नई दिल्ली: देश के बाहर आईआईटी का पहला कैंपस तंजानिया (जंजीबार) में स्थापित किया जा रहा है। केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने मंगलवार को बताया कि यह कैंपस इसी साल नवंबर शुरु में होने वाला है। तंजानिया में यह कैंपस आईआईटी मद्रास के सहयोग से स्थापित किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि देश के बाहर यह पहला आईआईटी संस्थान तंजानिया और अन्य अफ्रीकी देशों के छात्रों को विश्व स्तरीय इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी शिक्षा प्रदान करेगा। साथ ही दोनों देशों और महाद्वीपों के बीच शैक्षिक सहयोग में एक मील का पत्थर साबित होगा। कौशल-केंद्रित और बाजार से जुड़ी उच्च शिक्षा को सहयोगात्मक तरीके से दोनों देशों के युवाओं तक पहुंचाया जाना है। केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत में 55,000 संस्थानों, 42 मिलियन छात्रों और 1.6 मिलियन शिक्षकों के साथ एक जीवंत उच्च शिक्षा इकोसिस्टम है। इसे महत्वाकांक्षी एनईपी 2020 के साथ और मजबूत करने की आवश्यकता है जो परिवर्तनकारी सुधार ला रही है।
उन्होंने कहा कि पहुंच, समानता, गुणवत्ता, सामर्थ्य और जवाबदेही जिम्मेदार वैश्विक नागरिक बनाने के मूलभूत स्तंभ हैं। शिक्षा प्रणाली के लिए डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने में काफी प्रगति हुई है। गौरतलब है कि तंजानिया की पहली महिला राष्ट्रपति महामहिम डॉ. सामिया सुलुहु हसन भारत में हैं। भारत-तंजानिया संबंधों को मजबूत करने, आर्थिक कूटनीति को बढ़ावा देने और क्षेत्रीय एकीकरण और बहुपक्षवाद में सफलता हासिल करने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के लिए जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय ने उन्हें मानद डॉक्टरेट (मानद उपाधि) से सम्मानित किया है।
जेएनयू में हुए इस कार्यक्रम में विदेश मंत्री डॉ. जयशंकर ने उल्लेख किया कि महामहिम डॉ. सामिया सुलुहु हसन को शैक्षिक सम्मान प्रदान करना भारत के साथ उनके लंबे जुड़ाव और दोस्ती को मान्यता देता है। शिक्षा और क्षमता निर्माण दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों के महत्वपूर्ण पहलू हैं। उन्होंने यह भी बताया कि आईटीईसी कार्यक्रम के तहत तंजानिया के 5,000 से अधिक नागरिकों को पहले ही भारतीय शैक्षणिक संस्थानों में प्रशिक्षित किया जा चुका है। उन्होंने आगे कहा कि ज़ंज़ीबार में पहला विदेशी आईआईटी स्थापित करने के लिए तंजानिया पसंदीदा स्थान है।
डॉ. जयशंकर ने कहा कि संस्थान में पूरे अफ्रीकी महाद्वीप के लिए तकनीकी शिक्षा का एक प्रमुख केंद्र बनने की क्षमता है। जी20 में पूर्ण सदस्य के रूप में अफ्रीकी संघ को शामिल करना भारतीय राष्ट्रपति पद की सर्वोच्च सफलताओं में से एक है। उन्होंने टिप्पणी की, अफ्रीका का उदय वैश्विक पुनर्संतुलन का केंद्र है और इसके प्रति भारत का समर्थन निर्विवाद है।
जी20 शिखर सम्मेलन और नई दिल्ली घोषणा के दौरान भारत द्वारा हासिल महत्वपूर्ण सफलता पर प्रकाश डालते हुए, प्रोफेसर शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित ने उल्लेख किया कि यह विचारों को सामने रखने, वैश्विक मुद्दों को आकार देने, विभाजन को पाटने और आम सहमति बनाने की भारत की असाधारण क्षमताओं का प्रमाण है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि जेएनयू में अफ्रीकी अध्ययन केंद्र है, जो 1969 में शुरू हुआ था, जो 2009 में एक विशेष केंद्र बन गया और नेल्सन मंडेला चेयर, विदेश मंत्रालय द्वारा स्थापित किया गया।