बर्थडे स्पेशल: फिरोज पालिया और प्रज्ञान ओझा, जिनका पहला और अंतिम टेस्ट मैच ऐतिहासिक था
नई दिल्ली: भारत के लिए सबसे तेज 100 टेस्ट विकेट लेने वाला बाएं हाथ का स्पिनर। एक ऐसी उपलब्धि जिसके बाद उसके करियर पर ब्रेक लग गया था। जिसका करियर मात्र 113 विकेट के साथ समाप्त हो गया था। अनिल कुंबले के करियर की संध्या और रविचंद्रन अश्विन व रवींद्र जडेजा के करियर के उदय के बीच जगह बनाने वाले यह स्पिनर थे प्रज्ञान ओझा, जिनके साथ दुर्भाग्य भी जुड़ा हुआ है और वक्त की निर्ममता भी।
5 सितंबर को अपना 38वां जन्मदिन मना रहे ओझा का करियर बहुत कुछ बताता है। ओडिशा के भुवनेश्वर में जन्मे ओझा ने साल 2008 में भारतीय टीम में जगह बनाई थी। अगले ही साल टेस्ट मैच खेलने का मौका मिला। यह वह टीम थी जो अगले ही सीजन में टेस्ट क्रिकेट में नंबर एक बनने जा रही थी। ओझा ने इस टीम में अपनी गेंदबाजी की छाप छोड़ी। उनके सटीक एक्शन, बेहतरीन लाइन-लेंथ और पर्याप्त टर्न ने भारतीय उपमहाद्वीप में उनका सिक्का चला दिया था।
साल 2010 से 2012 तक का समय था जब ओझा समय के साथ निखरते जा रहे थे। उन्होंने सभी मैच भारतीय उपमहाद्वीप में खेले थे। ओझा ओवरसीज एक भी टेस्ट नहीं खेल पाए थे। तब भी ओवरसीज में इक्का-दुक्का स्पिनर ही टीम इंडिया में जगह बना पाते थे। भारतीय उपमहाद्वीप की परिस्थितियों में बल्लेबाजों को छकाने का उनका क्रम जारी था, जब तक कि एक बड़ा झटका उनके करियर में नहीं आया।
ओझा को उनकी फॉर्म नहीं, बल्कि संदिग्ध बॉलिंग एक्शन ने गेंदबाजी से रोक दिया था। यह एक बड़ा झटका था क्योंकि उनको न केवल एक्शन में बदलाव करने थे बल्कि टीम में भी वापसी करनी थी। उन्होंने महज 22 दिनों में वापसी करके भी दिखा दी। लेकिन तब तक ओझा न तो पहले जैसे गेंदबाज थे और न ही भारतीय टीम पहले जैसी थी। भारतीय टीम में डेब्यू करने से ज्यादा बड़ी चुनौती अपनी जगह को बनाए रखना थी। आज भी यही स्थिति है। कंपटीशन बहुत तेज था जिसमें ओझा का करियर पहले जैसा नहीं रहा। उनके एक्शन में सुधार ने उनकी गेंदबाजी को भी बदल दिया था। तब ओझा की उम्र महज 27 साल थी।
दिलचस्प बात है कि सचिन तेंदुलकर का फेयरवेल टेस्ट मैच ओझा का भी अंतिम मैच साबित हुआ। इससे भी दिलचस्प बात है कि उन्होंने मुंबई में वेस्टइंडीज के खिलाफ इस मुकाबले में 10 विकेट हासिल किए थे। एक तरफ सचिन को भावुक विदाई मिल रही थी, दूसरी तरफ ओझा को 'प्लेयर ऑफ द मैच' मिला था। विडंबना यह भी कि उनका करियर इसके बाद खत्म हो चुका था।
अपने करियर की इस स्थिति पर ओझा ने एक इंटरव्यू में कहा था, "मैंने इंतजार किया, लेकिन धीरे-धीरे मुझे समझ में आया कि मैं पीछे रह गया हूं और अब आगे बढ़ने का समय है। इससे ज्यादा और क्या उम्मीद कर सकता हूं? मैंने अपने देश के लिए खेला है, मेरे नाम देश के लिए एक लेफ्ट आर्म स्पिनर के तौर पर सबसे तेज 100 टेस्ट विकेट हैं। किसी को दोष देने या बुरा कहने से समस्या का समाधान नहीं होता। चीजें अच्छी थीं, लेकिन जो होना नहीं था, वो नहीं हुआ।"
