आजादी के 75 साल बाद भी राजद्रोह कानून की जरूरत क्यों? चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बोले- हो रहा गलत इस्तेमाल, केंद्र को फटकार

Update: 2021-07-15 07:08 GMT

राजद्रोह कानून (sedition law) पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में सुनवाई चल रही है. इस दौरान चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) एनवी रमना ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि अगर कोई पार्टी दूसरे पक्ष की राय नहीं सुनना चाहती तो उनके खिलाफ आसानी से राजद्रोह कानून का इस्तेमाल करती है, इसकी कोई जवाबदेही नहीं है.

सीजेआई एनवी रमना ने अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल से कहा कि आपकी सरकार ने कई पुराने कानूनों को निरस्त कर दिया है, मुझे नहीं पता कि आपकी सरकार आईपीसी की धारा 124 ए को निरस्त करने पर विचार क्यों नहीं कर रही है. इस पर केंद्र की ओर से अटॉर्नी जनरल ने राजद्रोह कानून को निरस्त करने का विरोध किया.
इस पर सीजेआई एनवी रमना ने अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल से पूछा कि आजादी के 75 साल बाद भी ये कानून जरूरी है? ये तो उपनिवेश वादी कानून है, इसका इस्तेमाल तो ब्रिटिश हुक्मरानों ने आजादी के लिए संघर्ष का विरोध करने वालों पर किया था, जिनके खिलाफ राजद्रोह कानून का इस्तेमाल किया था उनमें महात्मा गांधी और बाल गंगाधर तिलक भी थे.
अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि आईपीसी की धारा 124ए को खत्म यानी रद्द नहीं किया जाना चाहिए, उसकी अहमियत देश की एकता अखंडता के लिए बनी हुई है, इसके उपयोग के लिए गाइडलाइन बना दी जाय ताकि इसकी कानूनी उपयोगिता और उद्देश्य बना रहे.
सुप्रीम कोर्ट में राजद्रोह कानून पर क्यों हो रही है सुनवाई
यह पूरा मामला आईपीसी की धारा 124A यानी राजद्रोह के कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती का है. सीजेआई एनवी रमना ने कहा कि इन धाराओं का गलत इस्तेमाल अथॉरिटी द्वारा किया जा रहा है. इस पर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि ऐसे मामले पहले से लंबित हैं, जिसमें केंद्र से जवाब मांगा गया है, इस मामले को भी उसमें जोड़ा जा सकता है.
559 गिरफ्तारियां, महज 10 ही मिले दोषी
केंद्र सरकार की एजेंसी एनसीआरबी ने आईपीसी-124A के तहत दर्ज हुए केस, गिरफ्तारियों और दोषी पाए लोगों का 2014 से 2019 तक का डेटा जारी किया है. इसके मुताबिक 2014 से 2019 तक 326 केस दर्ज हुए, जिनमें 559 लोगों को गिरफ्तार किया गया, हालांकि 10 आरोपी ही दोषी साबित हो सके.


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