15 सितंबर : हॉकी, स्क्वैश और पैरा टेबल टेनिस में खेल के तीन चैंपियन, जिनका इस दिन हुआ जन्म
नई दिल्ली: टेबल टेनिस में भारत कभी ओलंपिक मेडल नहीं जीत पाया है। लेकिन पैरालंपिक में यह उपलब्धि हासिल की जा चुकी है। सच यह है भारत पैरालंपिक खेलों में बहुत आगे निकल चुका है। टोक्यो पैरालंपिक इस मामले में भारत के लिए मील का पत्थर साबित हुए थे। पेरिस पैरालंपिक में भारत ने 29 मेडल हासिल करते हुए टोक्यो 2020 का भी रिकॉर्ड तोड़ दिया। पैरा एथलीटों की चमक के बीच एक ऐसा ही नाम है सोनलबेन पटेल का, जो भारत की पैरा टेबल टेनिस खिलाड़ी हैं और 15 सितंबर को अपना 37वां जन्मदिन मना रही हैं।
सोनलबेन गुजरात के अहमदाबाद के वीरामगाव से ताल्लुक रखती हैं, जहां साल 1987 में उनका जन्म हुआ था। सिर्फ 6 महीने की उम्र में पोलियो ने दुनिया में उनके अवसरों को सीमित जरूर किया लेकिन हौसले असीमित थे। पोलियो उनके पैरों के विकास को बुरी तरह प्रभावित कर चुका था। उनके दाए हाथ में भी इम्पेयरमेंट था। लेकिन जज्बे बड़े हों तो दुनिया में हर किसी को अपनी मंजिल मिल ही जाती है। सोनल के लिए पैरा स्पोर्ट्स कुछ ऐसा ही मौका लेकर आए थे। पैरा स्पोर्ट्स, जो दुनिया में अपनी छाप छोड़ने के लिए दिव्यांग एथलीटों के लिए किसी वरदान से कम नहीं हैं।
सोनल ने अपनी शुरुआती ट्रेनिंग कोच ललन दोशी के अंडर में की, जिसके बाद उन्होंने वापस मुड़कर नहीं देखा। उनको अपना पहला गोल्ड मेडल पैरा टेबल टेनिस नेशनल्स में मिला था। इसके बाद उन्होंने कई अंतर्राष्ट्रीय इवेंट में भागीदारी की। साल 2022 में बर्मिंघम में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में उनको कांस्य पदक मिला था। इस तरह के इवेंट के लिए सोनल ने प्रतिदिन 7 घंटे तक ट्रेनिंग की थी।
हाल ही में पेरिस पैरालंपिक में सोनल ने भविना पटेल के साथ मिलकर डबल्स इवेंट के लिए जोड़ी बनाई थी जहां उनको क्वार्टरफाइनल में हार मिली थी। वह इस नतीजे से थोड़ी निराश थीं लेकिन बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ हुई मुलाकात के बाद उनको फिर से काफी प्रेरणा मिली है।
सोनल के पति रमेश चौधरी भी पैरा टेबल टेनिस खेल चुके हैं और पैरा क्रिकेट में भी खुद को आजमा चुके हैं। उन्होंने 2019 की एशियन चैंपियनशिप में पैरा टेबल टेनिस में हिस्सा लिया था। 2014 में उनको एकलव्य अवॉर्ड मिल चुका है। सोनल अब अपने अगले इवेंट के लिए प्रतिबद्ध हैं।
15 सितंबर को भारत की एक और महिला खेल हस्ती का जन्म हुआ था। यह हैं स्क्वैश खिलाड़ी जोशना चिनप्पा, जिनका जन्म 1986 में चेन्नई में हुआ था। जोशना को भारतीय क्रिकेटर दिनेश कार्तिक की पत्नी दीपिका पल्लीकल के साथ देश की सबसे बेहतरीन स्क्वैश प्लेयर में गिना जाता है। स्क्वैश उनको विरासत में मिला था। दादा से लेकर पिता तक सब स्क्वैश प्लेयर थे। ऐसे माहौल में 7 साल की उम्र में जोशना ने स्क्वैश खेलना शुरू कर दिया था। पिता उनके पहले कोच थे जिन्होंने तमिलनाडु की स्क्वैश टीम का भी प्रतिनिधित्व किया था।
साल 2005 आते-आते जोशना ऐसी पहली भारतीय खिलाड़ी बन चुकी थीं जिन्होंने अंडर-19 वर्ग में ब्रिटिश जूनियर स्क्वॉश चैंपियनशिप जीती थी। उसी साल वह भारत की सबसे कम की उम्र की महिला नेशनल चैंपियन भी बन चुकी थीं। जोशना 2014 और 2018 के कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड और सिल्वर मेडल जीत चुकी हैं। इसके अलावा उन्होंने एशियन गेम्स में पांच बार मेडल भी जीता है।
2017 में, जोशना चिनप्पा महिला एशियाई व्यक्तिगत स्क्वैश चैंपियनशिप जीतने वाली पहली भारतीय बनी थीं। साल 2024 में की शुरुआत में उनको भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था। इससे पहले उनको साल 2013 में अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित किया जा चुका है।
भारतीय हॉकी के दिग्गज रोमियो जेम्स का भी जन्म 15 सितंबर को हुआ था। उत्तर प्रदेश के मेरठ से ताल्लुक रखने वाले रोमियो एक ऐसे खिलाड़ी थे जो 80 के दशक में टीम में छाए रहे। वह शानदार गोलकीपर थे जिनकी टीम ने दिल्ली में आयोजित 1982 के एशियाई खेलों में रजत पदक जीता था। 1984 के लॉस एंजिल्स ओलंपिक में भी वह टीम के मुख्य गोलकीपर थे। नेशनल लेवल पर उन्होंने सर्विसेज टीम की कप्तानी की थी जिसने 1982 और 1985 में नेशनल हॉकी चैंपियनशिप जीती थी।
खिलाड़ी के बाद वह कोचिंग में भी कामयाब रहे जिनके मार्गदर्शन में कई खिलाड़ियों के करियर ने आकार लिया था। चाहे भारतीय हॉकी टीम की कोचिंग देना हो या नेशनल लेवल पर अन्य टीमों की, रोमियो के मार्गदर्शन का टीम के नतीजों में बड़ा अहम योगदान रहा था। उनकी तेज सोच सिर्फ हॉकी तक सीमित नहीं थी। इसका एक उदाहरण महेंद्र सिंह धोनी के प्रति उनकी तारीफ से मिलता है। उन्होंने एक बार कहा था कि जिस तरह से महेंद्र सिंह धोनी क्रिकेट में विकेट के पीछे मुस्तैद रहते हैं, वह भारतीय हॉकी गोलकीपरों के लिए भी एक बड़ी प्रेरणा है।
रोमियो को खेलों में महान योगदान के लिए साल 2015 में ध्यान चंद अवॉर्ड दिया गया था। वह मेरठ के पहले ऐसे निवासी हैं जिनको खेलों में ध्यान चंद अवॉर्ड दिया गया था।