33 साल की उम्र में क्रिकेट को अलविदा कहने वाले ओझा ने 24 टेस्ट मैचों में 30.27 की औसत से 113 विकेट लिए। उनको 18 वनडे मैचों में खेलने का भी मौका मिला जहां उन्होंने 21 विकेट लिए थे। आईपीएल के 92 मैचों में उनको 89 विकेट मिले। कम ही लोग यह बात जानते हैं कि ओझा श्रीलंका के महानतम स्पिनर मुथैया मुरलीधरन के 800वें टेस्ट शिकार भी थे।
5 सितंबर को भारत के पूर्व क्रिकेटर फिरोज पालिया का भी जन्म हुआ था। साल 1910 में बांबे (अब मुंबई) में जन्मे फिरोज पालिया उस टीम का हिस्सा थे जिसने भारत के लिए सबसे पहला टेस्ट मैच खेला था।
देश की आजादी से पहले क्रिकेट इतना आसान नहीं था। खिलाड़ियों के पास उम्दा कोचिंग और आधारभूत सुविधाएं नहीं थी। उस दौर के बड़े अहम ऑलराउंडर थे फिरोज पालिया, जो सीके नायडू, अमर सिंह, नजीर अली और नाओमल जाओमल के साथ मिलकर भारत की पहली टेस्ट टीम के पांच शानदार ऑलराउंडरों में से एक थे।फिरोज पालिया की बैटिंग का अंदाज उनकी कलाइयों के कमाल में छिपा था। कलाई के ऐसे जादूगर, जिनकी इस कला की तुलना केएस रणजीत सिंह जी और वीवीएस लक्ष्मण जैसे भारतीय क्रिकेट लीजेंड से की जा सकती है। वह बाएं हाथ के हुनरमंद स्पिनर भी थे पिच से थोड़ी मदद मिलने पर वह बल्लेबाज को काफी मुश्किल में डाल सकते थे।
25 जून 1932 में इंग्लैंड के खिलाफ लॉर्ड्स में हुए भारत के पहले टेस्ट मैच में फिरोज की हैमस्ट्रिंग मसल्स में खिंचाव आ गया था। वह दूसरे पारी में 11वें नंबर पर बल्लेबाजी करने उतरे थे, ताकि भारत मैच को बचा सके। हालांकि न तो भारत की हार टाली जा सकी और न ही पालिया ने कोई रिकॉर्ड बनाने लायक योगदान दिया। लेकिन दर्द के बीच बल्लेबाजी के लिए पालिया ने जो टीम भावना दिखाई थी वह यादगार थी।
अगला टेस्ट मैच खेलने के लिए उनको चार साल इंतजार करना पड़ा। यह मैच साल 1936 में उसी प्रतिद्वंदी के खिलाफ उसी जगह पर खेला गया था। यह उनका अंतिम टेस्ट भी साबित हुआ था। पालिया का इंटरनेशनल करियर केवल दो टेस्ट मैचों तक सीमित रहा। इसका कारण भारतीय टीम द्वारा बेहद सीमित मैच खेलना भी रहा। तब भारतीय क्रिकेट टीम ने पूरे एक दशक के ब्रेक के बाद अगला टेस्ट खेला था। पालिया फर्स्ट क्लास मैचों में सक्रिय रहे जहां उन्होंने पूरे 100 मैच खेले और 4,536 रन बनाए, जिसमें 8 शतक शामिल थे, और उनकी औसत 32.40 रही। गेंदबाजी में भी वह सफल रहे और 24.06 की औसत के साथ 208 विकेट लिए थे। उन्होंने रणजी ट्रॉफी में संयुक्त प्रांत का प्रतिनिधित्व किया था।
फिरोज पालिया ने रेडियो कमेंट्री भी की और एक टेस्ट चयनकर्ता भी रहे। उन्होंने अपने 71वें जन्मदिन के चार दिन बाद 9 सितंबर 1981 को दुनिया को अलविदा कह दिया था।