बड़ी खबर: बूढ़े पिता को लेकर जब अदालत ने कह दी बड़ी बात
नई दिल्ली: झारखंड हाई कोर्ट ने हाल ही में अपने एक फैसले में आदेश दिया है कि बेटे को हर हाल में अपने बुजुर्ग पिता को गुजारे के लिए रकम देनी होगी। हाई कोर्ट ने परिवार अदालत के उस फैसले पर मुहर लगाई, जिसमें बेटे को आदेश दिया गया था कि उसे अपने पिता को …
नई दिल्ली: झारखंड हाई कोर्ट ने हाल ही में अपने एक फैसले में आदेश दिया है कि बेटे को हर हाल में अपने बुजुर्ग पिता को गुजारे के लिए रकम देनी होगी। हाई कोर्ट ने परिवार अदालत के उस फैसले पर मुहर लगाई, जिसमें बेटे को आदेश दिया गया था कि उसे अपने पिता को हर महीने 3000 रुपये बतौर भरण-पोषण देने होंगे। इस फैसले कि खिलाफ मनोज नाम के शख्स ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस सुभाष चंद ने अपने फैसले में कहा, “हालांकि दोनों पक्षों द्वारा पेश किए गए सबूतों से यह पता चलता है कि पिता के पास कुछ कृषि भूमि है, फिर भी वह उस पर खेती करने में लाचार हैं। वह अपने बड़े बेटे पर भी निर्भर हैं, जिसके साथ वह रहते हैं। पिता ने पूरी संपत्ति में अपने छोटे बेटे मनोज साव को बराबर-बराबर का हिस्सा दे दिया है, लेकिन 15 साल से अधिक समय से उनका भरण-पोषण उनके छोटे बेटे मनोज ने नहीं किया है। भले ही पिता कुछ कमाते हों; अपने वृद्ध पिता का भरण-पोषण करना पुत्र का पवित्र कर्तव्य है।”
हिंदू धर्म में माता-पिता के महत्व को रेखांकित करते हुए जस्टिस चंद ने अपने आदेश में लिखा, “यदि आपके माता-पिता मजबूत हैं तो आप मजबूती महसूस करते हैं, यदि वे दुखी हैं तो आप दुखी महसूस करेंगे। पिता आपके ईश्वर हैं और माँ आपकी स्वरूप। वे बीज हैं और आप पौधा हैं। उनमें जो भी अच्छा या बुरा है, यहां तक कि निष्क्रियता भी, वह आपके अंदर एक वृक्ष बन जाएगा। तो आपको अपने माता-पिता की अच्छाई और बुराई दोनों विरासत में मिलती हैं। किसी भी व्यक्ति पर जन्म लेने के कारण कुछ ऋण होते हैं और उसमें पितृऋण और मातृऋण (आध्यात्मिक) भी शामिल होता है जिसे हमें हर हाल में चुकाना होता है।”
इससे पहले फैमिली कोर्ट ने छोटे बेटे को आदेश दिया था कि वह अपने पिता को हर महीने 3000 रुपये गुजारे के लिए दे। छोटे बेटे ने इसके खिलाफ अपील की थी। फैमिली कोर्ट में याचिकाकर्ता पिता ने अपने छोटे बेटे के खिलाफ आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत भरण-पोषण आवेदन दायर किया था। पिता ने अपनी अर्जी में दावा किया था कि उनके दो बेटे हैं और उनका छोटा बेटा झगड़ालू है। वह उनसे क्रूर व्यवहार करता है,और मारपीट भी करता है।
याचिकाकर्ता पिता ने दावा किया था कि उन्होंने 21 फरवकी 1994 को अपने दोनों बेटों के बीच 3.985 एकड़ जमीन बराबर-बराबर बांट दी थी। याचिका में कहा गया है कि बड़ा बेटा पिता को आर्थिक सहायता देता है, जबकि छोटा बेटा पिती की उपेक्षा करता है और कई बार मारपीट भी कर चुका है। पिता ने दावा किया था कि छोटा बेटा गांव में दुकान से करीब 50,000 रुपये हर महीने कमाता है, इसके अलावा खेतीबारी से भी सालाना 2 लाख रुपये कमाता है। बुजुर्ग पिता ने छोटे बेटे से 10,000 रुपये हर महीने गुजारा भत्ता देने की गुहार लगाई थी। इस पर परिवार अदालत ने बेटे को आदेश दिया था कि वह पिता को हर महीने 3000 रुपये दे।
हाई कोर्ट के जस्टिस चंद ने अपने फैसले में महाभारत के यक्ष युधिष्ठिर संवाद का हवाला देते हुए लिखा है, महाभारत में, यक्ष ने युधिष्ठिर से पूछा: “पृथ्वी से अधिक भारी क्या है? स्वर्ग से भी ऊँचा क्या है? हवा से भी क्षणभंगुर क्या है? और घास से अधिक असंख्य क्या है? युधिष्ठिर ने उत्तर दिया: 'माँ पृथ्वी से भी अधिक भारी है; पिता स्वर्ग से भी ऊँचा है; मन हवा से भी क्षणभंगुर है; और हमारे विचार घास से भी अधिक असंख्य हैं।" इसकी व्याख्या करते हुए हाई कोर्ट ने बेटे को पवित्र कर्तव्य निभाने का आदेश दिया है।