जब समुद्र में 9 घंटे तक जिंदगी और मौत से लड़ते रहे मैकेनिकल इंजीनियर, सुनाई पूरी आपबीती

Update: 2021-05-23 09:15 GMT

मुंबई. अरब सागर (Arab Sea) में पिछले दिनों उत्‍पन्‍न हुए चक्रवात टाउते (Cyclone Tauktae) ने केरल से लेकर गुजरात तक कहर बरपाया. इस शक्तिशाली तूफान के कारण काफी जानमाल का नुकसान भी हुआ. वहीं समुद्र में काम कर रहा बार्ज पी305 भी इसकी चपेट में आकर डूब गया. इसमें 261 लोग सवार थे. उनमें से कई की मौत हुई तो अधिकांश को बचा लिया गया. इन्‍हीं में से एक है महाराष्‍ट्र के रहने वाले मैकेनिकल इंजीनियर अनिल वायचाल. वह बार्ज पी 305 में सवार थे. जब बार्ज डूब रहा था तो उन्‍होंने जान बचाने के लिए अपने साथियों के साथ समुद्र में छलांग लगा दी थी. उन्‍हें 9 घंटे बाद भारतीय नौसेना ने बचाया था. उन्‍होंने न्यूज़ चैंनल (न्‍यूज18) को अपने उन 9 घंटे के संघर्ष के बारे में बताया है, जब वह जीवन और मौत के बीच थे.

40 साल के अनिल वायचाल एफकॉन्‍स कंपनी में काम करते हैं. ये कंपनी ओएनजीसी के लिए कॉन्‍ट्रैक्‍ट पर समुद्र में काम करती है. न्‍यूज 18 को उन्‍होंने बताया कि वो 9 घंटे उनके लिए पूरे जीवन के बराबर थे. उनको यह आशा नहीं थी कि वह अपने परिवार से मिल पाएंगे.
उन्‍हों ने बताया, 'मेरे अंदर यह भावना थी कि मैं जीवित रह सकता हूं. मैंने अपने साथियों को भी इसके लिए प्रेरित किया. मैंने उनसे कहा कि हमें जिंदा रहना होगा और अपने परिवार के पास वापस जाना होगा.'
वायचाल ने बताया, 'मुझे नहीं पता कि मेरे अंदर उस समय यह शक्ति कहां से आई थी. मैं काफी संवेदनशील व्‍यक्ति हूं.' वायचाल और उनके साथी 17 मई को बार्ज पर ही थे, जब चक्रवात टाउते उससे टकराया था. टाउते बार्ज से देर रात 2 बजे टकराया था. बार्ज जब डूब रहा था तो वायचाल के पास अपने साथियों संग समुद्र में कूदने के अलावा और कोई विकल्‍प नहीं था. वह शाम पांच बजे समुद्र में कूद गए थे. उन्‍हें आईएनएस कोच्चि की टीम ने 17-18 मई की दरम्‍यानी रात 2 बजे बचाया था.
वायचाल ने बताया कि उन्‍होंने अपने साथियों से समूह में समुद्र में कूदने को कहा था. उनका मानना था कि जितना बड़ा समूह होगा, बचने की उम्‍मीद उतनी अधिक होगी. उन सभी ने जो लाइफ जैकेट पहन रखी थी, वो अंधेरे में चमकती थी. इसका मतलब था कि अगर समुद्र में समूह में वे लोग रहते तो बड़े स्‍तर पर आसमान से लाइफ जैकेट चमकती नजर आतीं. इससे बचावकर्मी उन तक पहुंच सकते थे. लेकिन खराब मौसम में समूह में रहना आसान नहीं था.
उन्‍होंने कहा, 'हमने दो से तीन लोगों का समूह बनाया और एक-दूसरे का हाथ पकड़कर समुद्र में साथ रहने लगे. लेकिन हम दूसरे समूहों को नहीं देख पा रहे थे. अगर वे दिखते भी थे तो अगले ही समय में वे गायब हो जाते थे. वहां का मौसम बहुत खराब था.'
वायचाल के अनुसार, 'उस समय समुद्र में लहरें 8 मीटर तक ऊंची थीं. जैसे ही वे आती थीं हम अलग हो जाते थे. इसके बाद हम फिर समूह बनाते थे. इस 9 घंटे में मैं 3 से 4 समूहों के साथ रहा. लेकिन इसके बाद ऐसा समय आया जब मैं बिलकुल अकेला था.'
जैसे ही अंधेरा हुआ तो सभी को कुछ भी नहीं दिख रहा था. उस समय सिर्फ लाइफ जैकेट की चमकती रोशनी और रेस्‍क्‍यू जहाजों के ऊपर लगी लाइट दिख रही थीं. ऐसे में जो भी सांस ले रहे थे, उनमें बचने की उम्‍मीद बची हुई थी.
उन्‍होंने बताया, 'जैसे ही ऊंची लहर आती थी, पानी हमारे मुंह और आंखों में घुस जाता था. इसके बाद हमें कुछ नहीं दिखता था. मैं इस बात को लेकर सुनिश्चित नहीं था कि जब बचाव नौकाएं आएंगी तो क्‍या हम उस पर चढ़ पाने की स्थिति में होंगे. क्‍योंकि इतना लंबा समय समुद्र में रहने से शरीर कमजोर पड़ रहा था.'
जब बचाव नौकाएं आईं तो वायचाल ने अपने साथियों से उसके करीब आने को कहा. लेकिन वे उसपर नहीं चढ़ पाए और अंधेरे में बह गए. इनमें से अधिकांश अब भी लापता हैं. उन्‍होंने कहा, 'मैंने उस बचाव वाले जहाज पर तीन बार चढ़ने की कोशिश की. पहली दो कोशिशें बेकार गईं. इसके बाद मैं उसके फेंके जाल पर लेट गया और बचावकर्मियों से मुझे ऊपर खींचने को कहा.'
इसके बाद वह बचा लिए गए. वह अपनी पत्‍नी और दो बच्‍चों के पास वापस लौटने के लिए भगवान का शुक्रिया अदा करते हैं. उनके अनुसार उनके 13 साथी थे. उनमें से कई की मौत हो गई और कुछ अभी लापता हैं. बार्ज पी 305 के डूबने के बाद 51 लोगों के शव बरामद किए गए हैं, जबकि 24 लोग अब भी लापता हैं.


Tags:    

Similar News

-->