की शनिवार या रविवार की पसंदीदा रेसिपी है. मेरे दादा जी हर रविवार सुबह कीमा कबाब बनाते थे और लंच में परिवार के सभी लोग धनसाक के ज़ायके का लुत्फ़ उठाते थे.”