बर्थडे स्पेशल : आईटी सेक्टर के दो दिग्गज जिन्होंने शून्य से शिखर तक का सफर किया तय

Update: 2024-08-19 04:17 GMT
नई दिल्ली: बड़ा ही खूबसूरत संयोग है कि 19 अगस्त को भारत की भूमि पर दो ऐसी विभूतियों ने जन्म लिया जिनके बिना आज के डिजिटल युग की कल्पना नामुमकिन है। एक शहर के नहीं हैं लेकिन दक्षिण भारत से ही दोनों का वास्ता है। एक हैं पद्म भूषण और पद्म श्री से सम्मानित राज्य सभा सांसद सुधा मूर्ति और दूसरे हैं माइक्रोसॉफ्ट दिग्गज सत्य नडेला।
पहले बात उस महिला की जिसने जेआरडी टाटा तक से नौकरी मांगने में परहेज नहीं किया। इस किस्से को सुधा खुद कई प्लेटफॉर्म्स पर सुना भी चुकी हैं। सुधा कुलकर्णी इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद नौकरी की तलाश में थीं। एक विज्ञापन देखा। जिसमें ऑटोमोबाइल कंपनी टेल्को यानि टाटा मोटर्स में एक स्टैंडर्ड जॉब निकली थी। विज्ञापन में लिखा था युवा, होनहार, मेहनती इंजीनियरों की जरूरत है। नीचे एक लाइन भी लिखी थी- 'महिला उम्मीदवार इसके लिए आवेदन न करें।'
उस दौर की बात है जब महिलाओं का स्कूल जाना तक स्वीकार्य नहीं था। खैर नाराज सुधा कुलकर्णी ने झट से टाटा के मालिक को खत लिख डाला। उनसे लिंग के आधार पर असमानता को लेकर सवाल पूछ डाले, फिर क्या था युवा इंजीनियर की दिलेरी से वो प्रभावित हुए और उन्हें टाटा में नौकरी मिल गई। इस तरह सीधी सादी सच्ची सुधा ने टाटा में नौकरी करने वाली पहली महिला इंजीनियर का रिकॉर्ड अपने नाम दर्ज करा लिया।
इसके बाद तो सुधा कुलकर्णी ने मुड़कर नहीं देखा। फिर नारायण मूर्ति से शादी की, जिम्मेदारियां संभाली और गृहस्थी को संवारती चली गईं। वक्त बीता तो इंफोसिस को खड़ा करने में पति की पूरी मदद की। कई मौकों पर राय दी और इंफोसिस को फलते-फूलते देखती रहीं। इसके साथ ही समाज सेवा के क्षेत्र में भी अभूतपूर्व काम किया। उम्र का आधा सफर गुजारने के बाद भी संभावनाओं पर विराम नहीं लगाया। लेखनी से अपने जज्बात जाहिर करने लगीं। 100 से ज्यादा किताबें लिखीं। बड़े, बच्चों सबके लिए। इनमें सहजता, चुलबुलापन और दादी मां वाली सीख हमेशा रही।
ऐसा ही कुछ सफर सत्य नडेला का भी रहा। सत्य नडेला उन चुनिंदा आईटी प्रोफेशनल्स में से एक हैं जिन्होंने माइक्रोसॉफ्ट में अपना सफर शून्य से शुरू किया और फिर अपनी काबिलियत के बलबूते शिखर पर भी पहुंचे। वह एक दो साल नहीं बल्कि पिछले 10 साल से शीर्ष पद पर बने हुए हैं। कंपनी के सीईओ ही नहीं चेयरमैन भी हैं।
2016 में माइक्रोसॉफ्ट का दिल्ली में एक कार्यक्रम था। नडेला कंपनी के कार्यक्रम में पहुंचे। मंच पर आए और धारा प्रवाह गालिब का शेर हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पर दम निकले...सुनाने लगे। नडेला ने कहा- मैं कविता और कंप्यूटर साइंस को बड़े सपनों के संदर्भ में रिलेट करना चाहता हूं...गालिब की इस शायरी पर मेरा नजरिया हर साल बदलता रहता है...मैं इससे नयी चीजें सीखता रहता हूं।
नडेला का ये विचार उनकी शख्सियत को परिभाषित करता है। उनके भारतीय संस्कृति और परंपरा से जुड़ाव और तकनीक को लेकर लगातार नवाचार की सोच को परिलक्षित करता है। यही वजह है कि वह जिस कंपनी से 1997 में जुड़े आज उसके सर्वेसर्वा हैं। दुनिया माइक्रोसॉफ्ट का पर्याय सत्य नडेला को मानती है। दिग्गज लोहा मानते हैं उस शख्स का जिसने घाटे में जा रही कंपनी को फिर से फायदे की कतार में खड़ा कर दिया। आज की तारीख में इन्हें क्लाउड गुरु भी कहा जाने लगा है।
नडेला भारत को तरक्की की राह पर बढ़ते हुए भी देखना चाहते हैं। तभी तो बरसों पहले उन्होंने एक कार्यक्रम में कहा था- हम भविष्‍य के लिए जो ऐप बनाने जा रहे हैं वो गेम चेंजर साबित होंगे। जब आप दुनिया को देखने का अपना नजरिया बदलते हैं तो दुनिया भी बदलने लगती है। मैं चाहता हूं कि भारत के लिए ऐसा प्लेटफॉर्म तैयार किया जाए जहां से भारतीयों के आइडिया का इस्तेमाल उनके विकास में हो सके।”
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