नई दिल्ली: शोधकर्ताओं ने आंत के माइक्रोबायोम में उन परिवर्तनों का पता लगाया है जिनके कारण रूमेटाइड अर्थराइटिस की शुरुआती होती है। इससे इस बीमारी का समय रहते उपचार संभव हो सकेगा।
ब्रिटेन के लीड्स विश्वविद्यालय और लीड्स टीचिंग हॉस्पिटल्स एनएचएस ट्रस्ट के शोधकर्ताओं ने एक शोध में पाया कि रोगियों में क्लिनिकल रूमेटाइड गठिया विकसित होने से लगभग 10 महीने पहले आंत में सूजन पैदा करने वाले बैक्टीरिया अधिक मात्रा में मौजूद होते हैं।
इन निष्कर्षों से इस बीमारी के जोखिम वाले लोगों की पहचान करने में मदद मिलेगी। साथ ही निवारक और विशेष उपचार करने में भी मदद मिलेगी।
इसको और बेहतर तरीके से समझने के लिए, शोधकर्ताओं ने रूमेटाइड अर्थराइटिस विकसित होने के जोखिम वाले 124 लोगों पर 15 महीने तक नजर रखी। इनमें से सात के हाल ही में बीमारी से पीड़ित होने का पता चला था जबकि 22 लोग स्वस्थ थे। पांच अलग-अलग समयों पर मल और रक्त के नमूनों का उपयोग करके आंत के माइक्रोबायोम प्रोफाइल में हो रहे परिवर्तनों का आकलन किया गया।
शोध में पाया गया कि रूमेटाइड अर्थराइटिस होने से तीन महीने पहले पीड़ितों ने जोड़ों में दर्द की शिकायत की और उनके शरीर में एंटी-साइक्लिक सिट्रुलिनेटेड प्रोटीन (एंटी-सीसीपी) नामक एंटीबॉडी पाई गई, जो स्वस्थ कोशिकाओं पर हमला करती है।
अध्ययन के दौरान, इस बीमारी के जोखिम वाले 124 लोगों में से 30 में रूमेटाइड अर्थराइटिस की समस्या विकसित हो गई। स्वस्थ तुलनात्मक समूह की तुलना में, उनकी माइक्रोबायोम में विविधता भी कम हो गई थी।
शोधकर्ताओं ने पाया कि गठिया के विकास के लिए जिम्मेदार माने जाने वाले आनुवंशिक, रक्त और अन्य प्रकार के कारक भी माइक्रोबायोम में विविधता की कमी से गहरे जुड़े थे, जैसा कि स्टेरॉयड का उपयोग जुड़ा हुआ है।
शोधकर्ताओं ने कहा है कि आंत के माइक्रोबायोम में बदलाव काफी देर से आता है। यह अध्ययन सिर्फ निरीक्षण पर आधारित है तथा इस संबंध में और अध्ययन करने की जरूरत है।